चीफ साब ने फोन उठाया तो नरूला की आवाज़ आई,
- सर गाड़ी भेज रहा हूँ आप रेडी हैं ना ?
- हाँ हाँ भेजो चार बजे निकलूंगा.
पौने चार बजे चीफ साब ने कुर्सी छोड़ दी. टॉयलेट में हाथ मुंह धोया, टाई सेट की, टकले सिर पर कंघी की और मोटे पेट पर फिर से बेल्ट बांधी. कमबख्त पतलून बार बार सरक जाती है. साढ़े चार बजे यूनिट पहुँच गए. नरूला साब ने तत्परता से सारे दांत दिखाते हुए स्वागत किया और यूनिट का चक्कर लगवाया. चीफ साब काम सही चल रहा देख कर आश्वस्त हो गए. फिर नरूला के ऑफिस में बैठक हुई. ऑफिस सुंदर था और ऑफिस में ही ड्रिंक्स का बढ़िया इन्तेजाम था.
- सर ये काजू लीजिये एकदम फ्रेश हैं. परसों ही बेटा गोवा से लाया है....और सर ये नमकीन सर बीकानेरी है बहुत ही टेस्टी सर.... आप तो कुछ ले ही नहीं सर.... सर ये काजू बर्फी तो ट्राई करें सर...
- थैंक यू थैंक यू अब चलना चाहिए नरूला साब.
- अरे सर आपको हमारे साथ बैठने का टाइम कहाँ मिलता है चीफ साब?
- नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है.
- तो लीजिये ना सर छोटा पेग बनाया है सर. इसी बहाने कुछ गपशप हो जाएगी. जब भी आपके पास जाता हूँ आपके केबिन में तो मजमा ही लगा रहता है सर. बात ही नहीं हो पाती. प्लीज़ सर लीजिये. ड्राईवर आपको छोड़ आएगा.
- अच्छा ठीक है तो फिर छोटा नहीं बड़ा पेग ही बना दो.
- ये हुई ना बात चीफ साब ! मज़ा आ गया साब. फॉर्मेलिटी का कोई चक्कर नहीं. चियर्स सर.
- चियर्स.
चीफ साब दो बड़े पेग मार के सुरूर में थे मुस्कराते हुए घर में घुसे. उन्हें अंदेशा था कि सुधा को यूँ घर आना अच्छा नहीं लगेगा. पर पेग लगे हों तो डरने का कोई मतलब नहीं होता है ना. ये तो पक्का था की अंदर पहुँचते ही गरज के साथ छींटें पड़ेंगी पर ये उम्मीद नहीं थी की बादल ही फट पड़ेगा.
ड्राईवर कार्टन रखकर चला गया. खोल कर देखा तो जोनी वाकर मुस्करा रहा था साथ में खाने वाने का सामान था.
- सुधा ये संभाल लेना यार.
- जैसे तुम वैसे ही तुम्हारे चेले चांटे! ये पीना पिलाना बंद करो. रिटायर होने वाले हो सुधर जाओ. अपना वेट देखो और अपना पेट देखो कहाँ जा रहा है. बीपी की गोलियां खा रहे हो और साथ में जहर के पेग लगा रहे हो. डॉक्टर ने कितनी बार मना किया है?
चीफ साब की जुबां पे 'शटअप' आ गया था पर बाहर निकलते निकलते 'ओके ओके ओके!' में बदल गया और विश्व युद्ध टल गया.
अगली शाम जब जोनी वाकर खुली तो साहब के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी. सिप लेकर बोले,
- सुधा यार एक आमलेट तो बना देना.
प्लेट में दो अंडे लाकर सुधा मैडम ने टेबल पर पटक दिए.
- ये रहे अंडे इन्हें कच्चे खाओ, उबाल कर खाओ या आमलेट बनाओ.... तुम जानों और तुम्हारी बोतल जाने. और भी सुन लो आज से अपना गिलास और ये प्लेटें तुम्हें खुद धोने हैं. अगर दोस्तों को बुलाया तो उनके बर्तन भांडे भी तुमने धोने हैं. ना तो मैं इन्हें हाथ लगाउंगी ना ही काम वाली बाई को हाथ लगाने दूंगी.
चीफ साब को लगा की स्कॉच कसैली सी हो गयी हैऔर मुंह का ज़ायका भी बिगड़ गया है. फैसला नहीं कर पा रहे थे की डांट दूँ, झगड़ा करूँ या बोतल फेंक दूँ या हंस के टाल दूँ. कुछ देर शांति रही. सिप करते करते गिलास फिनिश हो गया. चुपचाप गिलास धो कर रख दिया और अंडे वापिस फ्रिज में रख दिए.
शीत युद्ध शुरू हो गया.
चीफ साहब की शामें थोड़ी नीरस सी हो गयी. अब गिलास निकालना, बोतल, सोडा, पानी और चखना इकठ्ठा करना मुश्किल काम लगने लगा. और फिर गिलास और प्लेट धोना? कमबख्त ज़िन्दगी बर्बाद है. फिर मैडम की घूरती आँखें स्कॉच का स्वाद भस्म करे दे रही थीं. एकाध बार लगा की पटियाला पेग लगा के एक रहपटा सुधा के गाल पे जड़ दूँ. पर दूसरे ही पल डॉक्टर की सलाह और बच्चों की याद आ गयी. कभी लगा कि यार ठीक ही तो कह रही है. मुझे भी तो सुधरना चाहिए. इसी सब उधेड़बुन में कई गिलास धोते धोते तोड़ भी दिए. महीना ख़तम होने तक कई शामें बिना पेग के ही निकल गईं. दोस्तों को भी भनक लग गयी और वो भी उड़न छू हो गए.
शनिवार शाम को चीफ साब ने चुपचाप एक पेग लगाया. दूसरा लेने से पहले याद आ गया कि गिलास धोना भी है. मन मार के बड़ी मायूसी से अपना गिलास धोने के लिए रसोई में गए. तभी सुधा ने आकर बोला,
- चलो हटो गिलास दो. अब बीच में इतने दिन अगर नहीं पी तो अच्छा ही रहा ना. अब मैं तुम्हारे लिए एक छोटा गिलास लाई हूँ. ये रहा ये देखो और ये सिर्फ और सिर्फ शनिवार शाम को निकलेगा. इसमें अपना एक पेग पी लेना...इत्मीनान से. इसके साथ आमलेट भी फ्री मिलेगा.
- ओके. पर मैं ये गिलास नहीं धोऊंगा.
- हाहाहा! ठीक है साब जी ठीक है!