जबलपुर कैंट में हमें तीन कमरे का क्वार्टर मिला हुआ था. जैसा की आम तौर पर छावनी में होता है ऐसे चार क्वार्टरों की एक लम्बी सी बैरक थी. इस बैरक का लम्बा कॉमन बरांडा था जो बच्चों के खेल ने के काम आता था. बरांडे के आगे चार बगीचे थे जिनमें सब्जियां और कुछ फूल पौधे लगे हुए थे. बगीचों की टेढ़ी मेढ़ी बाड़ के साथ साथ सड़क थी जिसके पार दूर दूर तक खेत नज़र आते थे. खेतों के पीछे बहुत दूर पहाड़ियां नज़र आती थी.
ये पहाड़ियाँ दोपहर के सूरज से नाराज़ होकर तपने लगतीं पर सुबह शाम मुस्कराहट के साथ ठंडक भी देतीं. इन पहाड़ियों में रहने वाले दोपहर को छांव ढूंढ कर सुस्ताते रहते थे और ठंडक में ही बाहर निकलते थे जैसे की सांप , बिच्छू, तीतर, बटेर, लोमड़ियाँ, गीदड़ वगैरा. इसलिए पहाड़ी की तरफ जाना मना था.
पर इन जीवों को हमारे घर आना मना नहीं था. कभी बगीचे के सूखे पत्ते हटाते तो पतला लम्बा सांप सर्र से भाग लेता. कभी पिछले आँगन में रखी आलू प्याज की टोकरी में से ताम्बे जैसे रंग का बिच्छू निकल आता. सांप तो तुरंत भाग जाते थे पर बिच्छू अक्सर मारा जाता था. सांप को सज़ा देने पर कोई सहमति नहीं बनती थी. कोई कहता 'मारो स्साले को', कोई कहता 'जान दो जान दो', काम करने वाली बाई हाथ जोड़ कर कहती, 'बाहर दूध का कटोरा रख दो बाउजी आपका भला होगा'.
पर सुना था की सामने वाले खेतों में और पहाड़ी पर बड़े बड़े सांप रहते थे. फसल कटाई के समय इधर उधर तेजी से भागते हुए देखे जाते थे. ऐसे ही एक बार बिरजू अपने साथियों के साथ खेत में कटाई कर रहा था तो उसे सांप काट गया. हल्ला मच गया और खेत में काम रुक गया. बिरजू ने अपने बाएं पैर के अंगूठे की ओर इशारा किया और बताया कि काला, लम्बा और मोटा सांप काट गया. काटे का निशान खून से लाल था और आसपास नील पड़ने लगा था. साथियों में फुसफुसाहट शुरू हो गई थी की ये सांप खतरनाक कौड़िया नाग है. बिरजू अस्पताल भी नहीं पहुंचेगा बल्कि रस्ते में ही टें बोल जाएगा. घंटे भर बाद तो शायद देवता भी ना बचा पाएंगे बिरजू को.
बिरजू को भी इसकी जानकारी रही होगी. उसने एक बड़ा सा पत्थर उठाया उस पर अपना पैर इस तरह जमाया कि अंगूठा बाहर लटका रहे. फिर अपने हंसिये से पूरी ताकत लगा कर देवता के नाम की हुंकार भरते हुए अंगूठे पर वार कर दिया. अंगूठा कट कर अलग जा गिरा. बिरजू का पैर खून से लथपथ लाल हो गया और वो खुद भी खेत में गिर पड़ा. भागम भाग बिरजू को अस्पताल पहुँचाया गया. खैर शाम तक घर भी आ गया. आस पास के इलाके में बिरजू की अकलमंदी की बड़ी चर्चा हुई. आपको तो पता होगा की कौड़िया नाग बस एक घंटे की मोहलत देता है उससे आगे के सांस देवता के हाथ में भी नहीं है.
दो दिन फसल कटाई बंद रही. तीसरे दिन बिरजू भी जोश जोश में टोली के साथ लाठी का सहारा लेता हुआ वहीं जा पहुंचा. वहां उसका हंसिया भी पड़ा था और कटा हुआ अंगूठा भी. जहर की वजह से अंगूठा नीला-काला पड़ चुका था और बदबू आ रही थी. उसने अपनी हंसिया उठाई और आसमान की तरफ दिखा कर देवता की प्रार्थना की और धन्यवाद भी दिया. फिर झुक कर हंसिये की नोक से अंगूठे को उलट पलट करने लगा. हंस भी रहा था और काले अंगूठे को हिला डुला भी रहा था. शायद हंसिये की नोक से कटे अंगूठे में कोई छेद हो गया था और उसमें से कोई छींट उसकी आँख में पड़ गई. आँख मलते हुए बिरजू जोर से चिल्लाया 'ज..ह..र' और गिर कर तड़पने लगा.
बिरजू को उठा कर अस्पताल की तरफ भागे पर उसने रस्ते में ही दम तोड़ दिया.