
*सनातन धर्म एक दिव्य एवं अलौकिक परंपरा को प्रस्तुत करता है , समय-समय पर सनातन धर्म में प्रत्येक प्राणी के लिए व्रत एवं पर्वों का महत्व रहा है | परिवार के जितने भी सदस्य होते हैं उनके लिए अलग अलग व्रतविशेष का विधान सनातन धर्म में ही प्राप्त होता है | सृष्टि का आधार नारी को माना गया है | एक नारी के द्वारा समय-समय पर अपने पति , पुत्र एवं भाई के लिए व्रत रखकर उनकी आयु , सुख एवं ऐश्वर्य में वृद्धि के लिए की जाने वाली प्रार्थना ही नारी को महान बनाती है | भाई के लिए रक्षाबंधन , भैया दूज , पुत्र के लिए षष्ठी का व्रत करने वाली नारी अपने पति के लिए वैसे तो अनेकों व्रत करती है परंतु कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला दुष्कर "करवा चौथ" का व्रत नारियां अपने पति की दीर्घायु प्राप्ति के लिए करती हैं | प्रात: चार बजे से प्रारंभ करके रात में चंद्रोदय तक निर्जल रहकर यह व्रत नारियां मात्र इसलिए करती हैं कि उनके पति की आयु में वृद्धि हो एवं सनातन की मान्यता के अनुसार उन्हें सात जन्मो तक इसी पति का प्रेम मिलता रहे | यह व्रत करने का अधिकार मात्र सौभाग्यवती स्त्रियों को है | इसमें आयु , जाति , वर्ण , संप्रदाय की कोई बाध्यता नहीं है , सभी सौभाग्यवती स्त्रियां इस व्रत को कर सकती हैं | वैसे तो यह व्रत जीवन भर किया जाता है परंतु कहीं-कहीं लोकमान्यता है सौभाग्यवती स्त्री इस व्रत को सोलह वर्ष तक करने के उपरांत उद्यापन कर दे | उद्यापन करने के बाद पुनः वह इस व्रत का प्रारंभ कर सकती है | हमारे शास्त्रों के अनुसार यह व्रत सौभाग्यदायक एवं पति की दीर्घायु के उद्देश्य से किये जाने वाले किसी भी व्रत से सर्वोत्तम है | अतः सभी सौभाग्यवती स्त्रियों को करवाचौथ का व्रत नियम पूर्वक रहना ही चाहिए |*
*आज जिस प्रकार आधुनिकता ने समस्त मानव समाज को अपने रंग में रंग लिया है उससे अछूता यह व्रत भी नहीं रह गया है | आज भले ही यह व्रत भी आधुनिकता के रंग में रंग गया है परंतु जिस प्रकार विदेशों में पति पत्नी के रिश्तो के कोई मायने नहीं रह गए हैं वही हमारे देश भारत की महानता है कि सभी सौभाग्यवती स्त्रियां इस व्रत का पालन करके सात जन्मो तक उसी पति को प्राप्त करने की कामना करती हैं | आज पुरुष समाज को विचार करना चाहिए जो नारी दिन भर बिना अन्न जल के कठिन तपस्या करके उनके लिए पूरा दिन व्यतीत करके भालचंद्र गणेश के पूजन के बाद छलनी के माध्यम से अपने पति का प्रथम दर्शन करके उन्हीं के द्वारा पिलाए गए जल से अपने व्रत का समापन करती हैं , उनके लिए पुरुष समाज क्या कर रहा है ?? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि कुछ परिवारों में स्त्री तो अपने पति के लिए दिनभर निर्जल रहकर के करवा चौथ का कठिन व्रत करती है परंतु सायंकाल को जब पूजन का समय आता है तो पति देवता मदिरापान करके घर पहुंच कर तांडव तो मचाते ही हैं साथ ही अपनी पत्नी के साथ मारपीट भी करने लगते हैं | परंतु सब कुछ सहन करके भी एक महान नारी अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत करती है | क्या ऐसे पुरुषों का अपनी पत्नी के लिए कोई कर्तव्य नहीं है ?? जिसने मात्र पति के लिए अपने माता - पिता , भाई - बंधु को छोड़ दिया और ससुराल आ गई उसी पति के द्वारा यदि वह प्रताड़ित होती है तो इसे क्या माना जाए ?? क्या ऐसे प्राणी सभ्य समाज में रहने योग्य कहे जा सकते हैं ?? जो भी पुरुष अपने घर की मान मर्यादा अर्थात अपनी पत्नी का सम्मान नहीं कर सकता वह समाज में किसी और का सम्मान क्या करेगा ?? ऐसे पुरुष सम्मान के योग्य भी नहीं होते | एक ज्वलंत प्रश्न यह भी उठता है जहां नारियां पुरुषों के लिए जीवन भर कोई न कोई कठिन व्रत करती रहती है वही क्या पुरुष समाज भी इन नालियों के लिए किसी व्रत का पालन करता है ?? शायद ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है | सच्चाई तो यह है की नारियां सदैव त्याग की मूर्ति रही हैं और इनका जीवन अपने लिए होता ही नहीं है | बाल्यकाल में भाई के लिए , विवाहोपरांत पति के लिए एवं माता बनने के बाद पुत्र के लिए सदैव व्रत करने वाली नारियां त्याग की मूर्ति होती है अतः इनका सम्मान सदैव होते रहना चाहिए |*
*नारी सदैव से अपना जीवन दूसरों को ही समर्पित करती रही है यह बात पुरुष समाज को समझना चाहिए | जिस प्रकार आज मां की कोख से लेकर के इस संसार में आने के बाद तक नारी जाति पर अनाचार अत्याचार बढ़ रहा है आने वाले भविष्य के लिए शुभ संदेश नहीं कहा जा सकता | इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है |*