*परमपिता परमात्मा ने इस समस्त सृष्टि में जीवों की रचना की , जीवन देने के बाद जीवात्मा को एक निश्चित समय के लिए इस पृथ्वी लोक पर भेजा | जिस जीवात्मा का समय पूर्ण हो जाता है वह किसी न किसी बहाने से इस धरा धाम का त्याग कर देता है | नश्वर शरीर को छोड़करके आत्मा नई यात्रा पर अग्रसर हो जाती है इसी को हमारे धर्म ग्रंथों में मृत्यु कहा गया है | यह धराधाम जहां पर प्राणी निवास करते हैं इसका नाम ही मृत्युलोक है , अर्थात "मौत का घर" यहां जो भी आया है उसको एक ना एक दिन इस पृथ्वी का त्याग करके अपने कर्मानुसार योनियों में जाना ही पड़ता है | मृत्यु इस संसार का अटल सत्य है यदि मृत्यु की परिभाषा की खोज की जाय तो यही परिणाम निकल कर आएगा कि "जब जीवात्मा की आंतरिक एवं वाहय गतिशीलता समाप्त हो जाती है तब उसका शरीर शांत हो जाता है और जब यह नश्वर शरीर शांत हो जाता है इसकी क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है तब मनुष्य को मृत घोषित कर दिया जाता है" | वैसे तो मृत्यु को जीवन के अंत के रूप में जाना जाता है परंतु मनुष्य के कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जो उसे जीवित अवस्था में भी मृतक के समान घोषित कर देते हैं | श्रीरामचरितमानस में बाबा जी ने चौदह प्रकार के मृतक बताए है | जब मनुष्य अपने आचरण एवं अपने मानवोचित कर्म के विपरीत कर्म करने लगता है तो वह मृतकतुल्य हो जाता है ' ऐसे मनुष्य इस पृथ्वी पर भारस्वरूप ही रहते हैं | लोग मृत्युलोक में रहते हुए भी मृत्यु से भयाक्रांत रहते हैं , इस संसार में मनुष्य सब कुछ तो चाहता है परंतु मृत्यु को स्वीकार नहीं करना चाहता , क्योंकि वह मोहमाया में लिप्त होकर के सदैव इस संसार का सुख भोगने की प्रबल इच्छा रखता है | जिसको ईश्वर ने समस्त ऐश्वर्य प्रदान कर रखा है उसकी तो बात छोड़ दीजिए भगवान की माया इतनी प्रबल है कि जो मनुष्य अपने जीवन से विमुख होकर के बार-बार ईश्वर से यही कामना करता है कि हे भगवन ! अब मेरी मृत्यु हो जाय वह भी मृत्यु को समक्ष देख कर के भयाक्रांत हो जाता है | मृत्यु इस संसार का अटल सत्य है इससे न कोई बचा है और ना ही बच पाएगा |*
*आज के इस वैज्ञानिक युग में मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है , इस धरती के रहस्यों को सुलझाने में वैज्ञानिक दिन रात लगे रहते हैं परंतु कुछ विधान ऐसे हैं जिनकी बागडोर ईश्वर ने स्वयं अपने हाथ में ले रखी है | इन्हीं विधानों मे से एक है मृत्यु का विधान | इतना विकास कर लेने के बाद भी मनुष्य आज तक मृत्यु के रहस्य को नहीं जान पाया | वैज्ञानिकों का मानना है कि जब मनुष्य की आंतरिक मशीनरी कार्य करना बंद कर देती है तब मनुष्य नि:चेष्ट हो करके मृत्यु को प्राप्त हो जाता है , परंतु मृत्यु के वास्तविक रहस्य को आज भी वैज्ञानिक नहीं जान पाए है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सद्गुरुओं से प्राप्त ज्ञान के आधार पर यही कह सकता हूं कि मृत्यु कोई भयभीत करने वाली वस्तु नहीं है , यह मात्र एक शब्द नहीं है बल्कि महाभारत के अनुसार मृत्यु को एक देवी के रूप में स्थापित किया गया है | मृत्यु को स्वीकार करने के लिए मनुष्य को आत्मसंयमी होने के साथ-साथ इस संसार के चकाचौंध भरे जीवन से विमुख हो करके इस सत्य को जानना एवं समझना चाहिए | जब मनुष्य इस संसार में अपने जन्म लेने का प्रयोजन एवं स्वयं के रहस्य को जान जाता है तब उसे मृत्यु से भय कदापि नहीं लगता है | जीव को जब जन्म लेना होता है तब संसार के लोगों को पूर्वाभास हो जाता है परंतु उस जीव का इस धरती से गमन कब होगा इसका आभास नहीं हो पाता ऐसा इसलिए क्योंकि जीवात्मा अपने कर्मानुसार इस संसार से गमन करता है | जीवात्मा का इस संसार में आने का मार्ग निश्चित है परंतु जीवात्मा को इस संसार का त्याग करने के लिए अनेक मार्ग है जीवात्मा किसी भी मार्ग का चुनाव करके इस संसार का त्याग करेगा तो उसे मृत्यु का ही नाम दिया जाएगा | जब जीवात्मा इस नश्वर शरीर का त्याग करके आगे की यात्रा प्रारंभ करता है तो संसार के प्राणी उसे मृतक मानकर के नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार कर देते हैं | मृत्यु इस संसार का अटल सत्य है परंतु मनुष्य इसे स्वीकार नहीं कर पाता है | मनुष्य जब अपने आचरण से पतित हो जाता है तब वह जीवित तो रहता है परंतु उसे जीवित नहीं माना जाता है | किसी सम्मानित व्यक्ति का किसी मानव समुदाय में यदि अपमान हो जाता है तो वह मृतक के समान हो जाता है | इस प्रकार शरीर को त्याग देना ही मृत्यु नहीं है बल्कि मनुष्य की मृत्यु कई प्रकार से होती है इसको समझने व जानने की आवश्यकता है | सदाचरण का पालन करते हुए जीवन यापन करने वालों की मृत्यु कभी नहीं होती वह इस संसार का त्याग देने के बाद भी युगों युगों तक लोगों के मानस पटल पर जीवित रहते हैं , अतः मनुष्य को अपने कर्मों का चुनाव करते हुए यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि उसके कर्म ऐसे हों कि संसार को त्याग देने के बाद भी वह संसार मे स्मृति के रुप मे जीवित रहे |*
*मनुष्य इस संसार से तो चला जाता है परंतु उसके कर्म उसको युगो युगो तक जीवित रखते है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को मृत्योपरांत भी जीवित रहने का प्रयास करते रहना चाहिए |*