*मानव जीवन में मनुष्य को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए यह सारा मार्गदर्शन हमारे ऋषियों ने शास्त्रों में लिख दिया है | क्या करके मनुष्य सफलता के शिखर पर पहुंच सकता है और क्या करके उसका पतन हो सकता है इसका मार्गदर्शन एवं उदाहरण हमारे पुराण में भरा पड़ा है | जिनके अनुसार मनुष्य सत्कर्म करके सफलता के शिखर पर पहुंचता है वही उसके कुछ कृत्य ऐसे होते हैं जो उसको पतित कर देते हैं | इन्हीं कृत्यों में एक कर्म है चोरी करना | चोरी करना जघन्य अपराध कहा गया है | यदि हम इतिहास की ओर दृष्टि डालते हैं तो अनेक ऐसे उदाहरण हमको प्राप्त होते हैं जहां चोरी करने का फल प्राप्त होता दिखाई पड़ता है | लंकापति रावण ने चोरी से जगज्जननी माता सीता का हरण किया तो उसका विनाश हो गया , सूर्यपुत्र कर्ण ने अपने गुरु परशुराम जी से अपने जाति की चोरी की जिसका परिणाम उसको गुरु के श्राप के रूप में मिला , द्यौ वसु ने पत्नी के कहने पर वशिष्ठ जी की गाय चुराई जिसके कारण उसको वशिष्ठ जी द्वारा शापित हो करके जीवन भर भीष्म पितामह के रूप में कष्ट ही झेलना पड़ा | और भी अनेक उदाहरण इतिहास में द्रष्टव्य है जहां चोरी करने का फल सुखमय नहीं रहा है | परंतु जहां पूर्वकाल में चोरी करने को पाप कहा जाता था वही आज लोगों के द्वारा यह कर्म बहुत ही प्रेम से किया जा रहा है , ऐसा करने वाले शायद उसके फल की चिंता नहीं कर रहे हैं , वह शायद यह भूल जा रहे हैं उनके द्वारा किये जा रहे किसी भी कर्म का फल इसी धरती पर भोग कर तभी जाना है | अगर आज मनुष्य ऐसा कर रहा है तो इसका सीधा सा अर्थ है क्यों उसने स्वयं में सनातन संस्कारों को आत्मसात नहीं किया है | बाल्यकाल से विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा आज व्यवसायिक बन गई है यही कारण है आज लोग अपने सनातन संस्कार को भूलते जा रहे हैं | नैतिक शिक्षा एवं पंचतंत्र की कहानियाँ आज विद्यालयों से गायब हो चुकी हैं | मनुष्य अकृत्य एवं कुकृत्य करते हुए संकोच भी नहीं कर रहा है | यह मनुष्य के पतन की निशानी है |*
*आज आधुनिक युग में पहले की अपेक्षा विद्वान कुछ अधिक ही दिखाई पड़ रहे हैं | आज वेद - पुराणों का अध्ययन एवं सदग्रंथों का मनन करने वालों की संख्या बहुत कम दिखाई पड़ रही है | सोशल मीडिया के इस युग में लोग सब कुछ सोशल मीडिया से ही प्राप्त करके विद्वान बनना चाहते हैं | अपनी विद्वता को प्रदर्शित करने का सशक्त माध्यम लोगों ने फेसबुक , व्हाट्सएप आदि को बना रखा है जहां पर वे अपने लेखों को प्रस्तुत करके वाहवाही बटोर रहे हैं | जिनके लिए एक शब्द लिखना भी कठिन है वे भी आज सबसे बड़े एवं अच्छे लेखक बने हुए हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सोशल मीडिया की इस दुनिया में देख रहा हूं कि अपने नाम के पीछे बड़े-बड़े पदों का विवरण देने वाले अनेक विद्वान बड़ी ही चतुराई से दूसरे के लिखे लेखों को अपना नाम देकर के परोस रहे हैं , और सबसे बड़ी बात यह है कि यदि लेखक के या किसी अन्य के द्वारा उनको इस बात पर रोका जाता है तो बड़ी ही बेशर्मी से वह कहते हैं कि अरे ! ठीक है संदेश जनता तक जाना चाहिए नाम किसका है इस से मतलब नहीं है | यह तो सत्य है कि संदेश आम जनमानस तक जाना चाहिए परंतु यह भी सत्य है कि जो कृत्य आप कर रहे हैं उसका फल कौन भोगेगा | यह आधुनिक चोरी लोगों को कुछ देर के लिए विद्वान तो बना सकती है परंतु उनकी विद्वता का स्तर तब पता चलता है जब किसी विद्वतसमाज में उनका सामना विद्वानों से होता है या उनके द्वारा प्रस्तुत लेख पर यदि कोई प्रतिप्रश्न कर देता है तो ऐसे लोग इधर-उधर झांकने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर पाते हैं | विद्वान बनना अच्छी बात है परंतु विद्वान बनने के लिए उद्यम एवं मनन , चिन्तन एवं अध्ययन भी करना चाहिए अन्यथा यह थोथी विद्वता समय समय पर अपमानित ही कराती रहती है | परंतु इस अंधे युग में अपने संस्कारों को तिलांजलि दे चुके मनुष्य का मस्तिष्क इस योग्य ही नहीं बचा है कि वह इन विषयों पर विचार कर सके | यही कारण है कि आज मनुष्य निरन्तर पतन की ओर अग्रसर है |*
*आज दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर सदग्रंथों पर भी नकलचियों ने अपनी छाप छोड़ी है , शायद इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि "नक्कालो से सावधान" |*