दृष्टिकोण : उत्तर प्रदेश क्यों बन रहा है आईएसआईएस का भर्ती केंद्र
उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री मोहम्मद आजम खां मुस्लिम समुदाय का नेता बनने की आकांक्षा में नित्य प्रति जो जहरीलापन घोल रहे हैं, उसके चलते विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य के वातावरण में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा मिल रहा है। आजम खां ने 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए मुसलमानों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया है। कानून के मुताबिक सांप्रदायिक एकजुटता की अभिव्यक्ति अपराध है। जिस व्यक्ति ने ‘‘सबके साथ न्याय’’ का संवैधानिक शपथ लिए हो, उसके द्वारा ऐसी अभिव्यक्ति महाअपराध बन जाता है। उसे मंत्री रहने का कोई हक नहीं है। उन्होंने इस एकता को तोड़ने के लिए 1906 में ढाका के नवाब को मुखौटा बनाकर मुस्लिम लीग की स्थापना करवाई जिसके पहले सम्मेलन में मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने ‘‘ग्रीन चार्टर’’ पेशकर मुस्लिम बहुल प्रदेशों की रचना का प्रस्ताव किया और प्रथम गोलमेज सम्मेलन के पूर्व इंगलैंड के गृहसचिव को पत्र लिखकर चेतावनी दी कि यदि प्रदेशों की रचना नहीं हुई तो खून की नदियां बह जाएगी। मौलाना तो चले गए लेकिन मुस्लिम बहुल आबादी का पाकिस्तान बनाने के लिए कितना रक्तपात हुआ है, उसके प्रत्यक्षदर्शी अभी भी जिंदा हैं। मौलाना को महत्मा गांधी ने ‘‘हिन्दू मुस्लिम एकता’’ के लिए कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया था जिन्होंने बाद में एक ‘‘मुस्लिम गुण्डे’’ को गांधी से बेहतर बताया था। अपनी वाचलता से घृणा का सैलाब लाने वाले मौलाना मुस्लिम लीग में भी नहीं रहे। गोलमेज सम्मलेन में वे ‘‘मुसलमानों’’ का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग से पहुंचे थे, लेकिन सम्मेलन के पहले ही उनका निधन हो गया। हिन्दुस्तान में दुनाया जाना उनको पसंद नहीं था, वे मक्का में दफनाया जाना चाहते थे लेकिन वहां की सरकार ने इसके लिए अनुमति नहीं दी तब संभवतः उनको यमन में दफनाया गया। आजम खां के प्रेरक मौलाना जौहर ही हैं। समय-समय पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के लिए सिरदर्द बनने के बावजूद आजम खां अखिलेश मंत्रिमंडल के सदस्य बने ही हुए हैं बल्कि समय-समय पर उनको घुटने टेकने या अपमानित कर यह साबित करते रहते हैं कि मुख्यमंत्री कोई हो हुकूमत उनकी ही चलती है। नित्य प्रति वे कुछ न कुछ ऐसा कर अखिलेश यादव और मुलायम सिंह को यह एहसास कराते रहते हैं कि वे भले ही मुख्यमंत्री न हों, सरकार उनकी मर्जी से चलती है। अब तो उन्होंने दावा किया है कि वे प्रधानमंत्री बनेंगे और मुलायम सिंह यादव ही उनके नाम का प्रस्ताव करेंगे। अनेकानेक उत्तेजित करने वाली अभिव्यक्तियों के बीच अभी उन्होंने यह कह डाला कि 2002 में गुजरात की जैसी स्थिति थी, वैसे इस समय सारे देश में पैदा हो गई है। गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी में सवार 69 कारसेवकों को जिंदा जला देने की घटना के बाद वहां दंगा भड़का था जिसमें कई सौ लोग मारे गए थे। तो क्या देश में ऐसा माहौल है कि