धार में परमार राजवंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ई0 तक 44 वर्षों तक शासन किया। महराजा भोज की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ सरस्वती ने स्वयं प्रकट होकर अपने दिव्य स्वरूप के साक्षात् दर्शन दिये | उन्होने माँ सरस्वती की क्रपा से ६४ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की | उनकी आध्यात्मिक ,वै ज्ञान िक, साहित्यिक अभिरुचि, व्यापक और सूक्ष्म दृष्टी, प्रगतिशील सोच, दूरदर्शी समझ आदि सभी कुछ माँ सरस्वती की ही देन थी |
महाराजा भोज ने माँ सरस्वती के जिस दिव्य स्वरूप के साक्षात् दर्शन किये थे उसी स्वरूप को महान मूर्तिकार मंथल ने महाराजा भोज के विवरण के अनुसार भूरे रंग के स्फटिक से निर्माण कर दिव्य प्रतिमा बनाई । यह प्रतिमा अत्यंत ही मनमोहक एवं शान्त मुद्रा वाली थी, जिसमें माँ का अपूर्व सौन्दर्य झलकता था | ध्यानस्थ अवस्था में वाग्देवी माँ सरस्वती की यह प्रतिमा विश्व की सुन्दरतम कलाकृतियों में से एक मानी जाती है ।
महराजा भोज ने माँ सरस्वती के प्राकट्य स्थल पर वर्ष 1034 में भोजशाला का निर्माण करवाया, जो कि कालांतर में हिन्दू जीवन दर्शन का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र बना जहां देश विदेश के लाखों विद्यार्थियों ने 1400 प्रकांड विद्वान आचार्यो के सानिध्य में रहकर आलौकिक सनातन ज्ञान प्राप्त किया | इन आचार्यो में आचार्य भवभूति, माघ, बाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट्ट,धनपाल,बोद्ध संत बन्स्वाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात थे । महाराजा भोज के पश्चात अध्ययन अध्यापन का कार्य 200 वर्षो तक निरंतर जारी रहा । माँ सरस्वती का यह भव्य मंदिर पूर्व की ओर मुख किये हुए बहुमंजिला आयताकर भवन है जो अपने वास्तु शिल्प के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है !
भोजशाला के नाम से विख्यात यह स्थान सैकड़ो वर्षो से अविरत आराधना, यज्ञ, हवन, पूजन, साधना आदि के कारण सम्पूर्ण विश्व में श्रेष्ठ सिद्ध पीठ के रूप में आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन गया ।
वर्ष 1269 ईस्वी से अनेक इस्लामी आक्रान्ताओं ने अलग अलग तरीको से योजना पूर्वक भारत वर्ष के इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र भोजशाला पर आक्रमण किये जिसे तत्कालीन हिन्दू राजाओँ ने विफल कर दिया । वर्ष 1296 से 1316 के बीच आक्रान्ता अलाउद्दीन खिलजी तथा दिलावर खां गौरी 1391 से 1401 के मध्य इनकी सेनाओं से माहलक देव और गोगा देव ने भोज शाला को बचाने के लिये युद्ध लड़ा । 14वीं शताब्दी में दिल्ली के खिलजी वंश ने इस शहर पर कब्ज़ा जमा लिया और खिलजी वंश ने 1401 से 1531 में मालवा में स्वतंत्र सुल्तनत के रूप में शासन किया । मौलाना कमालुद्दीन खिलजी राजवंश के साथ में आए थे उनकी म्रत्यु वर्ष 1456 में हो गई | जिसकी याद में महमूद ग़यासुद्दीन ख़िलजी ने मौलाना कमालुद्दीन की आखिरी इच्छा के पालन में महाराजा भोज की भोजशाला को तुडुवा कर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया।
उसने वहाँ उपस्थित ब्राह्मणों की हत्या कर उन्हें वहाँ के यज्ञ कुण्डों में डाल दिया और मां वाग्देवी सरस्वती जी की ऐतिहासिक प्रतिमा को खुदवा कर फिकवा दिया जो कि भोजशाला के समीप खुदाई के दौरान वर्ष 1875 में मिली थी । जिसे 1880 में अंग्रेज़ो का पॉलिटिकल एजेंट “मेजर किनकेड” अपने साथ लंदन ले गया । जो आज भी लन्दन संग्रहालय में कैद है ।
भोजशाला को लेकर हिन्दू और मुसलमानों के अपने – अपने दावे हैं | हिन्दू राजा भोज कालीन इमारत को वाग्देवी माँ सरस्वती का मंदिर मानते हैं । दूसरी तरफ मुस्लिम समाज का कहना है कि वे वर्षों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं, अत: यह जामा मस्जिद है, जिसे वे मौलाना कमालुद्दीन की मस्जिद कहते हैं।
हिन्दू वसंत पंचमी को हिन्दू भोजशाला के गर्भगृह में सरस्वती जी का चित्र रखकर पूजन करते हैं। 1909 में धार रियासत द्वारा 1904 के एशिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया जो बाद में पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया। अब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास इसके देख रेख की जिम्मेदारी है । धार स्टेट के दीवान “नाडकर” ने वर्ष 1935 में भोजशाला को “मौलाना कमालुद्दीन” की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति दी थी । पहले भोजशाला मात्र शुक्रवार को ही खुलती थी और वहां नमाज हुआ करती थी और बन्द कर दी जाती थी । भोजशाला पर 1995 में हिन्दुओं ने अपना अधिकार मांगा फिर मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढऩे की अनुमति दी गई । 12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया और मंगलवार की पूजा पर भी रोक लगा दी गई अब हिन्दुओं को मात्र बसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को 1 से 3 बजे तक नमाज पढऩे की अनुमति दी गई । यह प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा । 6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक परिसर क्षेत्र में सभी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया ।
वर्ष 2003 से आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आदेश के बाद परिसर में हिन्दुओं को पुनः मंगलवार को बगैर फूल-माला के पूजा करने की अनुमति दी गई और पर्यटकों के लिए भी भोजशाला खोली दी गयी । जिससे 18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में मुसलमानों ने जम कर हँगामा किया | जिससे शहर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैल गई । पूरे शहर में दंगे हुये । उस समय राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा सरकार थी । केंद्र सरकार ने तीन सांसदों की कमेटी बनाकर जांच कराई ।
वर्ष 2013 में भी बसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन आने पर धार में माहौल बिगड़ गया था। हिन्दुओं के जगह छोड़ने से इनकार करने पर पुलिस को हवाई फायरिंग और लाठीचार्ज करना पड़ा था। इसके बाद आज भी न तो हिन्दु ना ही मुसलमान जगह छोड़ने को तैयार हैं |