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यह सारा संसार जहां तक दिखाई पड़ता है संपूर्ण सृष्टि *भगवत्कृपा* का ही फल है ! जगत में हम जो कुछ भी देखते , सुनते , समझते हैं उसके नियंता स्वयं भगवान हैं ! भगवान से ही यह सारा जगत ओतप्रोत है :-- *ईश

भगवान श्री राम का नाम और उनका काम अद्भुत है। वे पुरुषों में सबसे उत्तम पुरुषोत्तम हैं। जिनकी आराधना महाबली हनुामन करते हैं उनके जैसा आदर्श चरित्र और सर्वशक्तिमान दूसरा कोई नहीं। उन्होंने जिसे भी छूआ व

संसार में जन्म लेने के बाद लगभग सभी भगवान को प्राप्त करना चाहते हैं *भगवत्प्राप्ति* करने के लिए अनेकों उपाय भी किया जाता है , परंतु यह सत्य है कि साधन , संयम , तप , त्याग , वैराग्य के बल से *भगवत्प्रे

1. बालकाण्ड- बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमें छल ,कपट , नहीं होता ।विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढ़ने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है , उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा नि

*भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए लोग अनेक प्रकार के विधान करते हैं , अनुष्ठान करवाते हैं , घंटों बैठकर जप किया करते हैं , भगवान नाम का स्मरण उच्चारण एवं कीर्तन किया करते हैं , परंतु उसे ऐसा लगता है कि य

काल चक्र निरंतर घूम रहा है बारंबार के आवागमन से भ्रान्त और क्लान्त जीव समूह संसार के दीर्घ पद पर अनिवार्य रूप से बढ़े चलेे जा रहे हैं ! ग्लानि शून्य आनंद अर्थात भूमासुख (ब्रह्मानंद) की खोज में ! लौकिक

संसार में भगवान को दयासागर कहा जाता है परंतु विचार कीजिए क्या यह उपमा उनके लिए पर्याप्त है ? शायद नहीं !  यह तो उनकी अपार कृपा का किंचित परिचय मात्र है ! समुद्र सीमाबद्ध है परंतु भगवान की दया असीम और

हम चर्चा कर रहे हैं *भगवत्कृपा के रहस्य की* ! जबाँ तक अब तक जाना गया है उसके अनुसार *भगवत्कृपा रहस्य* को समझ पाना बहुत सरल नहीं है ! सत्य तो यह है कि मनुष्य को सुख और दुख में , किसी महान पुरुष और पापी

संसार में लोग सांसारिक पदार्थों को प्राप्त करने के बाद अपने ऊपर *विशेष भगवत्कृपा* मानते हैं ! भौतिक साधन इकट्ठे हो जाना *भगवत्कृपा* नहीं है !  *भगवत्कृपा* का रहस्य बड़ा ही गूढ़ है माया के द्वन्द- फंद

*भगवत्कृपा* का रहस्य समझ पाना इतना सरल नहीं है ! मन में अनेकों प्रकार की भ्रांतियां समाई हुई है जिनके कारण हम *भगवत्कृपा* को नहीं समझ पाते हैं ! कुछ लोग तो यहां तक कह देते हैं कि यदि समान रूप से सभी ज

*भगवतकृपा* के महत्व का वाणी के द्वारा पूर्ण रूप से वर्णन किया जाना संभव नहीं है क्योंकि भगवान की दया का महत्व अपार है और वाणी द्वारा जो कुछ कहा जाता है वह थोड़ा ही होता है !  *भगवत्कृपा* के रहस्य को ज

यह कटु सत्य है कि *भगवतकृपा* के बिना प्राणी का कल्याण कदापि संभव नहीं है ! इस संसार पर *भगवान की कृपा* तो है ही किंतु इस लोक में सर्व विधि सर्वांगीण समुन्नति का एकमात्र साधन भी *भगवतकृपा* ही है ! उसके

थोड़ा सा कष्ट आ जाने पर  लोग भगवान के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं और कहने लगते हैं कि भगवान के यहां न्याय नहीं है ! जबकि कष्ट मिलना भी *भगवत्कृपा* ही हैं ! जब मनुष्य को कष्ट मिले तो यह विचार करना चाहिए

*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए भगवान की ओर बढ़ना पड़ेगा , अपना हाथ उनकी और बढ़ाना पड़ेगा ! जब हम अपना हाथ उनकी ओर बढ़ायेंगे तो वे दौड़कर हमारा हाथ पकड़ लेंगे क्योंकि भगवान स्वयं कहते हैं:- *ये यथा

संसार में निरंतर *भगवत्कृपा* बरस रही है परंतु हमारा ध्यान उधर जाता ही नहीं है ! हम *भगवत्कृपा* के दर्शन ही नहीं कर पाते ! हम भगवान की आज्ञा का पालन नहीं कर पाते , *भगवत्कृपा* की अवज्ञाु करते हैं , निर

सनातन धर्म में अध्यात्म का बहुत बड़ा महत्व है ! अध्यात्म के द्वारा ही आत्मा और परमात्मा का ज्ञान हो पाता है !  प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक बनने का प्रयास करना चाहिए परंतु यदि मनुष्य आध्यात्मिक उन्न

मानव जीवन बड़ा उतार-चढ़ाव भरा होता है ! मनुष्य को कोई न कोई दुख तथा सुख होता रहता है ! पूरे जीवन काल में मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों से होकर गुजरता है ! इन परिस्थितियों को देखकर मनुष्य समझता है कि ईश्

संसार में दो चीजें हैं पहला *ब्रह्म* दूसरा *ब्रह्मांड अर्थात संसार !* इन दोनों में विश्वसनीय कौन है ? किस पर विश्वास किया जाय और किस पर न किया जाय ? यह प्रत्येक मनुष्य को विचार करना चाहिए ! हमारे वेदो

भगवान की करुणा पर , उनके न्याय पर प्रत्येक व्यक्ति को विश्वास रखना चाहिए क्योंकि जहां विश्वास नहीं होता वहां फल नहीं प्राप्त होता ! जिस साधक को अपने बल - पुरुषार्थ पर भरोसा है , जो यह समझता है कि अपने

भगवान का प्रत्येक विधान मंगलमय होता है ! भगवान ने मनुष्य के हाथों कर्मों का अधिकार दे रखा है जो जैसा कर्म करता है उस पर उसी प्रकार की *भगवतकृपा* होती है ! कुछ लोग भगवान को अन्यायकारी अवश्य कह देते हैं

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