इसी तरह की सभ्यता का विकास सिन्धु घाटी के आस पास भी हुआ. इस सभ्यता के चिन्ह सर्वप्रथम हड़प्पा में पाए गए. इस कारण से इसे हड़प्पा सभ्यता कहते हैं. इस सभ्यता के दूसरे नाम सिन्धु घाटी सभ्यता और सिन्धु-सरस्वती सभ्यता भी हैं. चूँकि इस युग में कांसे का प्रयोग किया जाता था इसलिए इसे कांस्य युग भी कहा जाता है. ये सभ्यता 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक मानी जाती है.
इस सभ्यता की खोज का किस्सा भी बड़ा रोचक है. इस सभ्यता का जिक्र चार्ल्स मेसन ने सर्व प्रथम अपनी किताब Narratives of Journeys में 1826 में किया था. चार्ल्स मेसन ईस्ट इंडिया कंपनी का फौजी भगोड़ा था जो बाद में जासूसी करने में लगा दिया गया था और जगह जगह घूम कर अपनी रिपोर्ट देता रहता था.
1856 में लाहौर - मुल्तान रेलवे लाइन बिछाने का काम किया जा रहा था जिसके ठेकेदार थे बर्टन ब्रदर्स. जब खुदाई का काम हड़प्पा में शुरू हुआ तो वहां मिट्टी में दबी बहुत सी ईंटें मिलीं जो ठेकेदार ने अपने काम में इस्तेमाल कर लीं. हड़प्पा अब जिला साहिवाल, पाकिस्तान में है और रावी नदी के किनारे है. यह भी पता लगा की आस पास के घरों में भी इन्हीं ईंटों का इस्तेमाल किया जा रहा था. ASI के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्ज़न्डर कन्निन्घम ने भी यहाँ उन दिनों जांच पड़ताल की परन्तु बात आगे नहीं बढ़ पाई. शायद 1857 की क्रांति के कारण काम रुक गया होगा.
1921 में ASI के डायरेक्टर जॉन मार्शल ने यहाँ आगे कारवाई करवानी शुरू की. पुरातत्व विभाग के अधिकारी राय बहादुर दया राम साहनी के नेतृत्व में यहाँ हड़प्पा में खुदाई शुरू हुई. जॉन मार्शल के विचार में हड़प्पा सभ्यता का समय 3250 ईसा पूर्व से लेकर 2750 ईसा पूर्व के बीच रहा होगा.
1921 में ही मोहनजोदड़ो में ASI के अधिकारी राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में खुदाई शुरू हुई. यह जगह सिन्धु नदी के किनारे थी और सिन्धी में 'मोएँ-जा-डेरो' या 'मरे हुओं का डेरा / ढेर' कहलाती थी. वहां 1964 - 65 में आखिरी खुदाई हुई थी. कहा जाता है की पैसे के अभाव में और पाक सरकार की रूचि कम होने के कारण आजकल इस स्थल का रख रखाव बहुत अच्छा नहीं है हालांकि यह स्थान विश्व धरोहर में शामिल है.
1947 के बटवारे के कारण खुदाई का काम ढीला पड़ गया. उसके एक दशक बाद खुदाई के काम में फिर से तेज़ी आई. अब तक सिन्धु घाटी से सम्बंधित लगभग 1500 स्थान ढूंढे जा चुके हैं. इनमें से 2 अफगानिस्तान ( शोर्तुगोई और मुंडीगाक ) में, 900 से ज्यादा भारत में और बाकी पकिस्तान के सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान प्रान्तों में पाए गए हैं.
भारत के मुख्य स्थल हैं संघोल ( पंजाब ), कालीबंगा ( राजस्थान ), राखीगढ़ी ( हरयाणा ), और आलमगीरपुर ( उत्तर प्रदेश ). ये सभी स्थान किसी ना किसी नदी के किनारे हैं.
मोटे तौर पर अगर निम्नलिखित स्थानों को एक लाइन से जोड़ कर एक बाहरी सीमा रेखा बना ली जाए तो इस सीमा के अंदर सिन्धु-सरस्वती घाटी सभ्यता का फैलाव रहा है :-
1. मांडा जो चेनाब नदी के किनारे जम्मू में है,
2. सुत्कागन डोर जो दाश्त नदी के किनारे बलोचिस्तान में है,
3. आलमगीरपुर जो हिंडन नदी के किनारे मेरठ, उत्तर प्रदेश में है और
4. दाईमाबाद जो प्रवर नदी के किनारे महाराष्ट्र में है.
इन स्थानों की सभ्यता शहरी सभ्यता थी और शहर मुख्यत: दो भागों में बटे हुए थे. एक भाग में बड़े मकान और दूसरे भाग में छोटे. मकान पक्की ईंटों के बने हुए हैं और सड़कें कच्ची ईंटों की. शहर में सीधी सीधी चौड़ी सड़कें, ढकी हुई नालियां और पानी के लिए घरों में कुँए यहाँ की खासियत है. मकानों के दरवाज़े और खिड़कियाँ सड़कों की तरफ नहीं खुलते थे. शायद धूल से बचने के लिए या फिर सुरक्षा के लिए. कोई बड़ा मंदिर या किसी किस्म का किला यहाँ नहीं पाया गया परन्तु अनाज के भण्डार होने का संकेत है. एक बड़ा खुला स्नानागार भी मिला है जिसमें शायद धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान किए जाते होंगे. वजन नापने के बाँट भी पाए गए हैं. मिट्टी के खिलोने, कांसे और पत्थर की मूर्तियाँ भी यहाँ मिली हैं. अस्त्र शस्त्र का अभाव है इसलिए लगता है कि ये लोग शांतिपूर्वक रहते होंगे. व्यापार दूर दूर तक होता था जिसका प्रमाण हैं सील. ये छोटी छोटी चौकौर सीलें जो लगभग 1" x 1" या थोड़ी सी बड़ी हैं जो दूसरे देशों में भी पाई गईं हैं. इन सीलों पर जानवर, फूल पत्ते या कुछ मार्के बने हैं जिन्हीं अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है.
सिन्धु -सरस्वती सभ्यता के दस अक्षर / वर्ण जो धोलावीरा के एक गेट पर सन 2000 में खोजे गए वो इस प्रकार हैं :
ये लोग कांसे का इस्तेमाल जानते थे याने ताम्बे और टिन के अयस्कों को मिला कर और भट्टी में गला कर कांसा बना लिया करते थे. इसलिए इसे कांस्य युग भी कहा जाता है. पर टिन का अयस्क कहाँ से लाते थे? अभी ये राज़ खुलना बाकी है. राज़ तो और भी बहुत से खुलने बाकी हैं मसलन ये लोग क्या बाहर से आये थे, या फिर यहीं के आदिवासी थे या फिर दक्षिण भारतीय थे? इतिहासकार भी इस बारे में अभी एकमत नहीं हैं. खोज जारी है.
1700 ईसा पूर्व के आसपास ये सभ्यता कैसे लुप्त हुई और लोग कहाँ चले गए ये नहीं मालूम हो सका है. हो सकता है बाढ़ आई हो, भूचाल आया हो या सूखा पड़ गया हो जिसके कारण लोग पलायन कर गए हों ? निश्चित तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता.
फिलहाल हम तो कांस्य युग के बाद पीतल युग और स्टेनलेस स्टील युग को भी पार कर चुके हैं और अब कंप्यूटर देवता के आशीर्वाद से 'चिप युग' में आ गए हैं.
क्रमशः जारी रहेगा.
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