गौतम बुद्ध ने कहा कि जैसे आकाश में तरह तरह की हवाएं लगातार चलती रहती हैं, कभी पुरवैय्या, कभी पछुआ, कभी उत्तर से, कभी दक्खिन से, कोई धूल वाली कोई बिना धूल की, कभी ठंडी तो कभी गरम, कहीं से मंद मंद और कहीं से तेज़, ठीक उसी प्रकार शरीर में भी तरह तरह की संवेदनाएं आती जाती रहती हैं. ये संवेदनाएं एक जैसी ना होकर हवाओं की तरह अलग अलग होती हैं. कुछ संवेदनाएं सुखद लगती हैं, कुछ दुखद और कुछ असुखद-अदुखद याने feeling of gladness, sadness or indifference. और जीवन भर ऐसा लगातार ही होता रहता है.
गौतम बुद्ध ने संयुक्त निकाय के 'अठ्ठसत परियाय वर्ग' में विस्तार से इस विषय पर चर्चा की है. उन्होंने 108 तरह की वेदनाएं बताई हैं.
- भिक्खुओ दो वेदनाएं कौन सी हैं?
- ये दो वेदनाएं हैं शारीरिक वेदना और मानसिक वेदना / bodily & mental feelings.
शारीरिक वेदना चोट लगने से, उल्टा पुल्टा खा लेने से या फिर जरूरत से ज्यादा काम करने से हो सकती है. साथ ही मौसम बदलने से भी शरीर में संवेदना हो सकती है.
मानसिक वेदना कुछ काम अधूरा छोड़ देने से या फिर पूरा कर देने इत्यादि से वेदना जाग सकती है.
- भिक्खुओ तीन वेदनाएं कौन सी हैं?
- ये तीन वेदनाएं हैं - सुखद वेदना, दुखद वेदना और अदुख-असुख वेदना
- भिक्खुओ पांच वेदनाएं कौन सी हैं?
- ये पांच वेदनाएं इस प्रकार हैं - 1. सुखेंद्रिय वेदना , 2. दुखेंद्रिय वेदना, 3. सौमनस्येंद्रिय वेदना, 4. दौर्मनस्येंद्रिय वेदना और 5. उपेक्षेन्द्रिय वेदना ( feeling of pleasure, pain, gladness, sadness & equinimity ).
पहली दो शरीर से और बाकी तीन मन से सम्बंधित हैं.
- भिक्खुओ छे वेदनाएं कौन सी हैं?
- ये छे वेदनाएं इस प्रकार हैं - 1. आँख के स्पर्श से पैदा हुई वेदना, 2. कान के स्पर्श से उपजी वेदना, 3. नाक के स्पर्श के कारण बनी वेदना, 4. जीभ के स्पर्श से बनी वेदना, 5. काया के संपर्क से उपजी वेदना और 6. मन के स्पर्श से बनी वेदना ( feelings born of sense-impression through eyes, ears, nose, tongue, body & mind ).
- भिक्खुओ अट्ठारह वेदना कौन सी हैं?
- अगर छे इन्द्रियों की सहायता से सौमनस्य ( सुखी मन से ) विचार करें तो छे, अगर छे इन्द्रियों की सहायता से दौर्मनस्य ( दुखी मन से ) विचार करें तो छे और छे इन्द्रियों के माध्यम से उपेक्षा जैसी वेदना से विचार करें तो छे याने कुल अट्ठारह वेदनाएं हैं.
- भिक्खुओ छत्तीस वेदनाएं कौन सी हैं?
- ये वेदनाएं दो भागों में हैं - 18 गृहसम्बन्धी और 18 गृहत्याग ( नैष्कर्म ) सम्बन्धी -
छे गृहसम्बन्धी सौमनस्य वेदनाएं, छे गृहसम्बन्धी दौर्मनस्य वेदनाएं और छे गृहसम्बन्धी उपेक्षा वेदनाएं, छे नैष्कर्म सम्बन्धी सौमनस्य वेदनाएं, छे नैष्कर्म सम्बन्धी दौर्मनस्य वेदनाएं और छे नैष्कर्म सम्बन्धी उपेक्षा / neutral वेदनाएं. कुल 36 वेदनाएं.
- भिक्खुओ 108 वेदनाएं कौन सी हैं?
- छत्तीस वेदनाएं अतीत की हैं, छत्तीस वेदनाएं वर्तमान की हैं और छत्तीस वेदनाएं भविष्य की हैं. इस तरह कुल 108 वेदनाएं हैं.
इसीलिए इस सुत्त का नाम अठ्ठसत सुत्त / अष्टशत सूत्र है.
वेदना का उदय मन और आँख, कान, नाक, जीभ और शरीर के स्पर्श / संपर्क से होता है. स्पर्श निरुद्ध हो जाए तो वेदना भी निरुद्ध हो जाएगी.
वेदना का गुण है कि इसके कारण सुख-सौमनस्य या दुःख-दौर्मनस्य की संवेदनाएं उत्पन्न होती हैं. वेदना का दोष है कि यह सदा नहीं रहती और परिवर्तनशील है.
वेदना का तृष्णा से जुड़ जाना स्वाभाविक है पर दुःख का कारण है.
गौतम बुद्ध ने आगे 'पठम समणब्राह्मण सुत्त में कहा है कि जो भिक्खु वेदना के गुण, दोष, वेदना का उदय होना, अस्त होना और निरुद्ध होना नहीं जानते वे श्रमण या ब्राह्मण सच में अपने नाम के अधिकारी नहीं हैं.
वेदना सम्बन्धी जानकारी आगे मैडिटेशन सीखने में बहुत सहायता करेगी.