रिटायरमेंट पार्टी ख़त्म हुई. अब अपने हिसाब किताब निकालो - पेंशन कितनी मिलेगी या फण्ड कितना मिलेगा या जीवन बीमा के पैसे कितने मिलेंगे वगैरा. महीने का खर्च कितना होगा बाकी बैंक में जमा करा देंगे ब्याज मिलता रहेगा. ये तो खैर तनख्वाह लेने वालों का किस्सा है. औरों को भी इसी तरह से गद्दी छोड़ने के बाद का जुगाड़ रखना पड़ता है.
भारत में इस विषय पर आंकड़े इक्कठे करना मुश्किल काम है. देश में करीबन 10 करोड़ से ज्यादा लोग सीनियर याने 60+ की उम्र के हैं. इनमें से कितनी महिलायें हैं और कितनों को पेंशन मिलती है इस का कोई सरकारी अनुमान कहीं नज़र नहीं आया. अंदाज़न 5 - 7 % लोग ही पेंशन लेते हैं। बाकी छोटे व्यापार ी और डाक्टर, वक़ील, छोटे ठेकेदार जैसे पेशेवर लोग हैं जिनकी पेंशन नहीं है. ये भी अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा बचा कर फ़िक्स डिपोसिट या फिर ppf / nsc / kvp वगैरा में रखते हैं ताकि बुढ़ापे में दाल रोटी चलती रहे और महीने में एकाध बार बटर चिकेन और बियर की दावत हो जाए.
लेकिन भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और बैंक हर बजट मैं कैंची चलाने के चक्कर में रहते है हालाँकि महंगाई ना घाट रही भाया. सीनियर्स के लिए ओल्ड ऐज होम बनाते नहीं और हस्पताल की सुविधा देते नहीं. हवाई जहाज और रेल के टिकट में छूट देते हैं तो भैय्या सीनियर लोग कितना घूम लेंगे और कितना बचा लेंगे. आधा % ब्याज ज्यादा देते है बैंक वाले उस पर भी तिरछी नज़र रखते हैं. ये मंत्रालय और बैंक के आला अफसर तो शायद रिटायर होंगे नहीं. इन धुरंदरों का गुणगान किया है इन लाइनों में:
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
कोई सीनियर ना चाहे के उसकी रकम पर ब्याज कम निकले,
खर्चे बहुत हैं जानेमन जीने के, खाने के और पीने के,
ब्याज घटा के क्या होगा जब प्रॉफिट तेरा फिर भी कम निकले.
हे बैंकर देख तू npa को जिसकी वसूली से तेरी इनकम निकले,
पर तूने चुपके से काटा ब्याज जैसे हम तेरे दुश्मन निकले,
ब्याज जमा होने का sms पाकर लेते हैं मज़े जमा पूँजी का,
पर तेरी तंगिदली के चलते आज हम दूसरा जुगाड़ ढूँढ़ने निकले !