# कोका कोला और पेप्सी का मार्केट खतरे में है, क्योंकि जनता लो-शुगर और लो-कैलोरी सॉफ्ट ड्रिंक्स की तरफ शिफ्ट हो रही है.
# ये दोनों कंपनियां भारत सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में राज करती हैं. पेप्सी 1989 में इंडिया आई थी. कोका-कोला को जॉर्ज फर्नींडीज ने एक बार भगा दिया था, दुबारा वो 1993 में इंडिया फिर से आई.
# इन दोनों अमेरिकी कंपनियों ने बाकी कंपनियों को रास्ते से हटाने के लिए धमकाने से लेकर कंपनी खरीदने तक की हर टैक्टिक का इस्तेमाल किया और सफल रहे. बाद में आपस में जूझ गए. सॉफ्ट ड्रिंक का ये मार्केट इंडिया में 60 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया.
# पर अब दोनों कंपनियां एक तरफ हैं. दूसरी तरफ डाबर, पार्ले, हेक्टर बीवरेज, आईटीसी और मनपसंद बीवरेज जैसी कंपनियां हैं. इन कंपनियों ने नये तरीके के ड्रिंक निकाले हैं और स्मार्ट मार्केटिंग की है.
# ये मार्केट दूध बेस्ट ड्रिंक्स और पैकेज्ड पानी का है. हेल्थ को लेकर नई कॉन्शसनेस बनी है. जनता इधर शिफ्ट हो रही है. पेप्सी और कोला इसे नहीं देख पाई हैं.
# सितंबर 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने बीवरेज वाली कंपनियों से आग्रह किया था कि वो किसानों की मदद के लिए अपने जूस में कम से कम 5 प्रतिशत फ्रूट जूस मिलाएं. वडोदरा की कंपनी मनपसंद बीवरेज ने एक सप्ताह के अंदर ये शुरू कर दिया था. बाद में कई देशी कंपनियों ने इसे अपनाया. ये लोग कह रहे थे कि इनका पहले से प्लान था. पीएम के कहने के बाद बूस्ट मिल गया.
मार्केट इन कंपनियों के बारे में क्या कह रहा है?
1. यूरोमॉनीटर के मुताबिक 2014 और 2016 के बीच कोका कोला का इंडियन मार्केट 35.5 प्रतिशत से घटकर 33.5 प्रतिशत हो गया है. पेप्सी का मार्केट 23.2 प्रतिशत से घटकर 22.2 प्रतिशत हो गया है. ड्रिंक्स का ये मार्केट हर साल 9.7 प्रतिशत के रेट से बढ़ रहा है, जबकि दोनों कंपनियों का मिलाकर इसी दौरान 3 प्रतिशत मार्केट घटा है. कॉर्बोनेटेड बीवरेज का मार्केट 51 प्रतिशत से घटकर 46 प्रतिशत हो गया है.
2. सॉफ्ट ड्रिंक के मार्केट में बॉटल्ड वाटर पिछले 5 सालों में बढ़कर 24 प्रतिशत हिस्सा पकड़ चुका है. 24 प्रतिशत के साथ पार्ले बिस्लेरी इस मामले में सबसे आगे है. कोका कोला का किनले 17 प्रतिशत था, पर अब घट गया है. वहीं पेप्सी का एक्वाफिना 10 प्रतिशत पर ही रुका हुआ है. जबकि कॉर्बोनेटेड ड्रिंक्स के मार्केट में कोका कोला और पेप्सी का 96 प्रतिशत शेयर है.
3. पिछले दो-तीन सालों में ये मार्केट 16 हजार करोड़ रुपये बढ़ा और ये दोनों कंपनियां इसका ज्यादा फायदा उठा पाने में कामयाब नहीं रहीं. ये फायदा नई कंपनियों को ही गया.
4. कोका कोला ने तीन नये नॉन-कॉर्बनेटेड यानी प्लेन ड्रिंक लॉन्च किये. एक्वेरियस, दूध आधारित वायो और नारियल पानी बेस्ड जिको. पेप्सी ने प्रॉमिस किया कि अपने ड्रिंक्स में वो कैलोरी का लेवल कम करेंगे. पर ये टैक्टिक काम नहीं कर रही है.
5. लगातार ये चीजें भी सामने आती गई हैं कि ये दोनों ड्रिंक्स हेल्थ के लिए हानिकारक हैं. पेप्सी पर तो बाकायदा कीटनाशक होने का आरोप लगा था.
