सरकारी नौकरी का अपना ही मज़ा है. एक ही दफ़्तर में एक ही कुर्सी टेबल पर १० बजे से ५ बजे तक फ़ाइलें उलट पलट करते रहिये. बीच बीच में टी ब्रेक, लंच ब्रेक, गप्प ब्रेक, तफरी ब्रेक और बॉस-सेवा ब्रेक करते रहिये. बॉस की तबीयत बहली रहेगी तो उसी ऑफिस में कुर्सी बनी रहेगी. वैसे भी तबादला कौन चाहता है ?
तबादला तो दूर की बात है प्रमोशन भी नहीं चाहिए. वरना एक तरफ जिम्मेवारी बढ़ेगी और दूसरी तरफ बाहर पोस्टिंग पर जाना पडेगा. और प्रमोशन की किसे परवाह है - अपना मकान है, सुविधाजनक दूरी पर दफ़्तर है, बीबी कमाऊ है और दोनों बेटियों का ख़्याल रखने के लिये घर में दादा दादी हैं.
बस इसी तरह की बाबूगिरी में कुन्दरा जी की ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही थी. १५ साल हो चले थे एक ही डिपार्टमेंट में. सुबह बड़े ही सलीक़े से तैय्यार होकर अपने दुपहिया से दफ़्तर आते. हैलमेट को स्कूटर में लॉक करते और जेब से कंघी निकाल कर बालों को क़रीने से माथे पर सजा देते. फिर अपने तीन डिब्बे वाला टिफ़िन लेकर दाएं बाएं देखते हुए अपने डिपार्टमेंट की ओर चल देते. कुन्दरा जी थे तो ४५ साल के पर अपने आप को २५ साला नौजवान समझते थे. नज़रें बहुत पैनी थी डिपार्टमेंट के दरवाज़े से ही हाल का पूरा मुआयना कर लेते थे.
अंदर पहुँच कर टिफ़िन के दो डिब्बे हाट-केस में रखते और दही वाला डिब्बा ए.सी. के सामने सजा देते. टेबल व कुर्सी पर हल्का सा कपड़ा फेरते और रोज चपरासी शंकर को ठीक से काम करने की नसीहत जरूर देते. दाहिनी तरफ़ रखी कैबिनेट से १०-१२ फ़ाइलें निकाल कर टेबल की बांई ओर सजा देते. सुन्दर सा पैन स्टेंड, पेपर वेट और पानी का गिलास टेबल पर क़रीने से सज जाता तो कहते,
- चलो जी आज की हाजरी तो लग गई !
दाएं बाएँ हाल मे नज़रें घुमाकर मुआयना करते. कौन आया कौन नहीं. किसने कैसी साड़ी पहनी है और किसकी शर्ट नई है. दिन की शुरुआत महिलाओं से बात करके हो तो दिन अच्छा गुज़रता है. सो श्रीमति मलिक को नमस्ते करके बोले ,
- होर जी मलिक साब दा की हाल है ?
श्रीमती मलिक कुर्सी पर पैर समेटे बैठी हुई थी और मैडम दुआ के साथ पराँठे अचार का आनंद ले रही थी. तपाक से बोली,
- मलिक साब नू की होणा है ? ना मलिक साब कोई कम करदे नें ना कुड़ियां कुछ कर दीयां ने.
कुन्दरा जी ने तुरंत श्रीमती मलिक को सलाह दी,
- कुड़ियां कोलो कम कराया करो. लड़कियों ने दूसरे घर नहीं जाना है ?
- ओ जी अस्सां ते टोर देणियां ने आप्पे निबेड़न गे ससुराल वाले ( हमने तो विदा कर देनी हैं ससुराल वाले अपने आप निपटते रहेंगे )! कह कर श्रीमती मलिक कुछ मुस्कुरा दी.
कुन्दरा जी ने फिर श्रीमती दुआ की तरफ रूख किया और हाल चाल पूछा,
- दुआ मैडम जी कोई लड़का मिला ? कुड़ी वास्ते किधरे गल बनी ?
- हंजी ईक मुन्डा वैख्या ते है गल बात चलदी पई है. कुड़ी त्यार हो गई है.
- अच्छा है जी आजकल कुड़ियां जल्दी नहीं तैयार होती. बस जल्दी मुहं मिठ्ठा कराओ जी.
कैंटीन वाला १२ बजे की चाय कुन्दरा जी की टेबल पर रख गया. कुन्दरा जी चाय और समोसे का आनन्द ले ही रहे थे कि चपरासी शंकर के साथ एक २३ -२४ साल की महिला को अपनी ओर आते देखा. फटाफट कंघी निकाली और बाल सैट किए. क़मीज़ के कालर की नोक ठीक की फिर आस्तीनों की क्रीज़ बिठाई. इस दौरान नज़रें महिला पर टिकी रहीं. शंकर ने महिला का परिचय कराया,
- ये मिस मालती है. ये ट्रेनिंग लेने आई हैं. साहब ने आपके पास ट्रेनिंग के लिए भेजा है.
