बैंक की छुट्टी कब होती है
भारत विविधताओं से भरा देश है और उसी तरह यहाँ बैंकों की विविधता भी कम नहीं है. केन्द्रीय बैंक - रिज़र्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, ग्रामीण बैंक, प्राइवेट बैंक, लोकल एरिया बैंक, स्माल फाइनेंस बैंक, पेमेंट बैंक और सहकारी बैंक भी हैं. नाबार्ड जैसी बैंकिंग और वित्तीय संस्थाएं और विदेशी बैंक भी हैं.
इन बैंकों को चलाने के लिए बहुत से नियम, अधिनियम और कानून की किताबें हैं जिनका पालन करना पड़ता है. इनमें एक बड़ा पुराना नियम लिखा है जिसे कहते हैं 'परक्र्याम लिखत अधिनियम' या 'विनिमय साध्य विलेख नियम 1881' या फिर Negotiable Instruments Act 1881( N I Act या सिर्फ एक्ट ).
इस नियम के तहत चेक, प्रामिसरी नोट या बिल की तारीख का बड़ा महत्व है. और तारीख के साथ जुड़ी है बैंक और बैंकर की छुट्टी. अर्थात बैंक में होने वाली छुट्टियों की घोषणा इस नियम के अंतर्गत की जाती है. अब इस नियम को बनाया तो केंद्र सरकार ने पर छुट्टियां लागू करती हैं प्रदेश की सरकारें. छुट्टी की घोषणा जारी की जाती है प्रदेश की राजधानी से. अक्सर देखा गया है की घोषणा करने वाले अधिकारी को बैंक के N I Act की जानकारी नहीं होती. जब तक घोषणा में इस एक्ट का जिक्र ना हो तो बैंक की छुट्टी नहीं होती.
बड़ा भरी लोचा है ये. इस लोचे का अहसास तब हुआ जब प्राचीन काल में बैंक ज्वाइन किये कुछ दिन ही हुए थे. एक दिन सुबह नौ बजे हमारी GF का फोन आया कि आज छुट्टी डिक्लेअर हो गई है कहाँ मिलोगे ? जी ऍफ़ की नौकरी तब प्रदेश सरकार के महकमें में थी. बहरहाल दिल बाग़ बाग़ हो गया. बैंक जाने की तैयारी तो थी ही फटफटिया में किक मारी और पहुँच गए इंडिया गेट. फिर वहां से पहुंचे बंगाली मार्किट डोसा खाने. पर वहां तो बैंक खुले हुए थे. मारे गए गुलफाम ! एक कैज़ुअल गई और पर्स अलग हल्का हो गया. तब मालूम हुआ कि बैंक की छुट्टी एक्ट के अंतर्गत होती है.
ये तो पुराने ज़माने की बात थी पर ये वाकया यदा कदा हो जाता है. प्रदेश सरकार ने सुबह घोषणा कर दी. अख़बार पढ़ के जब शाखा प्रबंधक को फोन किया जवाब मिला पता नहीं. शाखा प्रबंधक ने अपने क्षेत्रीय प्रबंधक को फोन किया जवाब मिला पता नहीं. स्थानीय स्टेट बैंक को फोन किया तो जवाब मिला पता नहीं आधे घंटे में बताते हैं. तब तक ब्रांच खोलनी पड़ गई. घंटे भर बाद बैंक बंद करने का आदेश आ गया.
असमंजस की स्थिति तब भी हो जाती है जब किसी बड़े पद पर बैठे मंत्री का निधन हो जाए और उस दिन सार्वजानिक छुट्टी बिना एक्ट के डिक्लेअर हो जाए. अगर एक्ट के अंतर्गत भी हो तो शाखा को समेटने में एक दो घंटे लग ही जाते हैं.
इसी तरह अगर दिन के दौरान दंगे फसाद होने के कारण कर्फ्यू लग जाता है तो भी बैंकर की हालत डांवाडोल हो जाती है. ब्रांच सम्भालें या घर भागें ? ब्रांच से निकलने में पुलिस का सहयोग मुश्किल ही मिलता है. बैंक सरकारी होते हुए भी बैंकर गैर सरकारी हो जाते हैं. आजकल कोरोना बंदी में तो कई बैंकर पुलिस के हाथों पिट चुके हैं जबकि जरूरी सेवाओं में बैंकिंग भी शामिल है.
इन दिनों इसका उल्टा भी हुआ है. कोरोना के चक्कर में घोषित छुट्टी कैंसिल कर दी गई. कैंसिल करने की घोषणा एक्ट के अंतर्गत हुई. कैंसिल करने में प्रदेश सरकार के अधिकारीयों ने कोई गलती नहीं की. आदेश में एक्ट का पूरा नाम छाप दिया.
