*इस संसार में कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जिसके मन में कल्पनाएं ना उत्पन्न होती हों | प्रत्येक मनुष्य का मन कल्पनाओं के पंख लगाकर उड़ता रहता है | इन कल्पनाओं की गति असीम होती है तथा यह अपरिमित वेग के साथ दृश्य और अदृश्य लोकों में घूमती रहती हैं | पूर्व काल में हमारे देशवासियों ने इन्हीं कल्पनाओं के बल पर मनुष्य को विकासशील बनाया था | जब यहां पर सतयुग का आगमन हुआ तो हमारे महर्षि - ऋषि एवं महापुरुष जिन्हें कि हमारा पूर्वज कहा जाता है उनकी कल्पनाओं में वेद उपनिषद के मंत्र गूंजते थे , यही कारण है कि आज हमारी सनातन संस्कृति इतनी दिव्य एवं अक्षुण्ण है | कल्पना प्रत्येक मनुष्य के जीवन में होती है प्रत्येक मनुष्य प्रतिपल कोई न कोई कल्पना करता ही रहता है परंतु मनुष्य की कल्पना का स्तर क्या है यह महत्वपूर्ण होता है | मनुष्य जब कल्पना लोक में विचरण करता है तो अनेक प्रकार की रचनात्मक वस्तुएं एवं ग्रंथ हमें देखने को मिलते हैं | काव्य , कथाएं , नाटक , एकांकी , उपन्यास , ललित निबंध एवं अनेकानेक ग्रंथ कल्पनाओं की ही अभिव्यक्ति के स्वरूप हैं | किसी के सुरों में यही कल्पना संगीत बनती है जो अनगिनत धुनों में परिवर्तित होकर हमें सुनने को मिलती है | अपनी कल्पना के बल पर जब एक चित्रकार कोई चित्र बनाता है तो उसकी चित्रकला का सौंदर्य निखर जाता है | अनेक शिल्पकलायें कल्पना के बल पर ही संवरती हैं | कहने का तात्पर्य है कि जब मनुष्य की कल्पनायें सकारात्मक होती हैं तो उनमें रचनात्मकता देखने को मिलती है परंतु जब यही कल्पना है नकारात्मक हो जाती हैं तो मनुष्य का जीवन अंधकारमय होने लगता है और वह दिवास्वप्न देखने में ही अपना जीवन व्यतीत करने लगता है | आज यदि विश्व नित नए प्रयोग करते हुए सफलता के नए-नए आयाम स्थापित कर रहा है तो उसके मूल में मनुष्य की कल्पना ही है | मनुष्य को सदैव सकारात्मक कल्पना करनी चाहिए और उस कल्पना को धरातल पर जीवंत करके उतारने का प्रयास करना चाहिए जिससे कि उसकी कल्पना सत्य होकर लोगों के लिए हितकारी सिद्ध हो सके |*
*आज हम आधुनिक जीवन जी रहे हैं | आधुनिकता में मनुष्य इस प्रकार फंस गया है कि वह नित नई कल्पनाएं करने में ही अपना समय व्यतीत कर रहा है | किसी भी कल्पना को पूरी करने के लिए मनुष्य को कर्म करना होता है क्योंकि कर्म को ही माध्यम बनाकर कल्पनायें धरातल पर उतरती है परंतु आज प्रायः यह देखने को मिल रहा है कि अधिकतर मनुष्य कभी न पूरी होने वाली कल्पनाएं करते रहते हैं और कभी न पूरी होने वाली कल्पनाएं मात्र सपना बनकर मनुष्य की अंतश्चेतना को ललचाती रहती हैं और जीवन भर मनुष्य को इसकी टीस उठती रहती है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी कल्पनाओं का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए कि उनसे स्वयं के साथ समाज का भी हित हो क्योंकि कल्पना ही मानवीय चेतना की दिव्य क्षमता है , यही वह शक्ति है जिसके प्रयोग से मनुष्य देह बंधन में रहते हुए भी असीम और विराट तत्व के संपर्क में आ पाता है | इसी के उपयोग से मनुष्य के जीवन में नई अनुभूतियों के द्वार खुलते हैं ! चेतना में नवीन आयाम उद्घाटित होते हैं और इन्हीं कल्पनाओं से नवसृजन के अंकुर फूटते हैं | प्रत्येक मनुष्य को कल्पनाओं के द्वारा अपने जीवन की मौलिक एवं रचनात्मक शक्ति का विकास करना चाहिए अर्थात नकारात्मक कल्पनाओं को कभी भी अपने पास ना आने दे | जब मनुष्य अपने उज्जवल भविष्य की सुखद झांकी कल्पना की तूलिका से तैयार करता है और उसी के अनुसार कर्म करता है तो उसका जीवन सुखद एवं स्वर्णिम हो जाता है | कल्पना करते रहने मात्र से कुछ भी नहीं मिलने वाला है जब तक कल्पना को पूरी करने के लिए कर्म नहीं किया जाएगा | सदैव सकारात्मक कल्पनाओं को अपने मस्तिष्क में स्थान देते हुए उनके अनुसार कर्म करते हुए ही मनुष्य सफल हो सकता है |*
*प्रत्येक मनुष्य को सार्थक जीवन के लिए अपनी कल्पनाओं का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए कि उनकी कल्पना का स्तर कभी भी गिरने ना पाये | विषय - बिलास , राग - रंग की कल्पनाओं को मस्तिष्क से निकालने के बाद ही कोई सफलता प्राप्त कर सकता है |*