सिद्धार्थ गौतम का जन्म ईसापूर्व 563 में लुम्बिनि, नेपाल में हुआ था. कपिलवस्तु राज्य में शाक्य वंश का राज्य था इसलिए सिद्धार्थ गौतम शाक्यमुनि भी कहलाते हैं. सिद्धार्थ को बचपन में राजकुमारों जैसी शिक्षा और अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया गया. राजकुमार की शादी 18 वर्ष की आयु में एक स्वयंवर में यशोधरा से हुई जो 16 वर्ष की थी. कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन ने पुत्र सिद्धार्थ के लिए तीन महल बनवा दिए थे एक सर्दी के लिए, दूसरा गर्मी के लिए और तीसरा वर्षा ऋतु के लिए. स्वस्थ, सुंदर और नौजवान दास दासियाँ उनकी सेवा में रहती थीं. 21 वर्ष की आयु में पुत्र राहुल का जन्म हुआ. राजकुमार सिद्धार्थ गौतम भरपूर विलासिता में रह रहे थे पर उन पर चार घटनाओं का गहरा असर पड़ा.
एक दिन महल से बाहर राजकुमार सिद्धार्थ घूमने निकले तो उन्हें पहली बार एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई पड़ा. उसके दांत नहीं थे, चेहरे पर झुर्रियां पड़ी हुई थी और वो लाठी लेकर चल रहा था. उन्हें लगा कि क्या मैं भी ऐसा ही हो जाऊँगा?
दूसरी बार राजकुमार ने एक रोगी देखा. चेहरा पीला पड़ा हुआ, साँस मुश्किल से आ रही थी और चला भी नहीं जा रहा था. राजकुमार सिद्धार्थ ने सोचा क्या ऐसा सभी के साथ होता है? ऐसा क्यूँ होता है?
तीसरी बार राजकुमार ने एक अर्थी देखी जिसके पीछे पीछे परिजन रोते बिलखते जा रहे थे. राजकुमार सोच में पड़ गए कि क्या राजा और रंक सभी मर जाते हैं? चारों ओर दुःख फैला हुआ है?
चौथी बार महल से बाहर निकले तो कमंडल लिए हुए एक प्रसन्न साधु देखा. उनके मन में विचार आया कि इस साधु की तरह से स्वतंत्र रहना कितना अच्छा है!
बाईस वर्ष की अवस्था में उन्होंने महल का विलासिता पूर्ण जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया और जंगल की और प्रस्थान कर दिया.
समकालीन धर्म
उस समय आत्मा, परमात्मा, साकार, निराकार, लोक और परलोक हैं या नहीं हैं इस पर लगभग बासठ दार्शनिक विचार धाराएं साथ साथ ही चल रहीं थीं. इनमें से प्रमुख हैं:
* न्याय दर्शन जिसमें परमात्मा को सर्वव्यापी और निराकार कहा गया है. प्रकृति को अचेतन और आत्मा को शरीर से अलग कहा गया है. यह दर्शन महर्षि गौतम द्वारा रचित है.
* वैशेषिक दर्शन में वेदों को ईश्वर का वचन माना गया है. मनुष्य के कल्याण और उन्नति के लिए धर्म पर चलना आवश्यक बताया गया है. महर्षि कणाद के अनुसार जीव और ब्रह्म अलग अलग हैं और एक नहीं हो सकते.
* सांख्य दर्शन महर्षि कपिल द्वारा रचित है. इसमें कहा गया है कि प्रकृति अचेतन और शाश्वत है पर मनुष्य चेतन है और प्रकृति को भोगता है. असत्य से सत्य की उत्पति नहीं होती और सत्य कारणों से ही सत्य कार्य होते हैं.
* योग दर्शन में परमात्मा और आत्मा का मिलन यौगिक क्रियाओं द्वारा कराने की बात कही गई है. इन्द्रियों को अन्तर्मुखी कर ध्यान और समाधि लगाने से आत्मा और परमात्मा का योग संभव है. अंतःकरण शुद्धि पर महर्षि पतंजलि ने ज्यादा जोर दिया है.
* महर्षि जैमिनी द्वारा रचित मीमांसा दर्शन वेद मन्त्र और वैदिक क्रियाओं को सत्य मानता है. यह दर्शन उन्नति के लिए पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों पर ज्यादा जोर देता है.
* वेदांत दर्शन या उत्तर मीमांसा महर्षि व्यास द्वारा ब्रह्मसूत्र में रचित है. इसमें कहा गया है कि ब्रह्म सर्वज्ञ है पर निराकार है और जन्म-मरण से ऊपर है पर आत्मा से अलग है. मीमांसा में भी आगे चल कर कई धाराएं चल पड़ी - द्वैत, अद्वैत, विशिष्ठाद्वैत.
* नास्तिकवादी विचार भी उस समय प्रचलित थे. ईश्वर और परलोक ना मानने वाले, केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने वाले और वेदों से असहमति रखने वाले दर्शन भी थे जैसे कि चार्वाक दर्शन, माध्यमिक, योगाचार, सौतांत्रिक, वैभाषिक और आर्हत दर्शन इत्यादि.
श्रमण ( सन्यासी ) सिद्धार्थ ने उस समय के नामी गुरुओं और सन्यासियों के साथ रह कर इन विचारों को समझा और अपना कर देखा, पर संतुष्ट ना हुए और अकेले ही खोज जारी रखी. सातवें वर्ष में याने जब उनकी उम्र 29 वर्ष की थी तब उन्हें बोधि प्राप्त हुई. उसके पश्चात अस्सी वर्ष की आयु में महानिर्वाण प्राप्त करने तक, एक मिशनरी की तरह वे धर्म प्रवर्तन में लगे रहे.
