घर में सन्डे के दिन आम तौर पर शान्ति रहती है पर आज थोड़ी हलचल है. आज तीन बजे राजेश ने अपने साथ मम्मी पापा को लेकर मोती बाग जाना है लड़की देखने. राजेश की बड़ी दीदी अपने घर से सीधे वहीँ पहुँच जाएगी. जीजा के पास कार है ना. बड़ी दी ने राजेश को समझा दिया है कौन से कपड़े पहनने हैं और कौन से जूते. मम्मी ने वही बातें चार पांच दफा दोहरा दी हैं और पापा ने भी याद दिला दिया है.
राजेश को अकेले में लड़की से बात करने के लिए पांच सात मिनट ही मिलेंगे इसलिए मन ही मन सवाल जवाब तैयार करता रहा है. स्माइल कैसे देनी है, कौन से पोज़ में पहला सवाल पूछना है और कौन से पोज़ में दूसरा सब तैयार है. पेंट शर्ट धोबी ने प्रेस कर दी थी पर फिर भी घर की प्रेस से एक बार क्रीज़ दोबारा ठीक कर ली है. जूते इतनी बार चमकाएं है की अब जूते को हाथ लगाने का मन नहीं हैं. राजेश को दो साल हो गए बैंक में नौकरी करते करते अब तो काफी कुछ समझ आ गई है !
मोती बाग दूर है और ऑटो महंगा पड़ेगा इसलिए राजेश के स्कूटर पर तीनों बस स्टैंड तक चले जाएंगे और राजेश स्कूटर वहां जमा कर देगा. फिर वहां से ऑटो ले लेंगे. स्कूटर पर तीनों का लड़की के घर जाना अच्छा नहीं लगता, क्या कहते हो ? वापसी में जीजा की गाड़ी है ही.
राजेश को पहली नज़र में, दूसरी नज़र में और फिर अकेले में रीना के लम्बे लम्बे और काले बाल बड़े पसंद आए. उसे लगा की ऐसे बाल पहले कभी देखे नहीं. मीटिंग के बाद 'लड़की पसंद है' की घोषणा हो गई और दिसम्बर के महीने में राजेश और रीना का बैंड बज गया और ज़िन्दगी नए रास्ते पर चल पड़ी.
तीन साल बाद पहला बेटा बंटी, पांच साल बाद पप्पू और सात साल बाद बिटिया आ गयी. राजेश का समय बंट गया - 40 % नौकरी में, 50 % बच्चों में, 5 % सामाजिक कार्यों में और 5 % रीना के लिए. रीना का समय 20 % घरेलु कामों में, 60 % बच्चों की सेवा में, 15 % सामाजिक कामों में और 5 % राजेश के लिए. मियां बीवी के इस 5 % के टाइम शेयर में हंसी मज़ाक, नाराज़गी और लड़ाई झगड़ों के बीच बच्चे पढ़ गए और बंटी की नौकरी कब लग गयी पता ही नहीं चला. सन्डे को बंटी के लिए लड़की देखने जाना था. राजेश और रीना दोनों तैयार हो रहे थे. राजेश ने रीना के बालों को हाथ लगा कर कहा,
- जब तुझे देखने गया था तो तेरे काले घनेरे बाल बहुत पसंद आये थे और तेरी जुल्फों को देख कर मैंने हाँ की थी. अब देख ज़रा अपने झड़े हुए और रंगे हुए बालों को ?
- रहने दो जी ज्यादा जबान ना चलाओ. और अपनी शकल भी देख लो ज़रा शीशे में. कंघी कर कर के टकले हो गए हो !
... गायत्री वर्धन, नई दिल्ली