चमत्कार को नमस्कार - पाखंड कि जाल में फँसी मानवता
ओ३म्
सबसे पहले आपको एकदम ताजी घटना बताता हूँ । शायद आपने सुना भी होगा । इस साल फरबरी माह (2015) की बात है हजारीबाग (झारखंड) के एक गाँव से होकर बन रहे नये रेलवे ट्रक में आचानक चमत्कार होने लगा । वह चमत्कार ये था की ट्रेक की दोनों पट्टरीयाँ एक जगह सट्टने लगी थी वह भी समयानुसार । मतलब सुबह ८ बजे से सट्टना शुरू होती थी तो धीरे-घीरे ११ बजे सट्ट जाती थी और उसके उपरांत दोनों फिर धीरे-घीरे ३ बजे से दुर होना शुरू होकर ६ तक पुर्व की स्थिति में आ जाते थे । किसी स्थानीय चरवाह ने ये चमत्कार प्रथम् देखा और अपने गाँव वालों को बताया । धीरे-धीरे दुर-दराज के लोग उस अद्भुत चमत्कार को देखने आने लगे । वहाँ भीड़ बढने लगी तो मेला सा हो गया । कुछ स्थानीय बुध्दीजीवयों ने तो फटाफट दुकानें लगा दी । कोई चाय तो कोई पान तो कोई नास्ते का । लोग तरह -तरह के कयास लगाने लगे थे । एक मत था वहाँ कोई "नागदेवता" हाँ जिनके प्रकोप से ही ये चमत्कार हो रहा था तो वहीं दुसरा मत किसी अनजान देवता कि नयी कहानी गढ रहा था तो तिसरा मत देवता नही किसी देवी के चमत्कार कि दुहाई दे रहा था । और फिर वही हुआ जो इस देश में पिछले ४००० बर्षों से होता आ रहा है । अर्थात् लोगो नें वह पुजा - पढ शुरू कर दी । ध्यान रहे की ये लोग हिन्दू ही थे जो फुल , फल और माला आदी चढाने लगे । कोई कथा वाचक कथा भी सुनाने लगा । यूँ कहिये की पुरा क्षेत्र आचनक धार्मिक रंग में रंग सा गया था । लेकिन अपसोस ! मुसकिल से एक महीना गुजरा ही था की जैसे ही रेलवे को संज्ञान आया तुरंत वह पट्टरी ही ऊखाड़ फेका । रेलवे के टेकनीशीयन / इंजीनीयरों का कहना था की इस पट्टरी में प्रकृती यानी धातु में दोष था जिस वजह से धुप में गर्म होकर पटिटरीयाँ लम्बी होने से बैंड (मुड़ना) हो जाती थी जिसकी वजह से सट्ट दोनों जाते थे और इसि प्रकार शाम को ठंडा होकर सुकड़ जाने से यह पुर्व कि स्थिति आ जाती थी । समान्तः सभी पटरीयाँ मे ये दोष होता है इसके निवार्ण हेतू ही टेंपरेचर ऑब्जर्व करने के लिए लाइन में बीच-बीच में एसएजे (स्वीच एक्सपेंशन ज्वाइंट) लगाया जाता है । शायद वहां नही लगाया गया था ।
कितने आश्चर्य कि बात जिसे यवपट्टरी को लोगों नें देवता बना लिया था उसे रेलवे ने सीधे ऊखाड़ फेका । अब इसमें गलती किसकी रेलवे कि जो उस पट्टरी का चमत्कार न समझ पाया या उन लोगों कि जिन्होंने धातु विज्ञान को न समझ कर एक जड़ , धातु से बनी पट्टरी को ही देवता बना लिया ?