ये दोनों कंपनियां पीछे जा रही हैं, देसी कंपनियां आगे आ रही हैं
1. वॉट्सऐप पर लगातार इनसे जुड़ी खबरें चलती हैं कि इनके गिलास में इतनी चीनी होती है कि खीर बन जाए. पर इन दोनों कंपनियों ने इस चीज को ज्यादा सीरियसली नहीं लिया. चार साल पहले पेप्सी ने स्ट्रॉन्ग फ्लेवर वाला एटम लॉन्च किया ताकि कोका कोला के थम्स-अप को काउंटर किया जा सके. पर अब ये ड्रिंक्स उतने फैशनेबल नहीं रहे जितने कि आमिर के ठंडा मतलब कोका कोला और सचिन के पेप्सी का फैशन चला था. अब तो जीएसटी बिल के बाद इन पर 40 प्रतिशत का सिन टैक्स लगने की संभावना भी है. सिन टैक्स मतलब इनको पाप यानी कि अनहेल्दी चीजों में रखा जा रहा है.
2. पेप्सी के फ्रूट प्रोडक्ट ट्रॉपिकाना भी जूस के मार्केट में 33.5 प्रतिशत हिस्सेदारी से नीचे गिरकर 28.7 प्रतिशत तक आ गया. डाबर इसमें 56.3 प्रतिशत मार्केट की हिस्सेदारी रखता है. हालांकि मैंगो जूस की बात करें तो कोका कोला का माज्जा नंबर वन है. मिनट मेड थोड़ा चला था, फिर रुक गया.
3. देसी ब्रांड्स के साथ फायदा ये है कि लोग इनसे जुड़ जा रहे हैं. अभी नेशनलिज्म का दौर है तो पहले वाली बात नहीं रही कि अमेरिका का है तो अच्छा है. पार्ले एग्रो तो अपने एप्पी फिज्ज के साथ बहुत आगे निकल गया है. अभी हाल में ही फ्रूटी फिज्ज भी लॉन्च किया है. ये मैंगो ड्रिंक है. जिसमें 11 प्रतिशत फल की मात्रा है. जबकि फैंटा या मिरिंडा बस फ्रूट फ्लेवर वाले ड्रिंक्स हैं.
4. यहां तक कि 100 साल पुराने ब्रांड रूह अफजा वाले हमदर्द ने भी रेडी टू ड्रिंक मार्केट में 20 प्रतिशत फल की मात्रा वाला जूस लॉन्च कर दिया है, रूह अफजा फ्यूजन. डाबर तो फ्रूट जूस के अलावा वेजीटेबल जूस भी बना रहा है. इनका नया मैंगो जूस Ju C भी लॉन्च हुआ है.
5. डाबर के एक अधिकारी के के चटानी बिजनेस टुडे को बताते हैं कि विदेशी कंपनियों को अटलांटा और कनेक्टिकट माने अमेरिकी शहरों से परमिशन लेनी पड़ती है. जबकि देसी कंपनियां तुरंत डिसीजन ले लेती हैं. ये भी एक फायदा है.
6. हेक्टर बीवरेज जैसी देसी कंपनियां तो ठंडई और आम का पना भी बना रही हैं. ये अपने पेपर बोट ब्रांड से लोगों तक पहुंच रही हैं. हेक्टर बीवरेज बनाने वाले लोग पहले कोका कोला कंपनी में ही काम करते थे. पेपर बोट नाम लोगों के नॉस्टैल्जिया को टैप कर रहा है. बचपन में लोग कागज की नाव बना के खेल ते थे. ये इसी चीज को अपील कर रहा है. नये जमाने में इंडियन होना नया कॉन्फिडेंस दे रहा है तो देसी नॉस्टैल्जिया मार्केटिंग में काम आ रहा है.
7. ये देशी-विदेशी का मामला नहीं है. मामला है इन्नोवेशन और प्रोडक्ट का. पेप्सी ट्रॉपिकाना और स्लाइस के मार्केट पर चल तो रही है, लेकिन देसी ब्रांड्स के इन्नोवेशन इन पर भारी हैं.
8. ऐसा भी नहीं है कि इंडिया में हर देसी कंपनी सफल हो जाती है. हर गर्मी में इंडिया में लगभग 600 नये ड्रिंक्स आते हैं. इनमें से 90 प्रतिशत दूसरे सीजन तक नहीं टिकते. कोका-कोला और पेप्सी के पास पैसा बहुत है, ये लोग असफलताओं के बाद भी टिक जाते हैं.
9. पर दोनों कंपनियों को मार्केट के अलावा भी दिक्कतें हैं. पानी की समस्या पूरे देश में है. जहां पर इन कंपनियों के प्लांट लगते हैं, विरोध होना शुरू हो जाता है. मार्च 2017 में देश के सबसे इंडस्ट्रियलाइज्ड राज्य तमिलनाडु की दो बड़ी ट्रेड एशोसिएशन्स ने कोका-कोला और पेप्सी को राज्य में बैन कर दिया. कहा कि ये कंपनियां जो पानी खा जाती हैं, वो किसानों को मिलेगा.
(Courtsey: Business Today)
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