बौद्ध धर्म
अपने उपदेशों में गौतम बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था को नकार दिया, अहिंसा पर बहुत जोर दिया और यज्ञ में पशु बलि का विरोध किया. एक छोर की भोग विलासिता और दूसरे छोर की शरीर को कष्ट देने वाली तपस्या दोनों को त्याग कर मध्यम मार्ग अपनाया. उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण का अष्टांगिक मार्ग बताया. इस मार्ग पर चलकर स्वयं दुःख को समझना और दूर करना होगा. धर्म को मान कर कोई चमत्कार नहीं होगा जो दुःख दूर कर देगा. यह संसार परिवर्तन शील है और यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है. सब कुछ नश्वर है. स्वयं के लिए गौतम बुद्ध ने कहा कि मुझसे पहले भी और बाद में भी बुद्ध होंगे. मैं केवल एक गाइड या मार्ग प्रदर्शक हूँ. मुक्ति के लिए हर मनुष्य को स्वयं प्रयास करना होगा.
बुद्ध के धर्म प्रचार से समकालीन राजा रंक सभी प्रभावित हुए और बौद्ध धर्म तेज़ी से फैला. मौर्य काल तक बौध धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका आदि में फैल चुका था। इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है. विश्व में बौध धर्म अनुयायियों की संख्या पचास करोड़ से ज्यादा है. गौतम बुद्ध के उपदेशों को समझने में अगर हम इन कुछ बातों को ध्यान में रख लें तो आसानी होगी क्यूंकि ये और धर्मों से भिन्न हैं. जैसे कि -
ईश्वर: मनुष्य स्वयं अपना मालिक है दूसरा कोई नहीं. सृष्टी अपने नियमों पर चलती रहती है और उसे कोई चलाता नहीं है. मुख्य प्रश्न ये नहीं है कि ईश्वर है या नहीं है बल्कि मुख्य प्रश्न ये है कि मनुष्य दुखों से पीड़ित है और उसे दुःख दूर करने का उपाय ढूँढना है. गौतम बुद्ध ने कहा कि दुःख का निवारण अष्टांगिक मार्ग पर चलने में है और यह काम इंसान को खुद ही करना पड़ेगा और आकाश से कोई मदद करने नहीं आएगा.
आत्मा: गौतम बुद्ध ने कहा कि आत्मा अज्ञात है और अदृश्य है और आत्मा पर विश्वास करना अनुपयोगी है. आत्मा और परमात्मा में विश्वास करना मिथ्या है और इनसे बहुत से अंध विश्वासों का जन्म हो जाता है. वास्तविक चीज मन या चित्त या Mind है जिसे हमें संयत और अनुशासित करना होगा.
धर्म ग्रन्थ: सभी धर्मों में अपने अपने धर्म ग्रन्थ या ग्रंथों को स्वत:प्रमाण, स्वयं-सिद्ध, ईश्वर के शब्द या फिर अकाट्य वचन माना गया है. इसके विपरीत गौतम बुद्ध ने कहा कि मेरी बातें इसलिए ना मान ली जाएं की मैंने कही हैं बल्कि इन्हें समझ कर, अपनाकर तभी मानी जाएं. हर कोई इस अष्टांगिक मार्ग पर प्रश्न कर सकता है और इस मार्ग का परीक्षण भी कर सकता है कि यह सन्मार्ग है या नहीं. पूरी तरह जानने के बाद ही बताए हुए रास्ते पर चलें. शायद ही किसी धर्म उपदेशक ने ऐसा चैलेंज किया हो?
वर्ण: गौतम बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था को सिरे से नकार दिया. उन्होंने कहा कि ना कोई जन्म से नीच होता है ना ही कोई जन्म से ब्राह्मण. अपने कर्म से ही कोई नीच होता है और अपने कर्मों से ही कोई ब्राह्मण होता है.
जीने की कला:
गौतम बुद्ध के बताए मार्ग पर चल कर मानसिक सुख और शांति पाने के लिए कोई पूजा पाठ या किसी रहस्यमय तंत्र मन्त्र की जरूरत नहीं है. किसी विशेष यज्ञ, विधि विधान, रीति रिवाज़ या किसी व्रत की भी जरूरत नहीं है. अच्छे कर्म कर के और मोह त्याग कर जीवन को सरल बनाया जा सकता है और इसी जीवन में निर्वाण प्राप्त हो सकता है. प्रचलित धर्मों से इस तरह की कई चीज़ों की समानता बौद्ध 'धर्म' में नहीं है. इसलिए शायद यह धर्म ना होकर जीने की कला है.
इस विषय को पढ़ कर और विपासना मैडिटेशन सीख कर मुझे तो बुद्ध का उपदेश 'धर्म' नहीं लगा बल्कि अपने मन को अनुशासित और संयत कराने वाला याने mind management कराने वाला रास्ता लगा.
और आगे पढ़ना चाहें तो ढेर सारी किताबें हिंदी और इंग्लिश में उपलब्ध हैं. इन्टरनेट पर फ्री डाउनलोड में बहुत सामग्री मिल जाएगी:-
मज्झिम निकाय - महापंडित राहुल सांकृत्यायन,
भगवान बुद्ध और उनका धम्म - डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर,
धम्मपद - भिक्खु धर्म रक्षित,
Access to Insight - whole ati website free download available. Very useful.
The Buddha and His Teachings - Venerable Narada Mahathera,
The Wings to Awakening - Thanissaro Bhikkhu.
विपासना साधना / मैडिटेशन सीखने के लिए विपासना शिविर में जा सकते हैं जिनके कार्यक्रम आप www.dhamma.org पर देख सकते हैं. आचार्य एस एन गोयनका जी के विपासना मेडीटेशन से सम्बन्धित ऑडियो / विडियो प्रवचन यूट्यूब पर उपलब्ध हैं.