आप भले ही साई पूजक हों या निंदक, यह आ लेख अवश्य पढ़ें।
शंकराचार्य जी साँईं बाबा को भगवान नहीं मानते हैं ...और इसलिए नहीं मानते, क्योंकि हमारे वेदों, पुराणों,उपनिषदों या अन्य किसी भी धर्म ग्रंथों में एक "फकीर" की पूजा का निषेध है....मने , उन्हें भगवान नहीं बनाया जा सकता है...ना ही माना जा सकता है ।
क्या इन बातों से आप सहमत हैं..??.... मुझे लगता है कि इस बात से आप पूरी तरह से सहमत होंगे।
पर एक नई बात सामने आई है कि ....शिर्डी संस्थान वालों ने शंकराचार्य जी पर एक FIR दर्ज कराई है कि वे साँईं को भगवान क्यों नहीं मानते हैं??..और शंकराचार्य जी यह कह रहे हैं कि चाहे मुझे जेल हो जाए पर मैं विधर्मी साँईं को भगवान नहीं बोलूँगा।
हद हो गई भाई ये तो...साँईं समर्थकों एवं उनके संस्थान की जरा हेकड़ी तो देखें...आज वे केस डाल रहे हैं और सनातन धर्म के शिखर पर बैठे व्यक्ति को असहाय होकर ऐसा कहना पड़ रहा है।
मेरा सवाल उन सनातन धर्मियों से है कि अब यहाँ तक नौबत आ गई है ..? यह मुद्दा राजनैतिक नहीं है...इसका मतलब ये होगा कि इस विषय पर कोई विचार भी नहीं करेगा????
अब देखिए...साँईं के प्रचारकों ने पहले तो शिर्डी में उनके मजार पर एक मंदिर बनाया...फिर उसकी देखरेख के लिए एक संस्थान बनाया..नाम दिया "शिर्डी साँईं संस्थान" । इसी संस्थान से वे अपने षडयंत्रों का संचालन करते रहे। मात्र पैंतीस चालीस सालों में उन्होंने पूरे भारतवर्ष के अनेको सनातनी हिन्दू मंदिरों में अपनी पैठ बना ली । साथ ही साथ अपने मंदिर भी बना लिए ।
हिन्दू देवी देवताओं को साँईं के नाम से जोड़ना शुरू कर दिया...जैसे ..साँईं राम , साँईं कृष्ण , साँईं शिव आदि आदि-आदि। ..............
.सनातनी हिन्दुओं ने उनका प्रतिकार नहीं किया...क्योंकि , वे षड्यंत्र कारी हमारे बीच के ही थे। विदेशी ताकतों के द्वारा सनातन को समाप्त करने के उनके उद्देश्य में यह संस्थान अपना अमूल्य योगदान दे रहा है।
जिस प्रकार से इसाई एवं इस्लाम के प्रचार के लिए विदेशी फंड यहाँ के कई संस्थानों को उपलब्ध कराया जाता है..ठीक उसी प्रकार इस संस्थान को भी बेनामी दान दाताओं के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है।
आप कहीं भी देख लें...हमारे अनेको मंदिर जहां वित्तीय परेशानियों से जुझते है वहीं इनके किसी भी मंदिर में फंड की कमी नहीं होती है..दिन दुनी रात चौगुनी विस्तार करते रहते हैं।
सनातन धर्म को नुकसान पहुँचाने का यह तीसरा और अंतिम प्रयास है..ऐसा मैं मानता हूँ । पहले हमलावर मुस्लिमों द्वारा , बाद में अँगरेजों के द्वारा , और अब साँईं षडयंत्रकारियों के द्वारा। अँगरेजों ने हमारी शिक्षा पद्धति को अपने मुताबिक बना कर अपनी योजना को सफल बनाया...जिसमें मैकाले का योगदान अविस्मरणीय है।
......वेद की गलत व्याख्या करके दुनिया को भरमाने का काम मैक्समुलर ने किया।
....इन दोनों की वजह से हम अपने मूल से अलग होकर एक ऐसी पीढ़ी बना चुके हैं जिसे ये नहीं पता कि हम जा किस दिशा में रहे हैं??....अब यही भटकी हुई पीढ़ी इन नए षडयंत्रकारियों की शिकार हो रही है।
सनातन धर्म के शिखर पर बैठे व्यक्ति को इस असहाय अवस्था तक पहुँचाने में आपका भी कम योगदान नहीं है। आज उन पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे साँईं (चाँद मियाँ) को भगवान क्यों नहीं बोल रहे हैं???
