प्रारम्भिक मध्य काल लगभग 7वीं से 11वीं शताब्दी तक चला. असल में सम्राट हर्षवर्धन ( शासन काल 606 - 647 ) के गुजरने के बाद उत्तराधिकारी कमज़ोर निकले और हर्षवर्धन का साम्राज्य बिखरने लगा. उत्तर भारत में दसियों राजा रजवाड़े पैदा हो गए. ये आपस में लड़ते भिड़ते रहते थे. उस समय के कुछ प्रमुख वंश थे
गुर्जर-प्रतिहार बुंदेलखंड और मध्य भारत में राज करते थे ( 733 - 1036 ),
पाल जो बंगाल के बौद्ध शासक थे ( 750 - 1174 ) और राष्ट्रकूट जो कन्नड़ शाही राजवंश था ( 736 - 973 ). इनके अलावा चोल ( तमिलनाडु ), चालुक्य ( तेलगु प्रदेश ) भी प्रमुख राजवंश रहे हैं.
छोटे छोटे कमज़ोर राज्यों के चलते और तत्कालीन भारत की समृद्धि की चर्चा सुन कर पेशावर के उस पार के सुल्तानों को निमंत्रण मिल गया ! 11वीं -12वीं सदियों में भारत के पश्चिम से तुर्क, अफगान और इरानी हमले होने लगे. सबसे बड़ा झटका लगा 1192 में जब मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया. इस हार के बाद इतिहास में बड़ा मोड़ आ गया. दिल्ली पर सुलतान काबिज़ हो गए. दिल्ली एक सल्तनत बन गई जो लगभग 300 बरसों तक चली. इन सुल्तानों के क्रमानुसार वंश थे -
- गुलाम वंश 1206 से 1290 तक. इनमें मुख्य नाम हैं क़ुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, रज़िया बेग़म और बलबन.
- खिलजी वंश 1290 से 1320 तक. इनमें प्रमुख नाम है अल्लाउद्दीन खिलजी,
- तुग़लक वंश 1320 से 1412 तक. इनमें प्रमुख है फिरोज़शाह तुगलक,
- सैय्यद तुगलक वंश 1414 से 1450 तक इनमें चार सुल्तान हुए और
- लोदी वंश 1451 से 1526 तक. इनमें प्रमुख नाम हैं सिकंदर लोदी और इब्राहीम लोदी.
इन सुल्तानों की सल्तनत 1526 में तैमूरी वंशज बाबर ने तोड़ दी. इब्राहीम लोदी बाबर से युद्ध हार गया और उसके बाद लगभग अगले तीन सौ सालों तक मुग़लिया हुकूमत चलती रही. प्रमुख मुग़ल बादशाह थे -
बाबर 1526 - 1530,
हुमांयू 1530 - 1540,
यहाँ एक ब्रेक लग गई क्यूंकि हुमांयू पश्तून शेरशाह सूरी से युद्ध हार गया. शेरशाह सूरी और उसका बेटा इस्लाम शाह सूरी 1540 से 1554 तक तख़्त पर काबिज रहे. पर एक युद्ध में फिर से हुमांयू ने इस्लामशाह सूरी को हराया और दोबारा मुग़ल छा गए.
हुमांयू दूसरी बार 1555 - 1556,
अकबर 1556 - 1605,
जहांगीर 1605 - 1627,
शाहजहाँ 1627 - 1658 और
औरंगज़ेब 1658 - 1701,
इसके बाद मुग़ल खानदान की आपसी कलह और षड़यंत्र ने शासन को कमज़ोर कर दिया. 1705 से 1857 के दौरान 14 मुग़ल शासक गद्दीनशीन रहे पर साम्राज्य लगातार टूटता ही चला गया.
हिन्दू राजाओं की फूट का फायदा मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उठाया था और अब मुस्लिम बादशाहों की कलह का फायदा उठाने के लिए अंग्रेज़ आ गए !
एक मुग़ल बादशाह फारूखसीयर ने 1717 में अंग्रेजों को व्यापार करने की छूट दी थी. धीरे धीरे अंग्रेजों ने पैर पसारने शुरू कर दिए. मुगल शासन के दौरान 1739 में ईरान के नादिर शाह का बड़ा और लूटपाट वाला हमला हुआ और 1761 में अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली ( या दुर्रानी ) का बड़ा हमला हुआ. इस कारण भी मुग़ल कमज़ोर पड़ गए थे. मुग़ल साम्राज्य की खस्ता हालत देख कर अंग्रेजों ने राजनैतिक फायदा उठाना शुरू कर दिया.
इसी मध्य काल में दक्षिण में एक दमदार और वैभवशाली राज्य उभरा जिसे विजयनगर साम्राज्य कहा जाता है. इसकी नींव हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 में रखी थी जो लगभग 1646 तक चला. इसे कर्णाटक साम्राज्य भी कहा जाता है. इस के अवशेष कर्णाटक के हम्पी शहर में देखे जा सकते हैं जो युनेस्को की विश्व विरासत लिस्ट में शामिल हैं.
1614 में शिवाजी के राज्याभिषेक के साथ ही पश्चिमी भारत में एक शक्तिशाली राज्य का उदय हुआ मराठा साम्राज्य ( 1614 - 1818 ). मराठों ने मुग़ल साम्राज्य को कड़ी टक्कर दी. अपने चरम पर यह साम्राज्य तमिलनाडु से पेशावर तक और बंगाल तट से सूरत तट तक फैला हुआ था. बहुत ही रोचक है मराठा इतिहास जिसके लिए अलग से लेख लिखना होगा.
15वीं शताब्दी में यूरोपियन लोगों का आना शुरू हुआ था. सोलहवीं शताब्दी के शुरू में यूरोप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी, फ्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी, डच ईस्ट इंडिया कम्पनी आदि जैसी कई कम्पनियां बन गईं थी. सोने की चिड़िया के पर काटने की तैयारी चल रही थी.
1498 में वास्को डी गामा कालीकट पहुंचा. जल्द ही पुर्तगालियों ने 1506 में गोवा को अपने आधीन कर लिया. उन्हीं दिनों 1598 में डच जहाज़ भारत पहुंचा. सूरत में इनकी पहली व्यापारिक कोठी बनी 1616 में. कोचीन में दूसरी डच कोठी बनी 1653 में. पर ये डच लोग केवल व्यापार में ही दिलचस्पी रखते थे राजनीति में नहीं. बल्कि ये लोग यहाँ से व्यापार करने के लिए और आगे इंडोनेशिया की और निकल गए.
1601-03 के दौरान अंग्रेज पहुंचे और इन्होंने 1633 में मद्रास में और 1688 में बम्बई में व्यापारिक कोठियां बनाई. फ्रांसीसियों ने 1668 में सूरत में और 1674 में पांडिचेरी में कोठियां बनाईं. इन यूरोपियन व्यापारियों में से अंग्रेज ज्यादा स्याने निकले. राजाओं की लड़ाई में कभी एक राजा के साथ और कभी दूसरे के साथ हो जाते थे. इस तरह बंदरबाट कर कर के धीरे धीरे अपने पैर जमा लिए और ईस्ट इंडिया कंपनी से 'कम्पनी बहादुर' बनकर राज भी करने लगे. 1857 के असफल स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय उपमहाद्वीप ब्रिटिश कॉलोनी बन गई.
आगे क्रमशः जारी रहेगा .....