कैसी विडम्बना है ये, कि भ्रम में पड़ा ये मन है,
बहुत सोचा बहुत समझा,पर बांवरा ये मन है।
विचार बहुत आये मन में,पर चंचल ये मन है,
कोशिश की बहुत रुकने की,पर ठहरता नहीं ये मन है।
सोचा बहुत आगे बढ़ने को,पर थम गया ये मन है।
कैसी विडम्बना है ये, कि भ्रम में पड़ा ये मन है।
बहुत चाहा जो उसे मैंने,पर नकारता उसे ये मन है,
पहुंचना था उस शिखर पे,पर घबराता बहुत ये मन है।
लौटना था फिर मंजिल पे,पर दुविधा में पड़ा ये मन है,
रहना था सबके साथ,पर अकेलापन चाहता ये मन है।
कैसी विडम्बना है ये, कि भ्रम में पड़ा ये मन है।
सोचता था नही जीने की बात, मरने नहीं देता ये मन है,
पक्का विश्वास देती है ये बात,भ्रम में नहीं पड़ा ये मन है।
भ्रम में नहीं पड़ा ये मेरा मन है, हां ये ही मेरा मन है।