जब भी बैंगलोर या दक्षिण भारत जाना होता है तो चाय बंद हो जाती है और उस की जगह कॉफ़ी ले लेती है. कुछ मौसम का या शायद कॉफ़ी की खुशबू का असर होता है जिसके कारण चाय के बजाए कॉफ़ी पीने का मन करता है. एक और कारण भी है साउथ में चाय के ढाबे कम हैं और 'कॉफ़ी हाउस' ज्यादा लोकप्रिय हैं. सभी राजमार्गों पर जगह जगह दोसे, चावल-सांभर, इडली वड़े के साथ कॉफ़ी ही मिलती है. पूछताछ करने पर किस्सा-ए-कॉफ़ी कुछ यूँ पता लगा -
* फ़िल्टर कॉफ़ी या जिसे आम भाषा में यहाँ 'कॉपी' या कोप्पि पुकारते हैं, केवल दक्षिण भारत में ही बनाई जाती है. कॉफ़ी बीन्स को भून कर पाउडर बनाया जाता है. थोड़ा सा पाउडर लेकर उसके ऊपर उबलता हुआ पानी और फिर उबलता हुआ दूध डाला जाता है. चीनी मिलाइए और 'फ़िल्टर कॉपी' तैयार. इसे मद्रास फ़िल्टर कॉपी, कुम्बकोणम कॉपी, मायलापोर कोप्पि या मैसूर कोप्पि भी कहते हैं. यहाँ कॉफ़ी पाउडर में भुनी हुई चिकोरी ( या सिकोरी या कासनी ) पाउडर भी 10 से 30 प्रतिशत तक मिलाया जाता है.
* कॉफ़ी का उत्पादन बहुत पहले से यमन और कई अरब देशों में होता था और वो लोग इसको दवाई की तरह इस्तेमाल करते थे. इसकी जानकारी बड़ी सीक्रेट रखते थे. लोक कथा है कि कर्णाटक के सूफी संत बाबा बुदन सन 1600 में हज करने गए. वापसी में यमन से कॉफ़ी की सात बीन्स या फलियाँ अपने कपड़ों में छुपा कर ले आये ( कुछ लोग कहते हैं कि दाढ़ी में छुपा कर ले आए ). बहरहाल उन्होंने वापिस आकर चन्द्रागिरी में कॉफ़ी के बीज बो दिए, पौधे निकल आए और कुछ समय बाद कॉफ़ी की फलियाँ भी निकल आईं. इस तरह से कॉफ़ी भारत में भी शुरू हो गई. बाद में चंद्रागिरी पहाड़ी का नाम बाबा बुदन गिरी रख दिया गया.
* दो तरह की कॉफ़ी मशहूर है - अरेबिक और रोबस्टा ( arabic or robusta ). कॉफ़ी के बागान कर्णाटक में कोडागु, चिकमंगलूर और हासन जिलों में हैं, तमिलनाडु में नीलगिरी, यारकुड और कोडाईकनाल में हैं, आंध्र में अराकू घाटी में हैं और केरल के मालाबार इलाके में हैं.
फ़िल्टर कोप्पि की जगह उत्तर भारत में एस्प्रेसो कॉफ़ी ही चलती है वो भी शादी वगैरा में. घर में कॉफ़ी पीने का रिवाज़ कम है. अब अगर आपने फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लेना हो तो आपको कॉफ़ी हाउस तलाश करना पड़ेगा. या फिर ठेठ मद्रासी रेस्टोरेंट. आजकल दिल्ली और आसपास कैफ़े काफी खुल गए हैं जिनमें कई तरह की एस्प्रेसो स्टाइल की कॉफ़ी मिलती हैं पर फ़िल्टर कोप्पि नहीं मिलती.
पिछले दिनों मेरठ में एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट के मीनू में लिखी फ़िल्टर कोप्पि देखि तो मंगा ली. छोटे से ख़ास तरह के स्टील के गिलास और कटोरी में पेश की जाती है ये कोप्पि. इस गिलास और कटोरी को शायद डेबरा या डेवरा कहते हैं. पी कर आनंद आया और बैंगलोर की फ़िल्टर कोप्पि याद आ गई ! मौका लगे तो आप भी फ़िल्टर कोप्पि का मज़ा लें.