गोधरा दोहराया जायेगा और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भाषण दंगा होगा? पाकिस्तान प्रेरित अनेक संगठनों के लिए बारकुनों की भर्ती का सबसे उपयुक्त बना उत्तर प्रदेश इस समय इस्लामिक स्टेट संगठन के लिए भर्ती का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है। पाकिस्तान बनाने के लिए सर्वाधिक आंदोलन उत्तर प्रदेश और बिहार में ही प्रभावी रहा है। जो आज का पाकिस्तान और उसको विभाजित कर बंगाल देश बना है वहां मुस्लिम लीग, जो कि पाकिस्तान की जनक रही है, कोई प्रभाव नहीं था। पृथकता की भावना से प्रभावित उत्तर प्रदेश, बिहार में मुसलमानों को आजादी के बाद विभाजन से उत्पन्न समस्याओं का जब संज्ञान बढ़ा तब उन्होंने अपने को राष्ट्रीयता के मुख्य धारा में लाने के लिए कांग्रेस, समाजवादी और साम्यवादी दलों में उन्होंने महत्वपूर्ण दायित्व को भी संभाला, लेकिन कुछ वर्षों बाद ही साठ के दशक में पृथकतावादी तत्वों ने उभरना शुरू किया और अनेकानेक नामों से संगठन खड़े होने लगे जिनके नेता चुनाव के समय राजनीतिक दलों से थोक में वोट दिलाने का सौदा करते रहे। रामजन्मभूमि आंदोलन और रामजन्मभूमि पर खड़े बाबरी ढ़ांचे को गिराने के बाद मुस्लिम समुदाय में उग्रता बढ़ाने वालों को एक हथियार मिल गया। लेकिन उसके पूर्व मुम्बई के माफिया सरगना बने हाजी मस्तान तथा कुछ वर्षों से आतंकी घटनाओं और हिंसा का तानाबाना बुनने वाले लोगों के संपर्क से दुबई एवं अन्य अरब देशों में रोजगार के लिए जाने के लिए लालायित लोगों को ‘‘कट्टर’’ बनाने की मुहिम चली। आजमगढ़ के जो मुसलमान पहले वर्मा और मलेशिया जाते थे, वहां के राजनीतिक हालात बदलने के कारण मुम्बई को ठौर बनाकर अरब देशों में जाने के लिए माफिया गिरोहों के हथियार बनते बनते पाकिस्तानपरस्त आतंकी संगठनों के हस्तक बन गए। उनकी व्यापक गिरफ्तारी से मुस्लिम समुदाय में जो भय व्याप्त हुआ, उसको भुनाने के लिए अनेक मुस्लिम नेताओं का उदय हुआ जो आपस में संघर्षरत भी है। हैदराबाद के ओवैसी का इससंदर्भ में नया अवतार हुआ है। आजम खां मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं हैं। समाजवादी पार्टी में ही जो मुसलमान हैं वे उनको नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम हो या फिर बरेलवी पंथ के लोग, आजम खां से उनका छत्तीस का सम्बन्ध रहा है, आज भी है। शिया समुदाय के लोग तो उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। ऐसे माहौल में मुस्लिम नेता बनने के लिए उन्होंने कटु अभिव्यक्तियों के माध्यम से उत्तेजना फैलाकर मुसलमानों का नेतृत्व संभालने का जो अभियान चलाया है, उसकी प्रतिक्रिया भी हुई है।
उनके व्यक्तव्य की प्रतिक्रिया में ही हिन्दू महासभा के कथित एक नेताने पैगम्बर मोहम्मद साहब के बारे में ऐसी अभिव्यक्ति कर दिया जिससे सारा मुस्लिम समाज उत्तेजित हो उठा। आजम खां 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ का इतिहास दोहराने पर ली है। उन्होंने मौलाना मोहम्मद अली जौहर के नाम से एक ‘‘विश्वविद्यालय’’ स्थापित किया है जिसके वे आजीवन चांसलर होंगे और उनकी पत्नी सचिव। ‘‘विश्वविद्यालय’’ के लिए राज्य सरकार के बजट से कई सौ करोड़ का प्रावधान हो चुका है। जिन्हें इतिहास का ज्ञान है, वे यह जानते हैं कि अंग्रेजों ने 1902 में बंगाल को दो भागों में बांटने का फैसला कर दिया था। उसके खिलाफ हिन्दू और मुसलमान एकजुट हो गए और अंग्रेजों को अपना फैसला वापिस लेना पड़ा था। 1857 के बाद इस अभूतपूर्व एकजुटता से अंग्रेज घबड़ा गए।
