हम चर्चा कर रहे हैं *भगवत्कृपा के रहस्य की* ! जबाँ तक अब तक जाना गया है उसके अनुसार *भगवत्कृपा रहस्य* को समझ पाना बहुत सरल नहीं है ! सत्य तो यह है कि मनुष्य को सुख और दुख में , किसी महान पुरुष और पापी के साथ मिलन और वियोग में तथा संसार में किसी भी प्रकार का संबंध होते समय सदा *भगवत्कृपा* का दर्शन करना चाहिए ! अच्छे पुरुषों से भेंट हो तो समझना चाहिए कि इनके गुणों और आचरणों का अनुकरण करवाने के लिए , उनके उपदेशों को और आचरणों को काम में लाकर भगवान में प्रेम बढ़ाने के लिए भगवान ने *परम कृपा* करके इनसे मेरी भेंट कराई है ! उनके साथ वियोग होने पर यह समझना चाहिए कि ऐसे पुरुषों का संग सदा रहना दुर्लभ है , इस महत्व को समझाने के लिए , पुनः उनसे मिलने की उत्कट इच्छा उत्पन्न करने के लिए और उनसे प्रेम बढ़ाने के लिए *भगवत्कृपा* करके ही उनसे वियोक कराते हैं |
*साधु मिलें दुर्जन मिलें , हो सम्बन्ध बिछोह !*
*कृपा रहस्य जो जानते , उन्हें न होता मोह !!*
*भगवत्कृपा के बिनु यहाँ , होत न कोई काम !*
*कृपा रहस्य बिचार कर पावहिं मन बिश्राम !!*
(स्वरचित)
यह तो साधु पुरुषों से मिलने की बात कही गई है ! *इसके विपरीत यदि दुष्ट दुराचारी से भेंट हो जाए तो* भी समझना चाहिए कि दुराचारों से होने वाली प्रत्यक्ष हानियों को दिखाकर दुर्गुण और दुराचार में विरक्ति उत्पन्न करने के लिए भगवान ऐसे मनुष्यों से भेंट कराते हैं और जब उनका वियोग हो तो यह समझना चाहिए कि कुसंग के दोषों से बचाने के लिए ही भगवान अपनी कृपा से ऐसे दुराचारी मनुष्य से वियोग करते हैं ! *दुखी मनुष्य और जीवो से भेंट होने पर* समझना चाहिए कि अंतःकरण में करुणा भाव की वृद्धि करने के लिए , उनकी सेवा करने का अवसर प्रदान करने के लिए और संसार से वैराग्य उत्पन्न करने के लिए यह *भगवत्कृपा* हम पर हुई है कि दुखियों से हमारी भेंट कराई ! और *जब सुखी मनुष्य और जीव से भेंट हो तो* यह समझना चाहिए कि इन सब को सुखी देखकर प्रसन्न होने की शिक्षा देने के लिए , भगवान ने कृपा करके उनसे भेट करायी है ! इन सबके वियोग में यह समझना चाहिए कि जन समुदाय की आसक्ति को दूर करके संसार से वैराग्य उत्पन्न करने के लिए और एकांत में रहकर भजन ध्यान का अभ्यास करने के लिए ऐसी *भगवत्कृपा* हुई है ! इसी तरह अन्य सब घटनाओं में , सभी अवस्थाओं में सदा सर्वदा *भगवत्कृपा* का दर्शन करने का अभ्यास करके मनुष्य सब जीवों पर जो *भगवत्कृपा* प्रवाह बह रहा है उसके रहस्य को समझ कर उससे विशेष लाभ उठा सकते हैं !
*कृपामूर्ति दीनबन्धु कृपा के अथाह सिन्धु ,*
*करिके दया निज कृपा बरसा रहे !*
*गुण में भी दोष में भी जड़ में भी चेतन में ,*
*प्रत्यक्ष अपनी कृपा को दरसा रहे !!*
*जितना जो जान पाया उतनी कृपा भी पाया ,*
*भगवत्कृपा को जानि सन्त हरषा रहे !*
*बेदन की बात को जो हंसि के हैं टालि देत ,*
*निज को ही हरि की कृपा को तरसा रहे !!*
(स्वरचित)
करुणा सागर कृपामय परमेश्वर की सब जीवों पर इतनी कृपा है कि संपूर्ण रूप से तो मनुष्य उसे समझ ही नहीं सकता ! मनुष्य अपनी बुद्धि से अपने ऊपर जितनी अधिक से अधिक कृपा समझता है उतना समझना भी बहुत ही उत्तम है ! मनुष्य *भगवत्कृपा* की यथार्थ रूप से तो कल्पना भी नहीं कर सकता *भगवत्कृपा* जब होती है तो विष भी अमृत बन जाता है पत्थर भी फूलों के समान हो जाते हैं ! भक्तिमती मीराबाई के सम्बन्ध में सभी जानते हैं कि उन पर कैसी *भगवत्कृपा* हुई है :--
*प्रेमयोगिनी को प्रेम पथ से हटाने हेतु ,*
*रंच भी न राना की समर्थ हुई रिस भी !*
*हिय अरविंद में विराजते गोविंद रहे ,*
*विफल हुआ था जहाँ इन्द्र का कुलिश भी !!*
*लगन लगाये प्रानधन में मगन रही ,*
*ध्यान भूलती थी नहीं एक हूँ निमिष भी !*
*प्रेमवश मीरा के भुजंग भगवान हुआ ,*
*चारु चरणामृत समान हुआ विष भी !!*
यह है *भगवत्कृपा* का अनुपम उदाहरण ! *भगवत्कृपा के रहस्य को समझना कठिन भी है और सरल भी !* कठिन उसके लिए जो भगवान के द्वारा किए गए कार्यों में अपनी स्थिति के अनुसार आंकलन करके दोष निकालता है और सरल उसके लिए हैं जो प्रत्येक परिस्थिति में *भगवत्कृपा* मानता है |