इस स्थिति का इलाज करने की जरूरत है. यूनियन और प्रबंधन दोनों को ही इसका इलाज कर दें तो अच्छा है. बैंकर और ग्राहक दोनों को सुविधा रहेगी.
इन बैंकों को चलाने के लिए बहुत से नियम, अधिनियम और कानून की किताबें हैं जिनका पालन करना पड़ता है. इनमें एक बड़ा पुराना नियम लिखा है जिसे कहते हैं 'परक्र्याम लिखत अधिनियम' या 'विनिमय साध्य विलेख नियम 1881' या फिर Negotiable Instruments Act 1881( N I Act या सिर्फ एक्ट ).
इस नियम के तहत चेक, प्रामिसरी नोट या बिल की तारीख का बड़ा महत्व है. और तारीख के साथ जुड़ी है बैंक और बैंकर की छुट्टी. अर्थात बैंक में होने वाली छुट्टियों की घोषणा इस नियम के अंतर्गत की जाती है. अब इस नियम को बनाया तो केंद्र सरकार ने पर छुट्टियां लागू करती हैं प्रदेश की सरकारें. छुट्टी की घोषणा जारी की जाती है प्रदेश की राजधानी से. अक्सर देखा गया है की घोषणा करने वाले अधिकारी को बैंक के N I Act की जानकारी नहीं होती. जब तक घोषणा में इस एक्ट का जिक्र ना हो तो बैंक की छुट्टी नहीं होती.
बड़ा भरी लोचा है ये. इस लोचे का अहसास तब हुआ जब प्राचीन काल में बैंक ज्वाइन किये कुछ दिन ही हुए थे. एक दिन सुबह नौ बजे हमारी GF का फोन आया कि आज छुट्टी डिक्लेअर हो गई है कहाँ मिलोगे ? जी ऍफ़ की नौकरी तब प्रदेश सरकार के महकमें में थी. बहरहाल दिल बाग़ बाग़ हो गया. बैंक जाने की तैयारी तो थी ही फटफटिया में किक मारी और पहुँच गए इंडिया गेट. फिर वहां से पहुंचे बंगाली मार्किट डोसा खाने. पर वहां तो बैंक खुले हुए थे. मारे गए गुलफाम ! एक कैज़ुअल गई और पर्स अलग हल्का हो गया. तब मालूम हुआ कि बैंक की छुट्टी एक्ट के अंतर्गत होती है.
ये तो पुराने ज़माने की बात थी पर ये वाकया यदा कदा हो जाता है. प्रदेश सरकार ने सुबह घोषणा कर दी. अख़बार पढ़ के जब शाखा प्रबंधक को फोन किया जवाब मिला पता नहीं. शाखा प्रबंधक ने अपने क्षेत्रीय प्रबंधक को फोन किया जवाब मिला पता नहीं. स्थानीय स्टेट बैंक को फोन किया तो जवाब मिला पता नहीं आधे घंटे में बताते हैं. तब तक ब्रांच खोलनी पड़ गई. घंटे भर बाद बैंक बंद करने का आदेश आ गया.
असमंजस की स्थिति तब भी हो जाती है जब किसी बड़े पद पर बैठे मंत्री का निधन हो जाए और उस दिन सार्वजानिक छुट्टी बिना एक्ट के डिक्लेअर हो जाए. अगर एक्ट के अंतर्गत भी हो तो शाखा को समेटने में एक दो घंटे लग ही जाते हैं.
इसी तरह अगर दिन के दौरान दंगे फसाद होने के कारण कर्फ्यू लग जाता है तो भी बैंकर की हालत डांवाडोल हो जाती है. ब्रांच सम्भालें या घर भागें ? ब्रांच से निकलने में पुलिस का सहयोग मुश्किल ही मिलता है. बैंक सरकारी होते हुए भी बैंकर गैर सरकारी हो जाते हैं. आजकल कोरोना बंदी में तो कई बैंकर पुलिस के हाथों पिट चुके हैं जबकि जरूरी सेवाओं में बैंकिंग भी शामिल है.
इन दिनों इसका उल्टा भी हुआ है. कोरोना के चक्कर में घोषित छुट्टी कैंसिल कर दी गई. कैंसिल करने की घोषणा एक्ट के अंतर्गत हुई. कैंसिल करने में प्रदेश सरकार के अधिकारीयों ने कोई गलती नहीं की. आदेश में एक्ट का पूरा नाम छाप दिया.
इस स्थिति का इलाज करने की जरूरत है. यूनियन और प्रबंधन दोनों को ही इसका इलाज कर दें तो अच्छा है. बैंकर और ग्राहक दोनों को सुविधा रहेगी.