ये किला कब बनाया गया और किसने बनवाया इसकी पक्की जानकारी नहीं है. माना जाता है की छठी शताब्दी में यहाँ मूल रूप से किला बना था. किले से सम्बन्धित नवीं और दसवीं शताब्दी के सम्बन्धित अवशेष भी मिले हैं जिससे लगता है की किला तब भी मौजूद था.
किले के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि राजा सूरज सेन इस पहाड़ी पर पीने के लिए पानी ढूँढ रहे थे. उन्हें एक संत ग्वालिपा ( कहीं कहीं ऋषि गलवा भी लिखा हुआ है ), नज़र आये जो उन्हें सूरज कुंड तक ले गए. राजा ने पानी पिया तो उनकी प्यास तो बुझी ही साथ में उनके शरीर का कोढ़ भी दूर हो गया. राजा ने यहाँ किला बनवाया और उसका नाम ग्वालियर किला रख दिया. कुण्ड का नाम कालान्तर में सूरज कुण्ड हो गया. सुबह और शाम यहाँ का दृश्य ज्यादा सुंदर लगता है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
सूरज कुण्ड के पास ही
तेली का मंदिरऔर
गुरुद्वारा श्री दाता बंदी छोड़भी हैं वो भी देख सकते हैं. ये सभी किले के अंदर ही हैं और सुबह से शाम तक खुले रहते हैं. प्रवेश के लिए अलग से टिकट नहीं है. किले के लिए प्रवेश का टिकट इन सभी स्थानों पर लागू है.