उक्त घटना एक उदारहण मात्र है । ऐसे बहुतों घटना आप को अपने आस-पास भी किसी न किसी रूप में मिल जायेगें । दरासल ये मुर्खता मनुष्य ईश्वर के वास्तविक गुण , कर्म और स्वभाव को न समझ कर करतें हैं । ऐसा नही है कि ऐसे घटना केवल हिन्दूओं में ही होती है । ईसाई , ईस्लाम और बौध्द सबमें होती है मगर बहुत कम चुँकि ईसाई व ईस्लाम एकेश्वर बादि है (यहाँ हम इस्लाम/ ईसाई का महिमामंडन नही कर रहे हैं । एकेश्वर तो हमारे सत्य सनातन वैदिक धर्म कि मान्यता थी मगर वैदिक से हिन्दू होते - होते ये समाप्त हो गया और लोगो ने अपनी कल्पलाओं से नये -नये ईश्वर को जन्म दिया । ईस्लाम/ईसाइ में एकेश्वर का सिध्दांत भी इन्होने वैदिक धर्म से ही चुराई है और चोर तो चोर होता है । ) एकेश्वरबादी होने से ह़ी ईस्लाम/ईसाइ अन्य किसी को ईश्वर नही मानते । और बौध्द नास्तिक हैं ( नास्तिक कैसे ये यहाँ का विषय नही है ) । लेकिन अक्ल के दुश्मनों हिन्दूओं में देवता की कोई निश्चित सख्याँ भी नही है । कोई कहता है 13 करोड तो कोई कहता है 33 करोड़ है । सत्य तो ये है कि देवता 33 कोटी के हैं । लेकिन इसके बाबजूद भी हर रोज पुरे भारत में हिन्दूओं के नये-नये देवता पैदा होते रहते है । ये नये - नये देवता पैदा करने का ठेका प्रथम् हिन्दू पंडित ने लिया था मगर अब आम हो गया है । इसके पीछे एक मात्र उदेश्य रहता है ठगी कर आजीवका का प्रबंध करना । और ठगी के लिये अधिक से अधिक पांखड फैलना। और इन सब के लिये प्रथम् कोई चमत्कार की अवश्यकता होती है । किसी विद्वान ने कहा है "चमत्कार कुछ नही होता सब भौतिक घटानाऐं व संयोग होता है" मगर ये बाद हमारे अक्ल के दुश्मन भाईयों को कौन समझाये ? इनका दिमाग तो पहले ही हिन्दू पंडित जी ने हैक (अपहरण) कर लिया है । पोपजी( हिन्दु पंडित ) ने इन्हे कुछ मंत्र दिया है जिसके आधार पर हमारे अक्ल के दुश्मन भाई तर्क देते है :--
१. धर्म के मामले मे तर्क नही करते केवल विश्वास करते है |
२. मानो तो देव न तो पत्थर |
३. यह हमारी सनातनी परम्परा है इसे कैसे छोड़ दे ??
४. सबकी अपनी अपनी सोच है और सबको अपने तरीके से जीने का हक है | फिर कहते है जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तीन तैसी | यानी धर्म और कर्म का नाम आते ही बुद्धि पर ताला डाल जी जाती है और केवल ये फालतू के कुतर्क अन्दर रह जाते है |
१ बीना तर्क किये सत्य असत्य का निर्णाय नही हो सकता । तर्कहीन मनुष्य पशु समान है । बीना सत्य जाने विश्वास करना विश्वास नही अपितू अंधविश्वास है ।
२ मानो तो चीनी न तो बालू , मानो तो हलुवा न तो गोबर , मानो तो आटा न तो मिट्ट क्यों नही ? आपके मानने या न मानने से सत्य नही बदलता ।
३ आज १००-१५० बर्ष पर्व तक लोग बाल विवाह , सती प्रथा और बलि प्रथा को भी सनातन परम्परा
बताते थे उसे क्यों छेड़ दिया ? सनातनी ने मोबाईब , टीवी आदी का इस्तमाल भी नही किया तो आप कियों परम्परा भंग कर रहे हो ?
५ मनुष्य जीवन पुरूषार्थी बनकर शरीरिक , मांसिक और समाजिक उन्नति हेतू मिला है न कि अपने-अनने तरीके से निर्थक जीवन हेतू । मनुष्य एक समाजिक प्राणी है ।
जाकि रही भावना जैसी .. नही नही आपकि भवना जैसी है ही नही । वह चमत्कार को नमस्कार करने वाली है । और चमत्कार को नमस्कार के प्रणाम स्वरुप आप लोगों ने इतने ईश्वर बना लिया है जिसकी गीनती थी हम नही कर सकते । गाँव का देवता , जात का देवता , जिला का देवता व प्रांत का देवता और न जाने कितने प्रकार से देवता बना लिया गया है । अयोध्या मे राम, मथुरा वृन्दावन मे कृष्ण, बंगाल मे दुर्गा, काली , महाराष्ट्र मे गणेश, जम्मू मे वैष्णव देवी , दक्षिण भारत मे कार्तिक, बाला जी , उड़ीसा मे जगन्नाथ स्वामी । इसके अतरिक्त आपकि चमत्कार को नमस्कार करने की प्रवृती से ही आज हिन्दूओं की ये हालत हुई है ।
कोई मुल्ला चाँद मियां यानी साँई बाबा को पुजता है , गुरू बार को उसका व्रत रखता है तो कोई निर्मल बाबा को सर्वज्ञ समझ बैढा है । कितने ही हिन्दू आज मिल जायेंगें आप को उन मुग्लों कि मजार पर जिन्होंने हिन्दू के घोर शोषण किया था । जिन्होने हिन्दू औरतों के समुहिक बलात्कार कर दो कौड़ी में बेच दिया करते थे अरब कि बजार में आज उसी दरिंदें कि मजार पर हिन्दू सर पटकता , चादर चढाता बहुतों मिल जायेगा । ये सिर्फ चमत्कार को नमस्कार करने का नतीजा है । हलत ये इनकी कि कोई ढोंगी पोप , बाबा , फकिर कह दे कि इस काले कुत्ते से कटवाने पर ही तुमें पुत्र होगा तो लोग ये करने में भी तनीक देर न करें । क्या करें बेचारे का अक्ल तो पहले से ही अपहरण किया जा चुका है । मनुष्य के पास सत्याsसत्य का निर्णाय करने हेतु बुध्दि है मगर आज मानवत पाखंड के फँसी नजर आती है । पता नही कब मानवता आजाद होगी? कब मनुष्य चमत्कार को छोड़ पुरूषार्थ को महत्व दैंगें ?