भाइयों , आप शंकराचार्य जी से व्यक्तिगत तौर पर सहमत-असहमत हो सकते हैं , परन्तु आप कहाँ खड़े हैं स्वयं तय कर लें। साँईं के अतिक्रमण को जरा समझें.....हम कीर्तन करते हैं , हरे राम ,हरे राम ,राम-राम,हरे-हरे ...हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
.......अब इसमें आपको कोई लय नजर नहीं आती है।...परन्तु जब साँईं गीत बजता है...साँईं राम साँईं श्याम साँईं भगवान शिर्डी के साँईं हैं सबसे महान ।
..........इसमें आपको लय नजर आती है...इसे अपने फोन का रिंगटोन बनाते हैं।....और आखिरी शब्दों पर गौर करें..""शिर्डी के साँईं हैं सबसे महान""...मने..इनके उपर राम या श्याम कोई नहीं ।
इतनी जल्दी ये कैसे महान बन गए भई...???...क्या गांधी, नेहरू,पटेल, बोस,टैगोर , सावरकर , भगतसिंह, आजाद..किसी के मुँह से , किसी के लेखों में साँईं का नाम आया है..??..बताए कोई..?
प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, दिनकर आदि ने कभी भी साँईं का जिक्र किया..?? जरा सोचें..और अपनी मूर्खता पर हँसें ।
अब देखें..हमारे इष्टों का हाल क्या बना दिया है इन्होंने??साँईं की प्रतिमा के पैरों के नीचे बजरंग बली की प्रतिमा रखी जा रही है...वे सेवक की भाँति खड़े हैं...सभी इष्ट जैसे..राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा आदि...साँईं के आगे गौण हो गए हैं।
क्याअपने इष्टों पर से हमारा विश्वास उठ चुका है???
क्या हमारी मनोकामना पूरी करने में वे अक्षम हो गए हैं??आप एक काम क्यों नहीं करते.?..आप अपना अलग संप्रदाय बना लें...फिर कोई कुछ नहीं कहेगा आपको ।
मैने २४ अप्रैल को एक पोस्ट लिखी थी साँईं के उपर, जिसमें मैंने बड़े ही सम्मानित तरीके से अपनी बातें कही है।
पर आज जब शंकराचार्य जी को इतना असहाय पाता हूँ तो मेरे मन में साँईं पूजकों एवं इनके संस्थान के प्रति घृणा पैदा हो रही है। वैसे मैं व्यक्तिगत तौर पर घृणा करने के लिए स्वतंत्र हूँ।...
वैसे मैंने पिछले साल ही यह प्रण लिया था कि जिस घर में साँईं की पूजा होती हो..उस घर का जल भी ग्रहण नहीं करूँगा।
जो मित्र मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं उनसे मैं क्षमा याचना नहीं करूँगा।
अब FIR वाले मसले पर आते हैं.। चारो पीठों के शंकराचार्य , अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (तेरह अखाड़े) , नागा संन्यासी , एवं सभी संत महात्मा की ओर से महन्त नरेन्द्र गिरि जी ने एक विज्ञप्ति जारी कर..साँईं संस्थान को यह कहा गया है कि वे अपने FIR को 19 जुलाई 16 ( गुरू पूर्णिमा) तक वापस ले लें...अन्यथा इसके लिए आंदोलन चलाया जाएगा।
ये तो हद हो गई..गुहार लगानी पड़ रही है..उस सनातन को जो आदि काल से है.और किससे लगा रहा है?...उस संस्थान से जो मात्र पचास वर्ष भी नहीं हुए...।
सोए रहो सनातनियों आवाज मत उठाना..
अपनी आने वाली पीढ़ियों को राम-कृष्ण-शिव की याद को हमेशा के लिए विस्मृत करवा कर ही छोड़ना....
सनातन धर्म की जय हो.....अधर्म का नाश हो..।