मैनेजर की प्रमोशन हुई तो पोस्टिंग मिली आसाम में. बोरिया बिस्तर लपेटा और पहुँच गए सिलचर. हरा भरा, प्रदुषण मुक्त और सुंदर प्रदेश लगा. छोटे छोटे शहरों में मकान मिलने में ज्यादा समय नहीं लगता. तुरंत ही अड्डा जमा लिया और बैंक का काम चालू करने में देर नहीं लगी. दिल्ली की बड़ी बड़ी ब्रांच में काम करने के बाद यहाँ काम करना आसान लग रहा था.
पर ऐसा नहीं है कि यहाँ सब कुछ गुड था. यहाँ की समस्या कुछ और ही थी. महीने भर में पता लगा कि बाल झड़ रहे हैं और खूब झड़ रहे हैं. कारण शायद जलवायु का बदलाव रहा हो? इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली और सिलचर के पानी, हवा, गर्मी, सर्दी और बारिश में काफी फर्क था. मौसम के अलावा यहाँ के खाने में भी तो बहुत फर्क था. यहाँ भात-माछ ज्यादा चलता था जबकि दिल्ली में रोटी, सब्ज़ी और बटर चिकेन चलता था. फिर भी लोकल लोगों के बाल ख़ास तौर पर महिलाओं के घने, काले और लम्बे थे. इन ज़ुल्फों पर फुंके हुए शायर दो चार शेर तो लिख ही सकते थे.
अब यहाँ आकर बाल झड़ने का जो भी कारण रहा हो पर ये बड़ी चिंता का विषय था. मन ही मन अपने रीजनल मैनेजर चंद्रा साब का चौखटा दिख रहा था. बॉस के सर पर मैदान साफ़ था. गर्दन की तरफ काले सफ़ेद बालों की एक झालर थी जो चश्मे की दोनों डंडियों को छूती थी. उस झालर को भी बॉस रंगते रहते थे. कुछ लोगों ने प्यार मोहब्बत में बॉस का नाम 'टकला आर एम' रखा हुआ था और कुछ ने 'टकला चंद्रू'. भई दूसरा टकला बनने की अपन की तो इच्छा नहीं थी. कतई नहीं.
हमारा बैंक सिलचर के बाज़ार में था जो वहां का कनाट प्लेस था. एक दिन शाम को घूमते हुए आयुर्वेद टाइप की एक दूकान नज़र आई. अंदर झांका तो वैद जी बैठे अखबार पढ़ रहे थे.
- नमस्ते दादा!
- हूँ ओरे ओरे मनीजर बाबू? नोमोस्कार नोमोस्कार आप कैसे आ गिया?
- मिलने आ गया बस.
- चा खाएगा? वैद जी ने जवाब का इंतज़ार नहीं किया और तुरंत अंदर की दीवार की तरफ देख के दो चाय का आर्डर दे दिया. दीवार ने सुन लिया और दो गिलास चाय आ गई. चाय की चुस्की पर बात आगे चली.
- दादा यहाँ आने के बाद सर के बाल बहुत झड़ रहे हैं. क्या करना चाहिए?
- हाहाहा चूल गिरता है? चूल गिरेगा टका आएगा, रुपया आएगा रुपया! हाहाहा!
- नहीं दादा इसको रोकना है. कैसे रोकना है बताइये.
- एक ठो आयल देगा स्किन में मालिश कीजिये. एक महीने पीछे बताइये. शैम्पू बंद.
वाकई महीने भर में बाल झड़ने रुक गए. वैद जी को बताया और उसके बाद से उस हेयर आयल के हम पक्के ग्राहक बन गए. फिर ट्रान्सफर तेज़पुर, अपर आसाम में हो गई. वहां भी यही तेल मंगवाना जारी रहा. तीन साल बाद वापिस दिल्ली पोस्टिंग के आर्डर हुए तो दादा को फ़ोन लगाया.
- दादा अगले महीने दिल्ली वापिस जाएगा. हमारा आयल का क्या होगा?
- मनीजर बाबू पता बताने से हम भेजेगा. एक ठो फार्मूला नोट कीजिये बताता है हम. अमला+शिकाकाई+रीठा को 2:1:1 में रात को बोयल कीजिये सुबह में शैम्पू कीजिये. शेष. पता देने से हम तेल दिल्ली जरूर भेजेगा.
ये बात है 1988 की. कुछ दिनों तक तो तेल आया पर ना जाने कब बंद हो गया. परन्तु तब से अब तक दादा के फोर्मुले से ही घर में शैम्पू बनाया. ना तो कोई साबुन ना ही कोई बाज़ारी शैम्पू इस्तेमाल किया. ना रूसी, ना बाल झड़ते हैं और ना ही कभी हेयर डाई लगाई. ये फार्मूला बहुत दोस्तों को बताया पर बहुत कम ने इस्तेमाल किया. एक दो को सूट नहीं किया. खैर जब भी हेयर कलर की चर्चा होती है तो दादा याद आ जाते हैं.