कबीर नरूला का मन मोटर साइकिल देख कर बड़ा ललचाता था. उसे ख़याल आता की बाइक फटफट कर के दौड़ रही है और मैं कमीज़ के ऊपर के बटन खोल कर चला रहा हूँ और शर्ट के कॉलर हवा में फड़फड़ कर रहे हैं वाह! बाइक मिले तो बस ज़िन्दगी बन जाए. बड़े लड़कों की महफ़िल में बाइक की बातें सुन सुन कर सभी तरह के मॉडल पहचानता था, उनकी कीमतें, स्पीड और गियर सिस्टम वगैरा के बारे में जानता था.
बार बार मम्मी से कहता की अब की बार मैं बाइक लूँगा. हर बार एक ही जवाब मिलता की अभी 15 साल का है थोड़ा रुक जा जरूर दिलवाएँगे. पापा का भी वही जवाब अरे रुक जा यार अभी लाइसेंस तो बने पहले तेरा फिर दिलवा देंगे. अभी तो तेरी क्लास वाले सारे बच्चे साइकिल पर ही जाते हैं. 32 नम्बर की नम्रता भी तो साइकिल पे जाती है.
नम्रता के नाम से कबीर चिढ़ जाता था. इन लड़कियों को क्या पता बाइक के मज़े का? इनका काम है पीछे बैठना बस. बाइक तो मर्दों की निशानी है. वैसे भी दोनों के बीच पढ़ाई के नंबरों की भी रेस लगती थी. कभी नम्रता के किसी सब्जेक्ट में ज्यादा तो कभी कबीर के. पर अगर मम्मी पूछ ले कि नम्रता के नम्बर कम आये या ज्यादा तो कबीर का माथा झनझना जाता था. जब देखो नम्रता?
सन्डे सुबह मामाजी अपनी नई बाइक ले कर मिलने आ गए. कबीर की तो बांछे खिल गयीं. मामा से उसके बारे में एक एक चीज़ पूछी और जब मामा ने पूछा चलानी आती है तो यूँ ही बोल दिया हाँ हाँ मैंने दोस्तों की बाइक चलाई है. अंदर चाय शुरू हुई और इधर कबीर ने बाइक में चाबी लगाई और थोड़ी दूर तक ठेल ठाल के सड़क पर ले आया. बाइक पर बैठ कर बटन दबाया फटफट चालू हो गई. मन में जोश आ गया चेहरे पर मुस्कान आ गई. अब तो 32 नम्बर के आगे से ही निकालूँगा नम्रता की बच्ची.
नम्रता अपनी साइकिल ले कर घर से बाहर निकल रही थी. उसने मोटर साइकिल आते देखा ओ ये तो कबीर का बच्चा लग रहा है. नजदीक आते ही उसने कांग्रेट्स बोला और हाथ कबीर की तरफ बढ़ा दिया. तपाक से कबीर ने भी थैंक्यू बोलकर हाथ बढ़ा दिया. पर दोनों के हाथ मिलने से पहले ही बाइक का हैंडल डगमगाया और कबीर धाड़ से नीचे गिरा. बाइक गिरी और घूंघूं करके पिछला पहिया तेजी से घुमने लगा और फिर बाइक का इंजिन बंद हो गया.
घबरा कर और झेंप कर कबीर जल्दी से उठा. कोहनी में तेज़ दर्द हो रहा था हाथ लगाया तो देखा खून भी निकल रहा था. सिर के दाहिने ओर भी खरोंच थी और एकाध बूँद खून की भी थी. कमीज़ कोहनी से फट गई थी. घुटने पर भी पैंट फट गयी पर खरोंच हलकी थी. पर उसे चिंता नयी बाइक की थी. आज तो हो गया काण्ड. बाइक उठाने की कोशिश की तो उसके मूंह से 'हुंह' की आवाज़ निकली. तुरंत नम्रता ने बाइक को दूसरी तरफ से पकड़ा और दोनों ने स्टैंड पर खड़ी कर दी.
नम्रता उसे खींच कर अंदर ले गई. वो, उसकी मम्मी, उसके पापा और छोटी बहन सेवा में लग गए. डेटोल, रुई, बैंड-ऐड, हल्दी और गरम दूध सब एक साथ हाजिर हो गए. घर फोन भी कर दिया. पर कबीर का ध्यान बाइक में ही था. मामा, मम्मी और पापा सब आज पीटेंगे. पट्टी करने के बाद नम्रता ने कबीर को अपने साइकिल पर बिठाया. कबीर कैरियर पर बैठा और एक टांग एक तरफ और दूसरी टांग दूसरी तरफ लटका ली. नम्रता ने कहा अरे बच्चू इमप्रैशन ज़माने आया था और हंस पड़ी. बच्चू को भी हंसी आ गयी.
अगले दो घंटे कबीर की जबान पर ताला लगा रहा पर कान तो खुले थे और सबके लेक्चर सुनकर गरम हो कर लाल हो रहे थे.
- जरा सबर नहीं है लड़के को. सोते जागते मोटर साइकिल, मोटर साइकिल. और चला ले मोटर साइकिल!
- दिल तो कर रहा है की दो चांटे लगाऊं इसकी कनपटी पर. कमबख्त नई गाड़ी चोरों की तरह ले गया. कम से कम पूछता तो सही.
- ओ जी बच्चा है जाने दो अब.
- काए का बच्चा है ये? ( ये सुनकर कबीर मुस्कराया ), अपना भी नुकसान कर आया और दूसरों का भी. बाज़ार में होता तो इसने पिट जाना था आज.
- ये तो नम्रता पास में थी तो फ़टाफ़ट पट्टी हो गई बाहर होता तो किसने पूछना था ( ये सुनकर कबीर फिर मुस्कराया लो फिर नम्रता आ गई! ). पुलिस ले जाती पकड़ के.
- इसे टेटनस का इंजेक्शन तो लगवा दो जी ( जरा सी चोट है हंगामा कर रखा है. किस बात का इंजेक्शन? वो सोने का नाटक करने लगा ).
अगले कई हफ़्तों तक घर में कोल्ड वार छाई रही और फटफट का जिकर नहीं हुआ. पर इस बीच नम्रता से दोस्ती बढ़ गई और दोनों अब अपनी अपनी साइकिल पर इकट्ठे ही स्कूल जाते हैं.