Like Facebook @[784029844976825:0]
प्रश्न :- तनोट मात मंदिर जो भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित है वहाँ १९६५ के युध्द के समय पाक ने ३००० बम फेंके थे परंतु उससे बाल भी बाका न हुआ और जो ४५० मंदिर परिसर में गिरे वह तो फटे ही नही ये चमत्कार नही तो और क्या है ? ये दैविक शक्ति नही तो और क्या है ? लेकिन तुम्हे ये बात समझ न आयेगी तुम तो ठहरे नास्तिक ।
उत्तर :- महोदय मैं नास्तिक कैसे हो सकता हूँ ? नास्तिकः वेदनिंदक अर्थात् नास्तिक वेद निंदक होते हैं ये मनु स्मृती कहती है और मैं तो वेद को मानता हूँ । मैं वेद के उस न्यायकारी , सर्वज्ञ , सर्वशक्तिमान , सर्वव्यापक , निराकार , सृष्टी रचैता व प्रलय कर्ता ईश्वर को ही प्रतिदिन ध्यान करता हूँ । रही बात आपके प्रश्न की तो महोदय जो ४५० बम मंदिर परिसर में गिरे थे वह तकनीकी खराबीयों से बम थे ही नही मुर्दा बम थे अर्थात् वह बम आज भी नही फट सकते और बांकी ३००० बम लक्ष्य पर नही लगा था । इसमें कोई दैेविक शक्ति व चमत्कार वाली बात नही है । पहले ही कह चुँकी ही चमत्कार होता ही नही है बस विज्ञान व संयोग होता है । बम न फटना बनने वाले कि त्रुटी से हुआ और लक्ष्य पर न गिरना सैनिको कि लापरवाही या अनुभव कि कमी से हुआ न कि कोई चमत्कार था । यदि कोई दैविक शक्ति व चमत्कार होता ही है तो आयोध्या में क्यों नही हुआ ? बाबर ने आंखिरकार राम मंदिर ध्वस्त कैसे कर दिया ? अब तक रामलला तम्बु में क्यों खरे हैं ? द्वारिका के सोमनाथ में चमत्कार क्यों नही हुआ ? क्यों बार-बार मंदिर मुगल तोड़ते रहें ? कैसे महमूद गज़नवी ने १०२४ मे ५००० सैनिक से ५०००० शिव भक्तों व पंडितों को मार गिराया ? क्यों भक्त और पंडित शिव लिंग पर माथा पटकते व शिव को रक्षा हेतू पुकारते रह गये ? आंखिर शिव क्यों नही आये ? यदि वे ५०००० लोग शिव को पुकाने कि जगह स्वंय मुगलों से मुकाबला करते तो सम्भव था कि मुगल सैनिक भी मारे जाते और बहुत हिन्दू बच जाते । मगर अक्ल तो अपहरण हो चुका था तो बेचारे मारे गयें ।
मैं ये लेख किसी की भावना आहत करने के उदेश्य नही लिखा हूँ । मेरा मात्र इतना उदेश्य की लोग चमत्कारों से बाहर निकलें । स्वयं को जाने कि वह मनुष्य है उसमें बुध्दी है सत्य असत्य के निर्णाय हेतू और फिर किसी भी प्रकार से अंधविश्वास में न फँसे । मनुष्य कर्म पर विश्वास कर मनुष्य जीवन का उदेश्य शरीरिक , मांसिक और समाजिक उन्नति के लिये पुरूषर्थी बने ।
आपने पुरा लेख पढा धन्यबाद ।
नमस्ते ।