भारत की मिट्टी कण कण से शेर,शेरनियो को जन्म दिया हैं समय समय पर अश्शूरो का दमन करने भारत माता को मुक्त करवाने एवं भारत की संस्कृति कला मंदिरों की रक्षा के लिए नर से लेकर नारी तक योद्धा बनी इसलिए भारत भूमि को कहा जाता हैं वीर भोग्य वसुंधरा ।
आधुनिकता का दंभ भरने वाली पीड़ी
कौन कहता है हिन्दु धर्म मे स्त्रीयों को स्वातंत्र्यता नही थी ?इतिहास न पढनेवालो कमअक्ल लोग ही ऐसा कह सकते है
रानी रुदाबाई को शस्त्र उठाने कि स्वातंत्र्यता थी, इससे ज्यादा और क्या स्वातंत्र्यता किसी मनुष्य को दि जा सकती है ?मेरा तो यही मत है
कि आजकल की मिलनेवाली स्वातंत्र्यता (-नैतिकता=छूट) से यह स्वातंत्र्यता जो बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय थी वह काफी अच्छी है !
क्यो क्या कहते हो ?
जिसने सुल्तान बेघारा की सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था एवम दूसरी ओर धर से सर अलग करके पाटन राज्य की बीचो बिच टांग दिया था :
१५वी शताब्दी इसवी सन १४६०-१४९८ पाटन राज्य गुजरात से कर्णावती (वर्तमान अहमदाबाद) के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला, यह वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई (उर्फ़ रूपबा) पाटन राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था । इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे,पर कामयाबी किसी को नहीं मिली.सन १४९७ पाटन राज्य पे हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की ४०००० से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई ।
राणा वीर सिंह की फ़ौज २६०० से २८०० की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटन बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे इनमे ज्यादा फ़ौज की आवश्यकता उतनी नहीं होती थी राणा जी के रणनीति ने ४०००० की जिहादी लूटेरो के फ़ौज को धुल चटाया थी, परन्तु द्वितिय युद्ध में राणा जी के साथ रहनेवाले निकटवर्ती मित्र घन्नू साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोका दिया एवं सुल्तान बेघारा के साथ मिलकर राणा वीरसिंह वाघेला को मारकर उनकी स्त्री एवं धन लूटने की योजना बनाई , सुल्तान बेघारा ने साहूकार को बताया अगर जीत गए युद्ध में तो जो मांगोगे दूंगा तब साहूकार की दृष्टि राणा वाघेला की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान बेघारा की नज़र रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की एवं पाटन राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर राज करने की थी ।
साहूकार जा मिला सुल्तान बेघारा से और सारी गुप्त जानकारी उसे प्रदान करदी । जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रूपबा एवं पाटन की गद्दी को हड़प जा सकता था । सन १४९८ इसवी (संवत १५५५) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिरसे साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगनी सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगनी सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लढाई की, जब राणा जी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भारोसेमंद साथी साहूकार ने पीछे से वार कर दिया,जिससे राणा जी की रणभूमि में मृत्यु होगयी ।
साहूकार ने जब सुल्तान बेघारा को उसके वचन अनुसार राणा जी की धन को लूटकर उनको देने का वचन याद दिलाया तब सुल्तान बेघारा ने कहा “एक गद्दार पर कोई ऐतबार नहीं करता हैं गद्दार कभी भी किसी से भी गद्दारी कर सकता हैं” । सुल्तान बेघारा ने साहूकार को हाथी के पैरो के तले फेंककर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं साहूकार की कन्या को अपने सिपाही के हरम में भेज दिया।(और हर गद्दार का यही हाल होता जिहादी यवनों के लिए हर गैर मुसलमान काफ़िर ही होता है चाहे कितना वी उनके तलवे चाटलो आजकल के नेताओ)
सुल्तान बेघारा रानी रूपबा को अपनी वासना का सिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर १०००० से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा। रानी रूपबा के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा। रानी रूपबा जी ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे २५०० धनुर्धारी वीरंगनाये थी,जो रानी रूपबा जी का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी । रानी रूपबा जी न केवल सौंदर्य की धनि नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनि थी उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने को कहा सुल्तान बेघारा वासना ने अंधा होकर वैसा ही किया जैसा राणी जी ने कहा, और राणी जी ने समय न गवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतर दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया । सुल्तान बेघारा को मारकर रानी रूपबा ने सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था और उसके सर को धड से अलग करके पाटन राज्य के बिच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी वी दी की गई की कोई भी अताताई भारतवर्ष पर या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा ।
रानी रूपबा जी इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र ना कर पाए रानी रुदाबाई की २५०० धनुर्धारी वीरांगनाओं ने सुल्तान बेघारा के १०००० के लश्कर को परास्त किया था इस भयंकर युद्ध को इतिहास से मिटा दिया गया एवं मनगढ़ंत कहानी को इतिहास बना दिया गया ।
सुल्तान बेघारा के निकाह के प्रस्ताव को रानी रुदाबाई जी ने अडालज बावड़ी नामक पानी संग्रह करने का कुआँ बनाने के लिए मान लिया था,जिससे कृषि एवं राज्य में पानी की समस्या कभी ना आये. परन्तु यह इतिहास सम्पूर्ण गलत हैं क्यूंकि अडालज बावड़ी में मोहनजोदरो कला का इस्तेमाल किया हुआ हैं मोहनजोदारो सभ्यता कालीन कला केवल हिन्दू इस्तेमाल करते थे । रानी रूपबा से सुल्तान बेघारा के साथ हुए युद्ध को शादी में परिवर्तित कर दिया गया पर कहते हैं ना हर झूठ का अंत होता हैं वैसे ही इस झूठ का भी अंत यही होता हैं ।
( वेद , पुराण हर जगह यह लिखा हैं हिन्दू धर्म की उत्थान एवं पतन दोनों नारी के हाथो हैं इसलिए हमारे धर्म में नारी अर्थात देवीतुल्य होते हैं )
संदर्भ-:
The Rajputs of Saurashtra- पृष्ठ 151
Educational Britannica Educational (2010). The Geography of India: Sacred and Historic Places. The Rosen Publishing Group. pp. 269
http://hindutva.info/
By: छत्रपतीची वाघिन मनीषा सिंह
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