वह 1 फरवरी 1948 का दिन था. गांधी का वध हुए दो ही दिन हुए थे. हवाओं में कुछ बेचैनी और माहौल में कुछ उदासी थी. सुबह स्कूल जाते समय कुछ ब्राह्मण बच्चों ने गलियों के कोने में खड़े कुछ लोगों कानाफूसियाँ सुनी थीं
और उनकी धधकती आँखों से उस बातचीत का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन वे बच्चे थे, उन्हें ना तो उन लोगों के मंसूबे समझ में आए और ना ही निगाहें, लेकिन इतना वे बच्चे जरूर समझ गए थे, कि कुछ न कुछ गड़बड़ी है.
बच्चे जो बात नहीं समझ पाए थे, वह भयावह सच मात्र एक घंटे में ही हकीकत बनकर पश्चिमी महाराष्ट्र के एक बड़े हिस्से में हजारों ब्राह्मणों की किस्मत पर टूट पड़ा. कारण सिर्फ एक ही था, गांधी का वध करने वाले नथूराम गोड़से कोंकणी ब्राह्मण थे. सैकड़ों गाँवों में गांधी के “”अहिंसक अनुयायियों”(??)” की नीयत ब्राह्मणों के मकानों-संपत्ति और प्राणों पर बिजली बनकर टूट पडी. ३० जनवरी की शाम को वध हुआ... ३१ जनवरी का दिन गांधीवादी दंगाईयों ने योजना बनाने में बिताया... और १ फरवरी को पूरे लाव-लश्कर के साथ पश्चिमी महाराष्ट्र के सांगली, पुणे, सतारा, कोल्हापुर इत्यादि जिलों के गाँव-गाँव में ब्राह्मणों पर कांग्रेस ने कहर बरपाया. कई गाँवों को चारों तरफ से घेर लिया गया, ब्राह्मणों के मकानों पर निशान लगाए गए. इसके बाद “अहिंसा” का नंगा नाच हुआ. ब्राह्मणों की घरों से खींच-खींच कर पिटाई की गई. उनके मकान लूटे गए और जिन मकानों में अधिक सामग्री नहीं मिली उन्हें जला दिया गया. हजारों ब्राह्मण विभिन्न गाँवों से निकाल बाहर कर दिए गए, जिनमें से कुछ मध्यप्रदेश चले गए, कुछ उत्तरप्रदेश और दिल्ली. कई ब्राह्मण बच्चे ऐसे भी रहे, जिनके पास केवल वही कपडे रह गए थे, जो उनके तन पर थे. चूँकि अधिकाँश ब्राह्मण “धनी या पैसे वाले” की श्रेणी में नहीं आते थे, लेकिन मध्यम वर्गीय ठीक-ठाक खाते-पीते घर के थे, फिर भी उनके पास जो भी था वह सब बड़े आराम से लूटा गया, उन ब्राह्मणों के साथ किसी की सहानुभूति नहीं थी, क्योंकि एक ब्राह्मण ने कथित “राष्ट्रपिता”(??) का वध किया था.
इस बीच कुछ चतुर ब्राह्मण बच्चे ऐसे भी थे, जिन्होंने ३१ जनवरी को बाज़ार में चल रही अफवाहों से अंदाजा लगा लिया था, कि “कल “कुछ होने वाला है””. इन चतुर बच्चों ने घर पर बिना बताए चाँदी की थाली चुराकर कवेलू की छत के नीचे अथवा पेड़ों के ऊपर छिपा दी, और जब दंगाई सब कुछ लूटकर-जलाकर वापस चले गए, तब उन्होंने पेड़ से चाँदी की वह थाली निकाली, उसे दूसरे गाँव में जाकर बेचा तब कहीं जाकर २ फरवरी की शाम को उन ब्राह्मण परिवारों भोजन नसीब हुआ. केंद्र से लेकर राज्यों तक चारों तरफ कांग्रेस का शासन था, गांधी के प्रति लोगों के मन में अत्यधिक आदर था इसलिए पुलिस में रिपोर्ट करने अथवा कहीं शिकायत करने का कोई लाभ न था. जिस तरह कांग्रेसियों ने 1984 में पूरी सिख कौम को दोषी सिद्ध कर दिया, उसी तरह सिर्फ अफवाहों और घृणा के बल पर 1 फरवरी 1948 को सारे ब्राह्मणों को दोषी मानकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हें “अहिंसा”, “नैतिकता” और “आत्म-अनुशासन” का “गाँधीवादी पाठ” पढ़ाया... सावरकर के निर्दोष भाई को पत्थरों से मारा गया.
