कोका कोला से भी बड़े ब्रांड ! देसी नेता
ब्रांड चाहे एक करोड़ की मर्सीडीज़ बेंज हो या 4 रूपए का विमल गुटखा, बाज़ार में बिकने के लिए उसे बाज़ार के उसूल स्वीकार करने ही होंगे. उसे लोगों के हाथ अगर बिकना है तो बाज़ार में दिखना होगा. मार्केटिंग के ये नियम कोका कोला ने बाज़ार में आज से कोई 129 साल पहले तय कर दिए थे. कोका कोला ने दुनिया को तब पहली बार बताया था कि बाज़ार में होने से कहीं ज्यादा बाज़ार में दिखना ज़रूरी है. दिखेंगे तो ब्रांड बनेंगे. ब्रांड बनेगे तो खुद ब खुद बिकेंगे. ब्रांड निश्चित तौर पर कोई उत्पाद हो सकता है. पर ब्रांड किसी फिल्म का हीरो भी हो सकता है. ब्रांड किसी पेशेवर खेल का खिलाडी भी हो सकता है. ब्रांड कोई आर्किटेक्ट हो सकता है. डिज़ाइनर हो सकता है. क्यूंकि ये सभी लोग एक प्रोडक्ट के तरह बाज़ार से जुड़े हैं. अगर बाज़ार है तो हीरो की फिल्म है. अगर रियल एस्टेट है तो आर्किटेक्ट है. लेकिन क्या ब्रांड नेता भी हो सकता है ? जिसे गरीबी की अंतिम पंक्ति में खड़े सबसे गरीब के दर्द को महसूस करना है. जिसे कटे हुए शीश वापस लाने है ? क्या ऐसा नेता भी ब्रांड हो सकता है ? जिसे सरकारी कार नही चाहिए ? जिसे सिर्फ दो कमरे का मकान चाहिए ? क्या ऐसा नेता भी ब्रांड हो सकता है. कंफ्यूज मत हो जाईये ...मे किसी एक नेता की बात नही कर रहा. मै तो एक आम सवाल उठा रहा हूँ कि क्या नेता ब्रांड हो सकता है ? वो नेता जो कहता है कि उसे खरीदने वाला पैदा नही हुआ है ? लेकिन वही नेता रोज़ आपके पैसों से ही खुद को बेच रहा है ? टीवी पर. रेडियो पर. अखबार पर. दीवार पर. होर्डिंग पर. 10,000 हज़ार रूपए प्रति दस सेकंड के रेट पर. 10,000 हज़ार रूपए प्रति सेंटीमीटर की दर पर. सच तो ये है कि आज जितना कोका कोला नही दिखती उतना आपका नेता दिखता है. दरअसल कोका कोला को ब्रांडिंग के लिए कम्पनी से पैसे भरने होते हैं लेकिन नेताजी की ब्रांडिंग नेता की जेब से नही होती. सोचियेगा....आपका पसंदीदा ब्रांड जो भी हो पर सोचियेगा. क्या नेता ब्रांड है, उत्पाद है ..बाज़ार है ?