संसार में लोग सांसारिक पदार्थों को प्राप्त करने के बाद अपने ऊपर *विशेष भगवत्कृपा* मानते हैं ! भौतिक साधन इकट्ठे हो जाना *भगवत्कृपा* नहीं है ! *भगवत्कृपा* का रहस्य बड़ा ही गूढ़ है माया के द्वन्द- फंद में पड़कर मनुष्य *भगवतकृपा* के रहस्य को समझ नहीं पाता :--
*समझ न पाते हैं सभी , भगवत्कृपा रहस्य !*
*लख चौरासी घूमते , मानव माया बस्य !!*
(स्वरचित)
भगवान की यही माया जीवों को चौरासी लाख योनियों में भ्रमण कराती रहती है ! *भगवतकृपा* भौतिक संसाधनों में नहीं बल्कि *भगवद्भक्ति* में है | सांसारिक भोग पदार्थों के नाश के समय समझना चाहिए कि इन सबमें मेरी भोगबुद्धि और अासक्ति होने के कारण यह ईश्वर भक्ति के बाधक है ! अतः परम कृपालु भगवान ने मुझे कृपा बस अपनी और आकर्षित करने के लिए इन सब को हटाया है ! इसमें *परम भगवत्कृपा है* ! परंतु प्रायः लोग इसको भगवान का अन्याय समझते हैं और इन भोगपदार्थों के नष्ट होने पर भगवान को दोषी मानकर तरह तरह की बातें करते हैं इसीलिए कहा गया है :-
*सुख सम्पति पाइ के फूलि रहे ,*
*श्री भगवत्कृपा के गुन नित गावैं !*
*निर्द्वंद निरोग फिरइं जग मां ,*
*नित देवी देवता खूब मनावैं !!*
*तनिकौ दुख मिला तौ भूलें सब ,*
*पानी पी पी प्रभु का गरियावैं !!*
*"अर्जुन" अति गूढ़ कृपा प्रभु की ,*
*तेहि मूढ़ मनुष्य समझ नहिं पावैं !!*
(स्वरचित)
जिस प्रकार संसार में देखा जाता है कि पतंगे या किसी प्रकार के दूसरे जंतु प्रकाश को देखकर उस पर आसक्त हो जाते हैं , मोहवश उसमें उछल उछल कर पड़ते हैं और भस्म हो जाते हैं ! उनकी ऐसी दुर्दशा देखकर कोई कृपालु मनुष्य उस प्रकाश को वहां से हटा देता है या तो बुझा देता है ! इस कार्य में उस मनुष्य की उन पतंगों पर महान कृपा है , यद्यपि पतंगे इस बात को नहीं समझ पाते और वे प्रकाश को हटाने वाले को अत्यंत निर्दयी और महान शत्रु मानते हैं ! यह उनका अज्ञान है , यह उनकी भूल है ! इसी प्रकार जो मनुष्य *भगवत्कृपा* के रहस्य को नहीं जानते वे इन सब सांसारिक पदार्थों का अभाव होते देखकर नाना प्रकार से ईश्वर को दोष दिया करते हैं , परंतु भगवान तो परम कृपालु हैं इसलिए वे उनके अपराध की ओर नहीं देखते ! *मनुष्य को विचार करना चाहिए कि* मुझ पर परमकृपा करके भगवान ने पूर्व के पाप कर्मों से उऋण करने के लिए , भविष्य में पापों से बचाने के लिए और समस्त भोग सामग्री को प्रत्यक्ष क्षणभंगुर दिखाकर उनमें वैराग्य उत्पन्न करने के लिए इन सब का वियोग किया है , ऐसा समझकर जो सांसारिक पदार्थों के वियोग में भी *भगवत्कृपा* का दर्शन करते हैं वही प्रसन्न रहते हैं और वही *भगवत्कृपा* के रहस्य को ठीक से समझ सकते हैं !
*स्थिति चाहे जैसी भी हो ,*
*भगवान कृपा निशिदिन बरसाते !*
*सब सन्त - महन्थ कृपा करिके ,*
*दिन रैन यही हमको समझाते !!*
*सुख में दुख में निशि बासर में ,*
*बस भगवत्कृपा के दरश कराते !!*
*"अर्जुन" माया के प्रपञ्च फंसे ,*
*नर मूढ़ रहस्य समझि नहिं पाते !!*
(स्वरचित)
*भगवत्कृपा* का आंकलन लोग अपनी परिस्थिति के अनुसार करते हैं परंतु मनुष्य को सदैव सकारात्मकता के साथ *भगवत्कृपा* का अनुभव करना चाहिए ! मनुष्य यह समझना चाहिए कि जब उसका शरीर निरोग है तो उसका कारण एक ही है कि अपने निरोगी शरीर से भगवान को सर्वव्यापी समझकर सब में भगवान का दर्शन करते हुए दूसरों की सेवा करने के लिए , श्रेष्ठ पुरुषों का संग करके भगवान के गुण , प्रभाव , तत्व और रहस्य को समझने के लिए और उनके भजन - ध्यान का निरंतर अभ्यास करने के लिए *भगवान कृपा* करके मुझे निरोगी बनाए हुए हैं ! ऐसा समझकर क्षणभंगुर शरीर को जो परम कृपालु परमात्मा के काम में उपर्युक्त उद्देश्य के अनुसार लगा देता है वही *भगवत्कृपा* के रहस्य को ठीक से समझता है ! शरीर रोग ग्रस्त होने पर भगवान को दोष ना दे करके यह समझना चाहिए कि पूर्व के पाप कर्मों से उऋण करने के लिए , भविष्य में पापों से बचाने के लिए , शरीर में वैराग्य उत्पन्न करने के लिए और बार-बार अपनी याद दिलाने के लिए परम कृपालु भगवान ने हमें पुरस्कार स्वरूप यह रोग दे दिया है ! यह समझ कर जो रोग आदि की प्राप्ति में भी किसी प्रकार की चिंता ना कर आनंद पूर्वक अपने मन को निरंतर भगवान के चिंतन में लगा देता है तथा भगवान के उपर्युक्त उद्देश्यों को समझ समझ कर सदा हर्षित होता रहता है वही *भगवत्कृपा* के रहस्य को ठीक से समझ पाता है |