कभी कभी तो मैं जब लोगों के घरों में जाता हूँ इतना गुस्सा आता है मुझे. इन अँग्रेज़ी पढ़े लोगों के यहाँ छोटे छोटे बच्चे होते है उनसे माता पिता कहते हैं "अंकल आए हैं अंकल को पोयम सुनाओ". मैं कहता हूँ भाई मैं अंकल नहीं हूँ. मुझे या तो मामा बना लो या चाचा बनो लो दोनो में ही आपका फ़ायदा है और मेरे भी फ़ायदा है. अंकल बनने में तो कुछ रखा नहीं है.
फिर उनके माता पिता को कहता हूँ आप इनको पोयम क्यों सुंनबाते हो कविता सुनवाओ ना. तो उनको पोयम और कविता का अर्थ ही नहीं पता है. पोयम अलग है कविता अलग है. और वो बच्चे चालू हो जाते हैं टेप रिकारडर की तरह और पोयम सुनाते हैं मुझको। "रेन रेन गो अवे, कम एगेन अनोदर डे, लिटल बेबी वांट्स टू प्ले। "
अब में बच्चे से पूछता हूँ तुम्हे मतलब मालूम है इसका. तो वो कहता है नहीं मालूम. तब में पूछता हूँ किसने सिखाया वो कहता है मम्मा ने. मम्मा को पूछो तो उसे भी अर्थ नहीं मालूम उसे टीचर ने बताया. टीचर को पूछो तो उनको भी अर्थ नहीं मालूम।। तो रटाया क्यों फिर बच्चों को? फिर बच्चों को में बताता हूँ इसका अर्थ ये है. "वारिश वारिश तुम चली जाओ मत आओ क्यों की मुझे खेलना है".
प्रार्थना के रूप में ये कविता है; करोड़ों बच्चॉ ने अगर ये कविता गायी और ईश्वर ने सुन ली तो. वारिश को वापस बुला लिया तो क्या होने वाला है?
वारिश नहीं होगी तो सूखा पड़ेगा. और सूखा पड़ेगा तो आप भी भूखों मरोगे , मैं भी मारूँगा और किसान भी मरेंगे. इतनी अकल नहीं है की "रेन रेन गो अवे" कितनी ख़तरनाक चीज़ है. हमारे भारत में 60 प्रतिशत खेती वारिश से होती है; केवल 40 प्रतिशत में ही खेती में पानी की व्यवस्था है. तो हमें तो वारिश ज़्यादा चाहिए. और ऐसी कविता देशी भाषा में ही हो सकती है अँग्रेज़ी में नहीं . मराठी भाषा के एक कविता है अर्थ इसका बहुत सीधा है. वो कविता है
आओ आओ पाऔशा;
टोला दे तो पैसा;
पैसा झाला खोता;
पाऔ साला मोटा.
( वारिश वारिश तुम जल्दी जल्दी आओ नहीं आयोगे तो मैं पैसा देने को तैयार हूँ।)
मात्रभाषा की कविता बारिश को बुलाने वाली होती है और अँग्रेज़ी कविता वारिश को भगाने वाली होती है क्योंकि इंग्लेंड में मौसम खराब होता है, वारिश कभी भी हो जाती है. इस लिए वहाँ की कविता में वारिश से जाने की बात होती है.
- राजीव भाई के व्याख्यानों से लिया गया एक अंश।
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निवेदक-
राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था, गुङगांव।
संपर्क सूत्र-९४१६०६९६८३