आप सोच रहे होंगे कि यह घटना तो कभी कहीं देखी-सूनी या पढी नहीं... कहीं यह झूठ या दुष्प्रचार तो नहीं है?? विश्वास नहीं आता हो, तो महाराष्ट्र से भागकर उत्तर भारत में जा बसे कोंकणी ब्राह्मण परिवारों की पिछली पीढी को कुरेदकर देखिये.... कांग्रेस और गांधी के प्रति उनके दिल इ क्या उदगार निकलते हैं.
हजारों ब्राह्मणों को लूटने, मकान जलाने और पश्चिमी महाराष्ट्र को काफी हद तक ब्राह्मण विहीन करने के बाद से ही महाराष्ट्र में ब्राह्मण विरोधी राजनीति का आरम्भ हुआ. ब्राह्मण समुदाय को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाने लगा, और यह दुर्गति महाराष्ट्र में आज भी जारी है. महाराष्ट्र में मराठा और OBC जातियाँ शक्तिशाली हैं. अभी तक महाराष्ट्र में केवल दो ही मुख्यमंत्री ब्राह्मण हुए हैं, पहले थे मनोहर जोशी और अब दूसरे हैं देवेन्द्र फडनवीस... और मजे की बात यह है कि दोनों ब्राह्मण मुख्यमंत्री, अपने OBC आकाओं की मेहरबानी से उस गद्दी तक पहुँचे... मनोहर जोशी नाममात्र के मुख्यमंत्री थे, क्योंकि बालासाहेब ठाकरे ही सर्वेसर्वा थे... इसी प्रकार फडनवीस ने भले ही सूखाग्रस्त महाराष्ट्र मं “जलयुक्त शिवार” लागू करके अथवा मुम्बई-नागपुर एक्सप्रेस हाईवे जैसे प्रोजेक्ट से वाहवाही हासिल की हो, परन्तु अंततः वे भी एक अन्य OBC अर्थात नरेंद्र मोदी की कृपा के कारण ही वहाँ टिके हुए हैं. वास्तविकता यही है कि पूरे देश में ब्राह्मणों के खिलाफ एक घृणा अभियान व्यवस्थित स्वरूप में चलाया जा रहा है. गरीब ब्राह्मणों को न कोई सामाजिक सुरक्षा हासिल है, न कोई विशेष योजना अथवा सब्सिडी मिलती है. ब्राह्मणों के खिलाफ घृणा फैलाते समय यह बात सुविधाजनक रूप से भुला दी जाती है कि आंबेडकर को शिक्षा दिलवाने में प्रमुख भूमिका एक ब्राह्मण की ही थी, जिन्होंने उस प्रतिभाशाली को अपना नाम भी दिया. इसी प्रकार संभाजी ब्रिगेड नामक “जहरीली संस्था” नाम तो शिवाजी का लेती है, परन्तु सुविधाजनक रूप से यह भूल जाती है कि शिवाजी महाराज को “गौ-ब्राह्मण” प्रतिपालक कहा जाता था.
ब्राह्मणों के खिलाफ पश्चिमी महाराष्ट्र में घटित इन घटनाओं को इतिहास से लगभग साफ़ ही कर दिया गया है, जबकि 1 फरवरी 1948 को कम से कम 5000 घर लूटे-जलाए गए थे और न जाने कितनी मृत्यु हुई थीं... कोई रिकॉर्ड नहीं... कोई चर्चा नहीं... कोई राजनीति नहीं... कोई मुआवज़ा नहीं...
क्योंकि आज की तारीख में भी ब्राह्मण हर किसी के लिए सबसे “सरल शिकार और निशाना” है... चाहे तमिलनाडु में हो या महाराष्ट्र में....