कौरोना की दूसरी लहर
डॉ शोभा भारद्वाज
मेरा घर व्यस्त सड़क
पर है दिल्ली को नोएडा से जोड़ती लाक डाउन में खाली सड़क उस पर दर्दीला आवाज में
भागती एम्बूलेंस की आवाज दहशत से हाल कर जाती है आज मई का दूसरा सोमबार पूरे दिन
में एक एम्बूलेंस दिल्ली की तरफ आवाज करती जाती दिखाई दी हैरानी के साथ ख़ुशी हुई
शायद कोरोना की दूसरी लहर पर कुछ रोक लगी है
हाँ पुलिस की गाड़ी लगातार गश्त करती है सब्जी के ठेले वालों को दो गज की
दूरी एवं मास्क लगाईये रोज समझाती है परन्तु उनका जबाब होता है हम गरीब आदमी साब .
कुछ दिन पहले मेरी
विदेश में रहने वाली बेटी , मेरी ही नहीं जिनके बच्चे विदेशों में रहते है सभी की
समस्या है विदेशी न्यूज पेपर की भारत हेड लाईन बना हुआ है खतरनाक समाचार
,एडिटोरियल भारत की ऐसी विचित्र छवि खींच
रहे है उनके अपने देश में क्या हो रहा है उससे मतलब नहीं है . भारत में न दवा है न
वैक्सीन .न वेंटिलेटर न आक्सीजन लोग मर रहे हैं भारत सरकार उनकी संख्या छुपा रही
है .अस्पतालों में बेड खाली नहीं है एक ऐसा समाचार श्मशानों में जलती चिताओं के
चित्र से भी हैं श्मशान में जगह खाली नहीं है लोग पार्कों में लकड़ियों से चिता बना
कर शवों को जला रहे हैं मैं घबरा कर घर से बाहर निकली घर के आस पास चार पार्क हैं
एक स्मृति वन है मुझे कही जलती चितायें दिखाई नहीं दी .हमारे विपक्ष के नेता के
ट्विटर से भारत की छवि को धूमिल करते विदेशी मीडिया में सुर्खिया बटोरते हैं
.प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है .
हमारे न्यूज चैनल प्रति
दिन कोरोना पीड़ितों की संख्या कितने ठीक हो गये मृतकों की संख्या देते हैं इससे
कोरोना की दूसरी लहर की भयानकता का पता चलता है .कई एंकर ऐसे प्रश्न प्रश्न पूछ
रहे हैं जैसे कोर्ट में वकील बन कर खड़े हैं . बुरी खबरें दर्दनाक चित्र खींचने में
कुछ न्यूज चैनलों को महारथ हासिल है जिससे टीआरपी बढ़े . आपसी बहसों में भी बढ़ चढ़
कर सरकार की निंदा करना नकारात्मक छवि पेश करना लेकिन विपक्ष द्वारा सरकार को आयना
दिखाना भी जरूरी है एक दल के प्रमुख ने तो वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन का नाम डे
दिया जबकि वैक्सीन हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत का परिणाम है . क्या एक साथ खड़े
होकर कोरोना महामारी की संकट कालीन स्थिति का मुकाबला नहीं किया जा सकता . ट्विटर
वार बाद में भी की जा सकती है अभी लोकसभा के चुनाव दूर हैं फिर भी कुछ नेता कोरोना
काल को चुनाव प्रचार का सुअवसर समझ रहे है
पहली कोरोना की लहर
का मुकाबला सबने अच्छी तरह किया था धीरे-धीरे लाक डाउन हटा बाजार खुल गये लोगों ने
समझ लिया अब दुःख के दिन चले गये अच्छा समय आ गया बार-बार स्वास्थ्य विभाग अपील कर
रहा था चेहरे पर मास्क लगाये दूरी बनाये रखें किसी ने नहीं सुना घर के बाहर सब्जी
वाले खड़े होते हैं तकरीबन मास्क गायब अगर किसी ने लगाया भी है थी नाम मात्र का
गर्दन के पास लटकता है . कुछ ने टोका उन्होंने ऐसे देखा जैसा दिमाग खराब हो गया कोरोना कहां है ?वही भीड़ भाड़
बस सिनेमा और जिम बंद थे .वेक्सीन आ गयी शुरू में कोरोना योद्धाओं को लगाई गयी लेकिन
ज्यादातर की दिलचस्पी लगवाने में नहीं थी पहले दूसरे लगवा लें परिणाम देख लें किसी ने एक लगवाई दूसरी के लिए नहीं गये मैं
अपने एरिया के बड़े अस्पताल में पहली वैक्सीन के लिए एक बजे गयी कुल पाँच लोग
लगवाने वाले थे वैक्सीन भी थी डाक्टर एवं नर्स भी बैठे थे लेकिन लगवाने वाले गायब
आज सवाल पूछे जा रहे हैं जब हमारे पास वैक्सीन नहीं है 94 देशों को क्यों दी गयी चैनल
के एंकर भाषण झाड़ रहे हैं मेंटल रैक होने से बचने के लिए ज्यादातर ने टीवी में
खबरे सुनना बंद कर दिया . अनेक लोग चले गये .
आजकल सीनियर सिटीजन
ने ग्रुप बना लिए हैं दस बारह का ग्रुप बना कर घूमने चल दिए कुछ को मोटी पेंशन मिलती है कुछ के पास बैंक में काफी
पैसा है बोर हो गये कुछ मौज मजा हो जाए . जो जवान घरो से काम करते थे वह गोवा चल
दिए वहाँ सुबह शाम बीच पर भीड़ जमाना और दिन में जहाँ ठहरे हैं वहां काम करना बाहर
से खाना मंगाना आज गोवा को भी बायरस ने बेहाल कर दिया बीच खाली है .एक सज्जन ने
अपने मित्र को समझाया चलो गोवा चलते हैं आजकल बीच खाली है वहाँ भीड़ नहीं है .
