बैंकों में आजकल लोन के अलावा सोने के सिक्के, इन्शोरेन्स, मेडिक्लैम, म्यूच्यूअल फण्ड भी मिलने लगे हैं. पहले ये सब झमेला नहीं था. अब इसे झमेला ना कह कर 'फाइनेंशियल लिटरेसी' कहा जाने लगा है. याने पैसे कहाँ लगाने हैं और ब्याज ज्यादा कहाँ मिलेगा ये बताया जाता है.
चालीस बरस बैंक की नौकरी कर ली, मकान बना लिया, बच्चे सेटल कर दिए और बुढ़ापे का भी इंतज़ाम कर लिया पर आज भी अगर ब्रांच में जाएं तो कोई ना कोई 'फाइनेंशियल लिटरेसी' का ज्ञान देने लग जाता है. लच्छेदार लेक्चर सुनने को मिलता है. सुन कर लगता है हम तो 'फाइनेंशियल इल-लिटरेट ही रह गए. जो भी हो अब रिटायरमेंट के बाद तो फिक्स डिपाज़िट ही अच्छी लगती है. और एक चीज़ जो अच्छी लगती है वो है 'माल' जो कभी लॉकर में डाला था. पर उसकी भी चाबी अपनी जेब में नहीं बल्कि श्रीमती के पर्स में होती है. हम तो बॉडीगार्ड की तरह पीछे पीछे चले जाते हैं और ड्राईवर की तरह गाड़ी में बिठा कर वापिस ले आते हैं.
इसी पर लॉकर का एक किस्सा याद आ गया. कनॉट प्लेस के एक बैंक की शाखा में बहुत से लॉकर थे. कुछ छोटे, कुछ मझोले और कुछ बड़े साइज़ के थे. गिनती में शायद चार हज़ार से कुछ ज्यादा ही होंगे. ये लॉकर एक बहुत बड़े तहखाने में थे. लॉकर की दो भारी केबिनेट पीठ से पीठ मिला कर कतारों में रखी हुई थीं. इन कतारों के बीच में कस्टमर के लिए जगह छोड़ दी गई थी. तहखाने के एक कोने में लकड़ी की पार्टीशन बनी हुई थी जिसमें बैंक की अपनी भारी भरकम तिजोरियां खड़ी थीं. इनमें दिन भर का जमा कैश रखा जाता था.
ग्राहकों के लिए लॉकर शनिवार को डेढ़ बजे तक बंद कर दिए जाते थे. लगभग उसी समय ब्रांच का कैश मैनेजर और हैड केशियर दोनों एक साथ चाबियाँ लगा कर बंद कर देते थे. उसके बाद लोहे की ग्रिल और लोहे का भारी दरवाज़ा बंद होता था. इस तरह तहखाना बंद करके अंदर की लाइट्स बाहर से बंद कर दी जाती थी.
शनिवार को लगभग सवा एक बजे एक मेजर साब अपनी पत्नी के साथ पधारे और लॉकर रजिस्टर साइन किया. मेजर साब श्रीमती से बोले - मैं सामने पोस्ट ऑफिस होकर आता हूँ तुम लॉकर देख लो. मैडम और उनके साथ लॉकर अधिकारी अंदर गए, लाकर खोला और अधिकारी बाहर आ गया. मैडम अपने काम में बिज़ी हो गई. उन्हें टाइम का ध्यान नहीं रहा.
उधर मैनेजर और हैड केशियर कैश बंद करने आ गए. जब ये लोग आये तो लॉकर अधिकारी ने सोचा कि अब मेरा क्या काम और वो घर की ओर रवाना हो गया. कैश बंद करने की कारवाई पूरी की गई. पहले गार्ड और चपरासी बाहर निकले, फिर तिजोरी बंद करके मैनेजर और हैड केशियर. ग्रिल गेट बंद किया गया और आखिर में बड़ा भारी भरकम दरवाज़ा भी बंद कर दिया गया. गार्ड ने बिजली का स्विच बंद कर दिया. जैसे ही अँधेरा हुआ तो मैडम अंदर जोर से चिल्लाई - ये क्या है लाइट क्यूँ बंद की? पर बाहर ना आवाज़ निकलनी थी ना निकली.
तब तक दो बज चुके थे. मेजर साब अपनी मैडम को लेने आ गए. मैडम नदारद. वो भांप गए की गड़बड़ हो गई है. जोर जोर से चिल्लाने लगे. शोर मचा तो ब्रांच का बचा खुचा स्टाफ तहखाने में इकट्ठा हो गया. चाबी वाले मैनेजर साब तो आ गए पर हैड केशियर नदारद! वो तो घर के लिए निकल चुका था. तभी किसी ने बताया की वो अक्सर सड़क के दूसरी तरफ बस लेता है शायद अभी भी खड़ा हो?
दो लोग भागे बाहर की तरफ. हैड केशियर इत्मीनान से बस स्टॉप पर बस की इंतज़ार में खड़ा था. शनिवार और लंच टाइम की वजह से बसें कम चल रही थी. तीनों ब्रांच में वापिस भागे. लाइट जलाई गई और ताले फटाफट खोले गए.
अन्दर मैडम फर्श पर पड़ी हुई मेजर साब का नाम बुदबुदा रही थी - मेजर बचा लो, मेजर बचा लो. मैडम की आवाज़ सुन कर सबकी जान में जान आ गई.
सावधानी हटी और दुर्घटना घटी!