आजमगढ़ और सम्भल जनपदों में उनकी गतिविधियों के जो प्रयास प्रगट हुए हैं उससे मुस्लिम समुदाय भी परेशान हैं। सामूहिक रूप से जब उन्होंने पेरिस में हुए हमले की भत्र्सना करते हुए इस्लाम के शांति का पैगाम दिया तो आजम खां उने उनका समर्थक बना पड़ा होना पसंद किया। यह कहकर कि ऐसा कांड किस बात की प्रतिक्रिया है, इस पर भी ध्यान देना चाहिए। देश में संभवतः मुसलमानों की सर्वाधिक संख्या है।
वक्तव्यों के रूप में और कहीं हिंसात्मक भी। समाज का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि मुजफ्रनगर का दंगा, आजम खां द्वारा किए गए हस्तक्षेप का परिणाम रहा है। भारतीय जनता पार्टी या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघों के संदर्भ में उनकी घृणित अभिव्यक्तियों की मौखिल प्रतिक्रियाओं ने माहौल बिगाड़ने का काम किया है। जो आजम खां यह दावा करते हैं कि मुसलमानों ने-केवल मुसलमानों ने-अल्लाह-हो-अकबर का नारा लगाकर कारगिल विजय किया था, वे अब 2002 के गुजरात को दोहराये जाने का माहौल बनाने में लगे हुए हैं।
इस समय दुनिया भर में इस्लामिक स्टेटवादियों को सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है, आजम खां प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरीके से उनके समर्थक की भूमिका में आ गए हैं। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रदेश है, साथ ही मुस्लिम आबादी भी देश में सबसे ज्यादा है पिछले कुछ वर्षों में मुजफ्फरनगर को छोड़कर कोई बड़ी घटनाएं नहीं हुई है। जहां वाल्मीकि, अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं, वहां यदा कदा मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति से झड़प् हो जाती हैं। यहां उसके कारणों में जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह सर्वविदित है। एक प्रश्न यह भी किया जा सकता है कि ज्यादातर ऐसे स्थानों पर ही क्यों ये घटनाएं घटता है। लेकिन पिछली घटनाओं के विस्तार में जाने के बजाय भविष्य की चिंता करना जरूरी है। ओवैसी हैदराबाद के मुसलमानों के नेता जिस उत्तेजनात्मक अभिव्यक्ति से बन गए है।
आजम खां उसी का अनुशरण कर रहे हैं। इन दोनों के अतिरिक्त भी और बहुत से लोग चुनाव में राजनीतिक दलों से सौदेबाजी के लिए अब तक इसी प्रकार की उत्तेजनात्मक अभिव्यक्ति से ‘नेता’ बनने के प्रयास से जो माहौल बना रहा है वह इस्लामिक स्टेट वालों को भर्ती करने के लिए अनुकूलता प्रदान कर रही है। आजम खां की अभिव्यक्तियां उत्तेजनात्मक प्रतिक्रिया के लिए उसकाती हैं और उससे संदेह और अविश्वास का माहौल और विषाक्त हो रहा है। इस्लामिक स्टेटवादियों के लिए इससे अधिक अनुकूलता और क्या हो सकती है। और क्या 2002 की गुजरात जैसी स्थिति लाने के लिए किसी गोधरा-2 की तैयारी तो नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार को सावधान हो जाना चाहिए।