कुन्दरा जी ने मिस मालती को ऊपर से नीचे देखा तो मिस मालती सावंले रंग की छरहरे बदन की आकर्षक महिला लगी. बड़े अच्छे तरीके से टेबल की दूसरी ओर अपने सामने बिठा लिया. पानी मँगवाया और मिस मालती का इन्टरव्यू लेने लगे - कहाँ रहती हो, पहले नौकरी कहाँ की है, शादी का क्या स्टेटस है. ख़ास सवाल ये था कि मिस मालती कितने दिन उनके पास ट्रेनिंग लेगी. जवाब मिला कि एक सप्ताह उनके साथ काम सीखेंगी.
कुन्दरा जी का अगला हफ्ता बड़ा व्यस्त गुज़रा पर शानदार गुज़रा. पूरे हफ्ते खुश नज़र आए. पर ट्रेनिंग देते देते कुन्दरा जी का खर्चा बढ़ गया - एक परफ्यूम की शीशी , एक डिब्बा नया पाउडर, एक बोतल हेयर कलर, जूता पोलिश वगैरा लेनी पड़ गई. धोबी का बिल बढ़ गया. हेलमेट और स्कूटर धुलवा के पोलिश करवाया शायद मिस मालती को बिठाने का चांस मिल जाए ! कैंटीन वाले को चुपके से कह दिया कि एक हफ्ते तक मीठी चाय पिलाए कमबख्त शुगर बढ़ती है तो बढ़े. निकम्मे दोस्तों ने भी कई बार चुस्की ली और बदले में चाय समोसे गटक गए.
कुन्दरा जी मन ही मन सोच रहे थे कि ट्रेनिंग तो अब ख़तम हो जाएगी. कॉफ़ी हाउस चलने को कहता हूँ मानेगी या नहीं ? मान जाएगी ? हाँ ? ना ? अगर कहेगी कि लेट हो जाउंगी तो कहूँगा स्कूटर किस लिए है. फिर हिम्मत कर के कह दिया,
- ट्रेनिंग तो अब ख़तम हो रही है मिस मालती. तो फिर हमारी पार्टी भी तो होनी चाहिए ?
- हाँ हाँ क्यूँ नहीं. अभी कैंटीन में इण्टरकॉम करती हूँ.
- ना जी ना मिस मालती यहाँ की चाय थोड़ी पीनी है. हम तो कनाट प्लेस में कहीं बैठेंगे.
- हाँ हाँ कल चलिए ऑफिस के बाद.
कुन्दरा जी मुस्कराए भई कमाल कर दिया मिस मालती ने. उम्मीद तो नहीं थी ! पुरानी नसों में नया खून दौड़ने लग गया . मन में गुदगुदी होने लगी. अगला दिन कितना लम्बा हो गया ? पांच ही नहीं बज रहे थे कमबख्त. किसी तरह से ऑफिस का समय समाप्त हुआ और कुन्दरा जी ने चैन की साँस ली. हाथ मुंह धोया. बाल सेट किये, पर्स में पैसे चेक किये और मिस मालती के साथ ऑफिस के बाहर आ गए. पार्किंग से स्कूटर निकालने लगे तो मिस मालती ने रुकने का इशारा किया.
- जी क्या हुआ ?
- एक मिनट रुकिए.
सामने से फटफटिया आकर रुकी. सवार ने हेलमेट उतारा तो मिस मालती ने परिचय कराया,
- ये हरेंदर सिंह हैं मेरे मंगेतर और आप हैं कुन्दरा साब.
कुन्दरा जी के मन के गुब्बारे में सुई चुभ गई और सारी हवा निकल गई. मुंह का स्वाद कसैल गया. मन की गुदगुदी खुजली में तब्दील हो गई. भारी मन से बोले,
- मुझे कुछ सामान ले जाना था एक्चुली, आप लोग एन्जॉय करो.
कुन्दरा जी को मन ही मन मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर याद आ गया :
' हैरां हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूं जिगर को मैं,
मक्दूर हो तो साथ रखूं नौहागर को मैं !'
* मक्दूर - बस में
* नौहागर - मातम मनाने वाला
ये शेर एक ग़ज़ल का मुखड़ा है जो मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखी थी. इस ग़ज़ल को कई कलाकारों ने गाया है जिनमें से एक हैं सी. एच. आत्मा. उनकी आवाज़ में ये ग़ज़ल यूट्यूब पर उपलब्ध है जिसका लिंक है :
https://youtu.be/B-5aQtAzExM?list=PLJeNQvgQ4Sl-8_Sck2cOqnQ0thnaLR3fs
- - - गायत्री वर्धन नई दिल्ली.