ठण्ड रात थीउनकी चादर फटी हुई थी,चादर कंप कंपा रही थी,कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रहीथी.बस सिर्फ चादर फटी हुईथी,गहरी अँधेरी रात थी,ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठथी....रात जितनी लंबी थी, उससेभी ज्यादा लंबी हो रही थीचादर फटी हुई थी...नींद आँखों में होते हुएभी ठंडे तारों को देख रहीथी...
प्शीर्षक- चतुर - विज्ञ, निपुण, नागर, पटु, कुशल, दक्ष, प्रवीण, योग्य। "मुक्तक" काम न आए हर घड़ी, चतुराई की चाल योग्य निपुड़ता दक्षता, शोभे मस्तक भाल कोशिश करती लोमड़ी, हर्षित होय सियार कर्म कुशल होता बली, नागर बुद्धि विशाल।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
देखो रावण जल रहा, संग लिए दस माथ एक बाण नहि सह सका, धनुष वाण कर नाथ।। पंडित है शूर योद्धा, शिर चढ़ा अहंकार अधर्म सगा कबहू नहि, सगी न निज तलवार।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
"दोहा" देखो रावण जल रहा, संग लिए दस माथ एक बाण नहि सह सका, धनुष वाण कर नाथ।। पंडित है शूर योद्धा, शिर चढ़ा अहंकार अधर्म सगा कबहू नहि, सगी न निज तलवार।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
समस्त बेटियों को समर्पित ....जब हुयी प्रस्फुटित वह कलिकाकोई उपवन ना हर्षायाउसकी कोमलता को लख करपाषाण कोई न पिघलाया!वह पल प्रति पल विकसित होतीइक दिनचर्या जीती आईबच बच एक एक पग रखती वहशैशव व्यतीत करती आई!जिसने था उसका सृजन कियाउसने न मोल उसका जानावह था जो उसका जनक स्वयम् उसने न मोह उससे बाँधा !
यह कविता मैंने मातृदिवस के उपलक्ष्य में मई २०१६ में लिखी थी।नौं माह गर्भ में रख कर,रक्त से अपने पोषित कर,कड़ी वेदना सह कर भी,नव जीवन का निर्माण किया।हम कर्जदार है उस माँ के,जिसने हमको जन्म दिया।दुनिया में आकर शिशु ने,जो पहला शब्द उदघोष् किया,वो करता इंगित उस स्त्री को,जिसने हमको जन्म दिया।"माँ" शब्द
इक चाँद पाने के खातिरपंछी की शहादत लिख जाऊंगाहै नही तू मेरी किस्मत मेंफिर भी महोब्बत कर जाऊंगा....दिल दुखना फितरत नहीं है मेरी तेरी तरह इतराना आदत नही है मेरी तू भले ही समझ दुश्मन मुझेपर तुमसे कोई बगावत नही है मेरी....बसंत में महकती है खुशबुमै पतझड़ में फूल खिला जाऊंगा'संगम' कहता है जमाना मुझकोदेखना
जय भारतीय रक्षक वीर,मत लेना विरोधियों का खीर-नीर,विरोधियों का सीना देना चीर,जैसे ही कर्तव्य पथ पर वे हों अधीर। तुम्हें देशभक्त शीश नवाते,तुम्हारी जीत के जश्न मनाते,तुम हम सभी क
💤 कड़वा सच 💤 क्या आज रावण मरेगा? या उसका एक शीष बड़ेगा. साल दर साल रावण मृत्यु को तरसता रह जायेगा, पर कलयुग में शायद ही कोई राम बन पायेगा . कलयुग में रावण की पुकार, पहले बेटी बचा फिर मुझे मार. समाज का आईना वीभत्स हो रहा है, नारी का अपमान एवं बेटियों का शोषण हो रहा है. राम बचा नही कलयुग
विजया दशमी के उपलक्ष पर लिखी रचना विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें .मेरी चतुर्नवतिः काव्य रचना (My Ninety-fourth Poem).“विजया दशमी”.“विजय मनाऊँ किसकी मैंराम की या रावण की गाथा किसकी गाऊँ मैंराम की या रावण कीराम पिता की आज्ञा से बिन महल चौदह वर्ष बितायेरावण ने बहुत तपस्या से जाने कितने स्वर्ण महल बन
