*इस धरा धाम पर जितने भी जीव उपस्थित है सबको ही परमात्मा ने शरीर की अन्न संरचना के साथ साथ पेट भी प्रदान किया है , पेट की आवश्यकता होती है भोजन | बिना भोजन के उदर पूर्ति नहीं हो सकती और बिना उदर पूर्ति के जीव का जीवित रह पाना थोड़ा कठिन है | मानव समाज में भोजन का कितना महत्व है यह बताने की आवश्यकता नहीं है | जीवन की तीन मुख्य आवश्यकताओं रोटी कपड़ा मकान में सर्वप्रथम रोटी का स्थान आता है जिससे मनुष्य की उदर पूर्ति होती है | कहते हैं कि भोजन से प्रेम प्रकट होता है | पूर्वकाल में हमारे पूर्वजों ने एक साथ भोजन करने की परंपरा बनाई थी सायं कालीन बेला में परिवार के जितने भी सदस्य होते थे सब एक साथ बैठकर भोजन किया करते थे जिसमें दिन भर के क्रियाकलाप पर आपस में चर्चा भी कर लेते थे और आपस में सामंजस्य बना रहता था | समाज में भोजन का इतना महत्व है किसी के भी यहां यदि कोई मांगलिक कार्यक्रम होता है तो लोग समाज के लोगों को आमंत्रित करके प्रेम से भोजन कराते थे , जिससे सुदूर क्षेत्रों के लोग एक दूसरे से मिलते थे और आपस में प्रेम प्रकट होता था | कहने का तात्पर्य है मानव जीवन में भोजन उदर पूर्ति के लिए तो आवश्यक है ही साथ ही परिवार व समाज में आपसी प्रेम व सामंजस्य बनाए रखने का भी एक मजबूत साधन हमारे पूर्वजों ने बनाया था | जब किसी के यहां निमंत्रण में लोग पहुंचते थे तो भोजन करने के पहले बैठकर आपस में देश व समाज के विषय में चर्चा किया करते थे जिससे आपसी समझ का विस्तार होता था , उसके बाद लोग चटाई पर बैठ करके एक साथ भोजन करते थे | यहां गरीब हो चाहे अमीर सबको अगल-बगल बैठाकर पत्तल में ही भोजन दिया जाता था जिससे गरीबी एवं अमीरी की खाई को भी पाटने का प्रयास हमारे पूर्वजों ने किया था | परंतु धीरे-धीरे समय परिवर्तित हो गया और समाज में भोजन की परम्परा भी परिवर्तित हो गयी |*
*आज जिस प्रकार समाज का परिवर्तन हुआ है उसमें भोजन करने की विधा भी परिवर्तित हो गई है , जो भोजन आपस में प्रेम एवं सामंजस्य प्रकट करने का साधन हुआ करता था आज वह साधन भी समाप्त हो गया है | समाज की बात हो चाहे परिवार की बातें आज कोई भी एक साथ बैठकर भोजन करता हुआ नहीं दिख रहा है | हमारे पूर्वजों की जो मान्यता थी उसको आज के मनुष्य ने किनारे रख दिया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज परिवार और समाज को देख रहा हूं कि यदि परिवार में किसी के चार पुत्र हैं तो एक साथ बैठकर भोजन ना करके अपने अपने कमरों में अपना भोजन मंगवा लेते हैं , वही समाज की बात की जाय तो आज आयोजन तो पहले की अपेक्षा और भी भव्य होने लगे हैं परंतु वह आपसी चर्चा एवं भोजन के समय प्रकट होने वाला प्रेम आज अंतर्ध्यान हो गया है | भोजन की परंपरा भी परिवर्तित हो गई है आज लोग किसी के यहां आमंत्रण में पहुंचते हैं तो सीधे प्लेट उठाकर अपने हाथ से भोजन परोस कर एक किनारे खड़े होकर भोजन करके अपने घर की राह पकड़ लेते हैं | यही कारण है कि आज समाज व परिवार में कटुता स्पष्ट दिखाई पड़ती है | आज भोजन को मात्र उदर पूर्ति का साधन मान लिया गया है भोजन से प्रकट होने वाला प्रेम एवं उसकी परिभाषा को आज ना कोई समझ रहा है ना समझना चाहता है , यही कारण है कि आज भोजन स्वादहीन भी हो गया है | यदि परिवार व समाज को पुन: संस्कारित व आपसी सामंजस्य स्थापित करने वाला बनाना है तो सर्वप्रथम भोजन की विधा को परिवर्तित करना होगा |*
*भोजन का प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है जीवन जीने का प्रमुख साधन भोजन ही है और आज मनुष्य का भोजन ही सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा है तो जीवन भला सुचारू रूप से कैसे चलेगा | यह चिंतनीय विषय है |*