जनरल मैनेजर( रिटायर्ड ) गोयल साब ने शाम की तैयारी शुरू कर दी. नहा धो के चकाचक कुरता पायजामा पहन लिया. सिर पर जुल्फों के नाम पर गिनती के चार बाल बचे थे, उन पर प्यार से कंघी फेरी क्यूंकि बेशकीमती जो हैं. डाइनिंग टेबल पर दो बियर के गिलास, एक प्लेट में चखना और फ्रिज में से चिल्ड बोतल निकल कर रख ली. मोबाइल उठा कर नंबर लगाया,
- आजा भाई रविंदर. आज की शाम तेरे नाम!
रविंदर आ गया और बोला - वाह वा! गोयल यार दिल खुश कर दिया. पर ये बताओ ये शाम मेरे नाम क्यूँ? और भाभी सा कहाँ हैं?
- भाभी गई है अपनी बहन के पास. मुझे तो लगता नहीं की वो वापिस आएगी अब तो सुबह ही आएगी. इशारा कर गई थी की फ्रिज में सब कुछ तैयार है भूख लगे तो माइक्रो कर लेना. ये लो अपना ग्लास चियर्स.
- चियर्स गोयल सा! पास में ही तो गई हैं कौन सा दूर है?
- अरे भई मुझे पता है दोनों बहनों में घंटों बातें चलेंगी. मतलब की कम और बेमतलब की ज्यादा बातें होंगी. कभी हँसेंगी, कभी फुसफुसाएंगी और कभी रोएंगी. मुझे आज तक ये समझ नहीं आया की ये बहनें जब इकट्ठी बैठती हैं तो कितनी बातें करती हैं? क्या बातें करती हैं? जाने किस बात पर तो हंसती हैं और ना जाने किस बात पर रोती हैं. मेरी समझ के बाहर है. अगर दोनों बतिया रहीं हों और मैं पहुँच जाऊं तो दोनों मिल कर मुझ पर ही टूट पड़ती हैं - लो आ गए पी के? ये पेट कहाँ जा रहा है? बोतल ख़तम कर दी होगी? चश्मा तो साफ़ कर लेते? भाई रविंदर अरे इनकी कथा वैसी है जैसे हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता. ये लो खाते भी रहो साथ साथ.
- आपने तो लम्बी हांक दी. हालांकि मेरी वाली तो अकेली बिटिया है अपने माँ बाप की पर आम तौर पर ऐसा ही होता है. जब कभी उसकी कोई कज़न वज़न आ जाती है तो बातें नॉन स्टॉप चलती हैं इनकी. पर गोयल सा ये तो आज की बात है ना जब हम और आप सठियाए हुए हैं हाहाहा. जब तीस पैंतीस के थे तब की बात करो ना आप!
- और मैं क्या कह रहा हूँ भई. शुरू में जब ये बाइक के पीछे बैठती थी तो कुछ ना कुछ स्वीट स्वीट बोलती रहती थी और मुझे भी स्वीट स्वीट फीलिंग आती थी. कुछ दिनों बाद में इस मीठी मीठी बोली की मिठास कम हो गई. और कुछ दिन गुज़रने के बाद मीठी बोली फीकी हो गई और फीकी बोली कांय कांय में बदलने लग गई. और तब मैंने तो हेलमेट ले लिया, कान बंद. और फिर भी बोलती तो स्पीड बढ़ा देता फटफट-फुररर. अब बोलती रह.
- भाई रविन्दर जवानी तो जवानी थी. फटफटिया दौड़ाता था मैं. कितना पेट्रोल फूंक दिया कसम से इनकी सेवा में. सैकड़ों बार तो इंडिया गेट पर इन्हें आइस क्रीम खिला दी. इतनी खिला दी की बस उलटे मुझे ही शुगर हो गई कमबख्त! कभी कभी दोनों बहनों को बैठा कर भी घुमाया और कभी होली भी खूब खेली. फिर बस धीरे धीरे रस्ते अलग अलग हो गए. पता ही नहीं चला.
- वाह गोयल सा वाह! पुराने खिलाड़ी हो.
- अरे यार नौकरी लगने के बाद जिंदगी की चरखी ऐसी घूमी की कुछ पता ही नहीं चला. शादी, फिर बालक आ गए, कभी ट्रान्सफर और कभी प्रमोशन हो गई. अब मुड़ कर देखो तो और ही नज़ारा दिखता है.
- घंटी बजी गोयल सा? किसी ने आना था?
- देखता हूँ कहीं वापिस तो नहीं आ गई? हाँ वापिस आ गई है शैतान को याद किया तो उसकी खाला आ गई. आप तो बैठो यार रविन्दर.
- नमस्ते भाभी जी. बस अभी आपको याद कर रहे थे गोयल सा.
- नमस्ते रविन्दर जी. याद कर रहे थे? ये कहाँ याद करते हैं मुझे?
- ओहो मैं तो अभी रविंदर को कह रहा था की जब तक भाभी की मधुर मधुर आवाज़ सुनाई ना दे तब तक यहीं बैठो.
- गोयल सा अब आप मधुर मधुर आवाज़ सुनो और मैं चला अपनी बुलबुल की आवाज़ सुनने!