*पूर्वकाल में हमारे देश भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था , सोने की चिड़िया कहे जाने का तात्पर्य यह था कि यहां अकूत धन का भंडार तो था ही साथ ही आध्यात्मिकता एवं विद्या का केंद्र भी हमारा देश भारत था | हमारी शिक्षा पद्धति इतनी दिव्य थी उसी के बल पर समस्त विश्व में भारत की कीर्ति पताका फहराई थी और भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था | भारत एकमात्र ऐसा देश था जहाँ हमारे शास्त्रों ने दो प्रकार की विद्या का वर्णन किया है जिसे अपरा विद्या एवं परा विद्या कहा जाता है | भौतिक विज्ञान , रसायन विज्ञान , जीव विज्ञान एवं इतिहास आदि जिसके माध्यम से मनुष्य संसार के विषय में सब कुछ जानता है इसे अपरा विद्या कहा जाता है ! वहीं परा विद्या के माध्यम से मनुष्य आत्मा - परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करता है जो कि देश काल एवं कारण से परे है | प्राचीन काल में हमारी दिव्यता का मूल हमारी शिक्षा पद्धति ही थी जहां गुरुकुल में दोनों प्रकार की विद्या विद्यार्थियों को दी जाती थी और इन्हीं को स्वयं में समाहित करके शिष्य गुरुकुल से बाहर निकलकर लोक कल्याण का कार्य करता था | जिस प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति अपने दुश्मन को समूल नष्ट करने के लिए उसकी जड़ पर प्रहार करता है उसी प्रकार विदेशी आक्रांताओ ने हमारे देश को तो लूटा ही साथ ही ही हमारे मूल अर्थात शिक्षा पद्धति को भी नष्ट कर दिया | हमारे गुरुकुलों को नष्ट करके हमारी दिव्य शिक्षा पद्धति को मुगलों एवं अंग्रेजों ने हमारे देश भारत से विलुप्त करके एक नई शिक्षा पद्धति यहां पर प्रसारित की , जिसका उद्देश्श्य मात्र अर्थोपार्जन रह गया | विदेशी आक्रांताओं के इस प्रयास को हमारे देश के ही कुछ लोगों ने सफल होने में महत्वपूर्ण योगदान दिया | हमारी संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कार धीरे-धीरे लुप्त होते गए क्योंकि विदेशियों द्वारा परिवर्तित शिक्षा पद्धति में संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कार का कोई स्थान नहीं है | हम अपनी मूल विद्या को , मूल शिक्षा को भूलकर आधुनिकता के रंग में रंगते चले गये और जिसका परिणाम आज संस्कार विहीन नव समाज के रूप में हमारे समक्ष अट्टहास कर रहा है |*
*आज एक ओर तो हमारा देश भारत विकास की ओर अग्रसर है वहीं दूसरी ओर संस्कारों के अभाव में मानवोचित संस्कार को भूलता चला जा रहा है | आजकल के अधिकांश शिक्षा संस्थानों मे केवल अपरा अर्थात लौकिक विद्या ही दी जाती है परा अर्थात अलौकिक विद्या को कोई स्थान नहीं दिया गया है | आत्माभिव्यक्ति एवं आत्मानुभूति की पूर्णता उपेक्षा की गई है यही कारण है कि आज मात्र शिक्षा को केंद्र बनाने वाले विश्व के अनेक राष्ट्रों की भांति हमारे देश भारत की भी दयनाय स्थिति है | इस आधुनिक शिक्षा पद्धति को अपनाकर आज के विद्यार्थियों ने कुछ जानने की अपेक्षा कर डालने की पद्धिति अपना ली है | आज बाल्यकाल से ही बच्चों में अशांति , ईर्ष्या , तनाव , चिंता एवं अस्वस्थता स्पष्ट देखी जा रही है | आध्यात्मिकता का केंद्र कहा जाने वाला हमारा देश भारत आज आध्यात्मिकता से दूर हो गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज की शिक्षा अधिक से अधिक सुख एवं अधिक से अधिक धन अर्जित करने के लिए ही प्रदान की जा रही है जो मनुष्य को अशांति एवं तनाव अधिक प्रदान कर रही है | वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए समय की मांग है कि गुरुकुल शिक्षा पद्धति की पुनर्स्थापना हो जिससे आजीविका चलाने में उपयोगी विद्या के साथ साथ विद्यार्थियों को संयम , सदाचार , सच्चाई परदु:खकातरता आदि सद्गुण पाने के साथ - साथ ईश्वर प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाने की विद्या भी मिले | ऐसा करके ही उनके जीवन में उद्यम , साहसं , धैर्य , बुद्धि , शक्ति , पराक्रम जैसे गुणों का सहज विकास किया जा सकता है | यदि मनुष्य ने लौकिक विद्या पा ली एवं आत्मा विद्या नहीं पाई तो वह सदैव अशांत ही रहेगा एवं दुराचार समाज में फैलता जाएगा | इसलिए आवश्यकता है शिक्षा पद्धति के बदलाव की जो मनुष्य को पुनः मनुष्य बना सकें |*
*यह कटु सत्य है की अलौकिक विद्या के साथ आत्मविद्या का ज्ञान प्राप्त करने वाला विद्यार्थी ओजस्वी , तेजस्वी बनता है वहीं आत्मविद्या को भूलकर मात्र भौतिक विद्या प्राप्त करने वाला विद्यार्थी समाज के साथ-साथ अपने जीवन का भी अनादर करता है |*