आप देशवासियों के लिये अपना पूरा जीवन लगा देने वाले भाई राजीव दीक्षित जी #Youtube Channel से जुड़े ! Subscribe Now
loading...
पूर्व मुख्यमंत्री एवं विपक्ष के नेता प्रेम कुमार धूमल ने रविवार को ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र की पंचायत मझीण के गांव फकेड़ में नवनिर्मित माधव गो संवर्द्धन केंद्र का उद्घाटन किया। इस मौके पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए धूमल ने कहा कि गाय को हम माता कहते और मानते हैं, लेकिन उसका हर जगह अपमान व तिरस्कार हो रहा है, जो अत्यंत दुखदायी है। गो रक्षा व गोमाता की सेवा करने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा। भाजपा के शासन में पशु सदन बनाने के लिए काफी काफी प्रयास किए गए थे। आज गो सदनों में गाय के गोबर से कई प्रकार के उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। राज्यपाल ने अपने निवास में स्वदेशी गाय रखी हैं, जिनका दूध वे इस्तेमाल करते है।
कर्नल रूप सिंह ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। गो सेवा समिति मंडी के संरक्षक अभिषेक गिरी ने भी लोगों को गाय के महत्व की जानकारी दी। माधव गो संवर्द्धन केंद्र फकेड़ मझीण के संचालक डॉ. अशोक कुमार ने कहा कि उन्होंने साढ़े तीन सौ कनाल भूमि पर केंद्र खोलकर लोगों को संदेश दिया है कि वह भी दिल से गाय की सेवा कर पुण्य कमाएं। इस मौके पर पूर्व मंत्री रमेश धवाला, नादौन के विधायक विजय अग्निहोत्री, किशन कुमार, कर्णवीर सूद, देसराज भारती, सौरभ शर्मा सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे।
कृषि ग्रामीण व्यवसाय में दुग्ध उत्पादन किसानों के लिए सबसे ज्यादा आसान और फायदेमंद है। किसानों के पास विभिन्न फसल से चारा आसानी से मिल जाता है। इसीलिए भारत में दुग्ध उत्पादन की लागत दुनिया में सबसे कम रहती है। लेकिन डेयरी का सही तरह से प्रबंधन न होने के कारण किसानों को इसमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। देश में घरेलू स्तर पर दुधारू पशु पालने वाले लोग आमतौर पर दस से पंद्रह पशु पालते हैं।
इतने पशुओं की डेयरी लघु स्तर पर ही कहलाएगी। सालभर दूध देने के कारण गाय की उपयोगिता ज्यादा है। किसानों द्वारा चलाने वाले लघु डेयरी फार्म के लिए गाय पालन करना लाभकारी है।
पशुओं का चयन
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के वरिष्ठ वै ज्ञान िक डॉ.एम.पी. सिंह का कहना है कि पशुओं की उत्पादकता तीन कारकों पर निर्भर करती है। पहला गाय की नस्ल का अनुवांशिक गुण, दूसरा- जिस क्षेत्र में पालन किया जाना है, वहां का मौसम, पोषण और पशुओं के रोग, तीसरा- परिस्थितियों के अनुसार पशुओं के ढलने की क्षमता। देसी नस्ल की गाय दूध जरूर कम देती हैं, लेकिन इनमें रोगों और मौसम में बदलाव सहने की क्षमता संकर नस्ल की गाय की तुलना में अधिक होती है।
छोटे किसानों के लिए उनके क्षेत्र के अनुसार अच्छा दूध देने वाली देसी नस्ल की गाय उपयुक्त रहती हैं। इनमें साहीवाल (1400-2500 ली. दूध प्रतिवर्ष), लाल सिंधी (1300-2200), हरियाणा (1200-1500), गिर (1400-1900), थारपारकर (1100- 1900) नस्ल की गायें प्रमुख हैं। शुद्घ नस्ल की गायें न मिलने की स्थिति में ज्यादा दूध देने वाली कुछ स्थानीय संकर नस्लों की गायें पाली जा सकती हैं। इन सभी नस्लों की गाय का मूल्य उनकी दूध देने की दैनिक क्षमता के अनुसार तय होता है। इनकी कीमत करीब 2,000 से 2,500 रुपये प्रति किलोग्राम दूध के अनुसार होगी।
डेयरी के लिए जरूरी स्थान
छोटे किसानों के पास उपलब्ध स्थान के मुताबिक ही पशुओं का पालन करना होता है। आमतौर पर दूध न देने वाली बछिया के लिए 2.5-3 वर्ग मीटर की जरूरत होती है। दूध देने वाली गाय को 3.5-5 वर्ग मीटर तक की आवश्यकता होती है। शेड हवादार होना चाहिए और बीच में गर्म हवा के निकलने के लिए जगह होनी चाहिए। कम जगह होने पर पशुओं के खाने के लिए नादें अलग बनाई जा सकती हैं। वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. हेमंत पंत के अनुसार नाद की गहराई करीब 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए और नाद के दोनो कोने में पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।
पशुओं में रोगों से बचाव
डॉ. हेमंत पंत का कहना है कि आमतौर पर डेयरी पशुओं में थनैला रोग का काफी प्रकोप होता है। यह रोग सही देखभाल के अभाव में होता है। सिर्फ थोड़ी सी सावधानी से पशुओं को थलैना रोग से बचाया जा सकता है। थनैला रोग के कारण प्रभावित थन में खराब दूध आता है, जिसे बाकी दूध में मिलाने से सारा दूध खराब हो जाता है।
इससे बचाव के लिए हमेशा दूध निकालने से पहले एक मग में पानी में पोटेशियम परमाग्नेट (लाल दवा) मिला लें और थनों को अच्छी तरह इस घोल से साफ कर लें, इसके बाद दूध निकालें। गाय का दूध रोजाना पूरी तरह निकालना चाहिए। ऐसा न होने पर संक्रमण हो सकता है। दूध निकालने के बाद थनों को डिटॉल के पानी से साफ कर लें, इससे थन में संक्रमण होने की संभावना काफी कम हो जाती है। इसके अलावा समय पर पशुओं को टीके लगवाएं, जिससे खुरपका-मुहंपका रोग और गलघोंटू जैसे रोगों की रोकथाम हो सके। पशुओं के शरीर पर चिपकने वाले पिस्सुओं और अन्य परजीवियों की रोकथाम करें।समय -समय पर ग्रोवेल एग्रोवेट कि दवाएं दें जो कि काफी प्रभावकारी है।
डेयरी फार्म से आय
गाय पालकर दूध उत्पादन करके किसानों को होने वाली आय कई बिंदुओं पर निर्भर होती है। अगर पशुपालक के पास अपने खेत का चारा है तो निश्चित ही उसका पशु पालने का खर्च कम होता। इससे उसकी आय बेहतर होगी। लेकिन यह तय है कि डेयरी का प्रबंधन ठीक ढंग से किया जाए तो पशुओं के रोगों से दूध उत्पादन में आने वाली बाधा से बचा जा सकेगा। इसके अलावा रोगी पशु के इलाज के खर्च से भी निजात मिलेगी।