कुछ घर से काम करने वाले जवान पाँच दिन जम
कर काम करते रहे शुक्रवार की शाम किसी एक मित्र के घर बैठक लगाते बाहर से खाना
मंगाते मास्क से मतलब नहीं अरे सभी दोस्त हैं स्वस्थ हैं . किसी न किसी तरह कोरोना
संक्रमित हो गये सिर बाँध कर बिस्तर पर पड़े हैं हाल बेहाल हैं घर में कोई नहीं है
जिनसे मदद मिल जाए . जिससे भी पूछो सबके
पास एक ही जबाब है हम तो घर से बाहर नहीं निकले पता नहीं कैसे बिमार हो गये
क्लिनिक आजकल बंद है आनलाइन डाक्टर से बात होती है कुछ के माता पिता बीमार पड़ गये भर्ती
के लिए बच्चे आक्सीजन एवं इंजेक्शन के जुगाड़ के लिए परेशान है .एक दो बच्चे हैं
किन्हीं घरो में एक बेटी एक दूसरे से मदद की अपील कर रहे हैं . दर्दनाक घटनायें
सुन कर दिल बैठ जाता है .
देश में बढती
जनसंख्या पर किसी ने ध्यान नहीं दिया 135 करोड़ की आबादी महामारी के दौर को कैसे
संभाला जा सकता है फिर भी जो मदद हमारी सरकार ने दी थी उसके बदले में दुनिया के
देशों से मदद आ रही है विकसित देशों के
हाल बेहाल हो गये थे जिनके पास सभी साधन थे हमारा देश तो विशाल जनसंख्या वाला देश
है .
सरकार की गलती दुःख
है इस वक्त चुनाव पीछे कर देने चाहिए थे बंगाल के चुनावों में ख़ास तोर पर देखा
भारी भीड़ न मास्क न दूरी के नियमों का पालन किया गया . ‘कुम्भ स्नान’ बाबाओं
साधुओं को स्नान करने देते लेकिन आम लोगों को सख्ती से रोकना चाहिए था जब कोरोना
फैला तब भी तो स्नान रोका गया एक दिन में 50 लाख लोगों ने स्नान किया जब वायरस
बढ़ने लगा उत्तराखंड में भी महामारी फैल गयी जो स्नान करने टोलियां बना कर आये थे
संक्रमित होकर लौटे दूसरो को भी संक्रमित किया .
कोरोना महामारी में
सरकार की निंदा की जा रही है छह करोड़ वैक्सीन हमने बाहर भेजे यह उन दिनों की बात
है जब हमारे यहाँ लोग उदासीन थे हमारे अपने यहाँ वैक्सीन खराब कर दिए . आज विश्व
का हर देश भारत को मदद भेज रहा है .मोदी जी कोशिश कर रहे हैं वैक्सीन फार्मूले को
वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां सार्वजनिक करे जिससे अन्य अच्छी दवा कम्पनियां
वैक्सीन बना सकें इसमें अमेरिका भी शामिल हैं मानवता के लिए मुनाफ़ा न देख कर लोगों
को बचाया जाए लेकिन ब्रिटेन इसके लिए तैयार नहीं है . इस पर एक सीएम साहब भाषण से अपना
सुझाव दे रहे हैं जैसे उन्हीं का सुझाव हैं.
मेरे एक इंजेक्शन लग
चुका था लेकिन मैं कोरोना संक्रमित हो गयी घर में काम करने वाली गावँ चली गयी घर
के आसपास के ढाबे रेस्टोरेंट बंद हो गये मेरा लड़का घर से काम कर रहा है उस पर काम का दबाब इतना है काम चलता ही रहता है . घर
में मेरे पति और लड़का सोया था मै चुपचाप उठी गीजर गर्म किया अच्छी तरह हाथ मुहँ साफ़ कर दो मास्क से चेहरे को ढक कर सिर पर
स्कार्फ बाँध लिया जूठे बर्तनों में खोलता पानी डाल कर उन्हें साफ़ कर फिर खोलता
पानी डाल दिया अब खाना ? हाथों को अच्छी तरह धोकर रोटी और पराठे बना लिए दाल और
सब्जी बना कर ठंडा होने पर खाना फ्रिज में रख दिया उसके बाद हिम्मत नहीं थी सो गयी
तीन दिन का इंतजाम कर दिया सब हैरान थे जिसको खाना हो वह माईक्रोवेव में गर्म कर
ले कोरोना के वायरस से मुक्त खाना ऐसे ही हिम्मत से काम चलाया .पहले डांट पड़ी फिर जब मैने समझाया आप चिंता न करे
मैने वायरस का ध्यान रख कर काम किया है करती रही .मैं किसी तरह दूध के सहारे खाना
निगलती सात दिन बाद बुखार उतर गया दो दिन साँस
लेने में तकलीफ होती रही दस दिन में ठीक हो गयी 14 दिन बाद स्वाद भी लौट आया घर का
काम भी चल गया . घर में किसी को कुछ नहीं हुआ हाँ दिन में तीन बार आक्सीजन का लेबल देखा जाता था लंबी सांस
खींच कर कोशिश करती रही भर्ती की नौबत न आ जाए घर में मेरी हिम्मत की सबने दाद दी
.मजबूरी क्या नहीं करवाती जरूरत हिम्मत बनाये रखने की है .
यदि हम सभी मिल कर
कोशिश करेंगे ,तीसरी लहर से बच जायेंगे .