शुक्रताल एक प्राचीन तीर्थ स्थल है जिसे शुकतीर्थ, शुक्रतीर्थ, शुकदेव पुरी और शुकतार नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है. यह स्थान मुज़फ्फर नगर, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग NH-58 से लगभग 23 किमी की दूरी पर है. गंगा किनारे बसी इस छोटी सी तीर्थ नगरी में 100 से ज्यादा छोटे बड़े मन्दिर हैं. और लगभग इतनी ही धर्मशालाएं भी होंगी. यहाँ से हरिद्वार, हस्तिनापुर और परिक्षित गढ़ लगभग 50 किमी के दायरे में हैं.
इस ऐतिहासिक नगर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है जो संक्षेप में इस तरह है कि राजा परिक्षित जो कि अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे, शिकार करते हुए भटक गए. भूख प्यास से व्याकुल थे की एक टीले पर बैठे संत शमिक दिखाई पड़े. राजा ने नमस्कार कर ऋषि से पानी माँगा पर कोई जवाब न मिला. बार बार माँगने पर भी कोई उत्तर ना मिला तो राजा क्रोधित हो गए और एक मरा हुआ साँप उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया. यह बात ऋषि पुत्र ऋंगी तक पहुंची तो उन्होंने राजा को श्राप दे दिया कि सातवें दिन साँप के डसने से राजा की जीवन लीला समाप्त हो जाएगी।
राजा को सूचना मिलते ही उन्होंने राजपाट अपने बेटे जन्मेजय को सौंप दिया और जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया. यहाँ उनकी भेंट ऋषि शुकदेव से हुई. राजा ने ऋषिवर से जीवन मरण सम्बन्धी अनेक प्रश्न पूछे जिनमें से दो प्रमुख थे :
- जो मनुष्य सर्वथा मृत्यु के निकट हैं उसे क्या करना चाहिए ?
- मनुष्य मात्र को क्या करना चाहिये, किसका श्रवण, किसका जप, किसका स्मरण तथा किसका भजन करे व किसका त्याग करे जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो?
ऋषि शुकदेव ने सात दिनों में श्रीमद्भागवत पुराण सुनाकर राजा के प्रश्नों का उत्तर दिया और काल से भयमुक्त कर दिया और इस तरह राजा को मोक्ष प्राप्त हुआ. ऋषि ने कहा:
- हे राजन,
- मनुष्य सर्वथा निडर होकर वैराग्य रुपी शस्त्र से शरीर, स्त्री, पुत्र, धन के मोह को काट फेंके.
- धैर्य के साथ निर्जन और पवित्र स्थान पर बैठ ॐ का जाप करे.
- प्राणायाम से मन वश में करे,
- बुद्धि द्वारा विषयों को दूर करे और
- कर्म कल्याणकारी रूप में लगाए.
श्रीमद्भागवत पुराण में 12 स्कन्ध, 335 अध्याय और 18000 श्लोक हैं. सभी स्कंधों में विष्णु अवतारों का वर्णन है इसलिए वैष्णवी सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है. इसके लिखने के समय पर इतिहासकारों में काफी मतभेद है. शायद यह ग्रंथ 1300 ईसा पूर्व से लेकर 200 ईसा पूर्व के बीच कभी लिखा गया होगा. शुकदेव मंदिर परिसर का विशालकाय बरगद भी उसी समय का माना जाता है. शुक्रताल में श्रीमद्भागवत पुराण पर आधारित भागवत कथाएँ विभिन्न भाषाओं में पूरे साल ही चलती रहती हैं.
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