***नारी भी नारायणी भी*** मंगल मृदुल मुस्कानवाली मेरी मैया,दाहक प्रचंड चण्डिका स्वरूपिणी भी है।करूणामयी है, तापनाशिनी है मैया,रिपुदल का दलन करे दुष्टमर्दिनी भी है।ममतामयी वरदायिनी है महामाया,क्रोधित स्वरूप स्वयं भस्मकारिणी भी है।गुण, ज्ञान, बुद्धिदायिनी है मेरी मैया,कष्ट,
वो शहर के नुक्कड़ का बड़ा मकान और उसका छोटा सा कमरा, स्मृतियों के पार कहीं भूला कहीं बिसरा। असफलताओं से निराश, मुझे देख उदास, मुझसे लिपट गया और बोला, चल मेरी सूनी पड़ी दीवारों को फिर सजाते हैं, और कुछ नए स्लोगन आदि यहाँ चिपकाते हैं। भूल गया कैसे अपने हर इम्तिहान से पहले
अरुणोदय की मधुमय बेला में मैंने उसे देखा। नव प्रभा की भांति वह भी हर्ष से खिला था, मानो धरा से फूटी किसी नई कोंपल को पहली धूप का स्नेह मिला था। शिष्टता के अलंकार में अति विनीत हो, उसने मुझसे नमस्कार किया , और अप्रतिम आनंद का प्रतिमान मेरे ह्रदय में उतार दिया। मुझे
असफलताओं का क्रम, साहस को अधमरा कर चुका है। निराशा की बेड़ियाँ कदमों मे हैं, धैर्य का जुगनू लौ विहीन होता, अँधेरों के सम्मुख घुटने टेक रहा है। और उम्मीदों का सूर्य, विश्वास के क्षितिज पर अस्त होने को है। जो कुछ भी शेष बचा है, वह अवशेष यक्ष प्रश्न सा है। क्या अथक परि
मेरी त्रिनवतिः काव्य रचना (My Ninety-Third Poem) किसी ने दिल को तोड़ा है किसी ने रब को छोड़ा है यहाँ पर आधुनिक होकर अधिकतर ने माँ-बाप छोड़ा है किसी ने स्वार्थ हित आकर अपना घर-बार तोड़ा है किसी ने धन के मद में अपने संबन्धो से मुख मोड़ा है । . यहाँ पर धूर्त लोगों ने क
वो तो देश के लिए जान देते हैऔर देश के लिए जान लेते है ये तो देश के जांबाज बेटे हैं देश के कोने से कोई पूछता है लिए गए और दिए गए जानों की गिनती तो गज़ब का देशद्रोह है देश के भीतर कोई खोह है जिससे देश वालों को खतरा है कितना अविश्वास पसरा है ?घोसले में से निकलकर परिंदा ठूँठ पर बैठा है किसी विरासत पर ऐंठ
दलालों को दलाली दिखीझूठों ने मांगा सबूत ।उनकी माँ शर्मिंदा होगी ,कैसे जने कपूत ।इस युग के जयचंद बनेये दुश्मन की चालों के मोहरे ।जख्म दे गए जनमानस को गहरे ।
जब घना अँधेरा हो, जब दूर सवेरा हो जब घोर उदासी हो, जब मति विनाशी हो जब साथ हो सब लेकिन, तू खुद में अकेला हो रख याद किन्ही रातो का तुजे देख उजाला हो तू बन तुफानो सा, रुख मोड दिशाओ के जीवन में वही काबिल है गिर के जो संभलता हो सूरज नहीं वो है एक तारा जो खुद न चमकता हो
आजकल के युवा जो कि अपने आप को विलासिता की जिन्दगी से ओतप्रोत कर रहे है, फ़िल्मी और काल्पनिक दुनिया में खोते जा रहे है, उनके अंतर्मन को झकझोरने का एक प्रयास है ताकि वो लोग अपने जीवन के उद्देश्य को जानकार सही दिशा में बढ़ कर सफलता को प्राप्त करे | वयंग्ये युवाओ की जीवन शेली प
.....................शब्द.........................शब्दों की एक अपनी दुनियां हैइनको गढ़ा हमनें,और अलग-अलग रूप दिया।शब्द मरते नहीं,इंसानों की तरहवह जीवित रहते हैं,अनन्त काल तक।शब्दों को भी आत्मा की तरह,अमरत्व प्राप्त है।ये भी रूढ़ होकर,शरीर त्याग देतें हैं।फिर इनका जीवन शुरू होता है,एक नये शरीर में।इन