प्रणाम सद्गुरू, Yes, कोई फूल खिलता है तो उसकी सुगंध फैल जाता है चाहे कोई उसकी खुशबू ले या ना ले। इसकी वह परवाह नही करता वह खिलने में ही पूर्ण है। उसकी सुगंध पाकर कीट पतंग व
प्रणाम सिस्टर, येस, हम किसी को दोष क्यो दे जबकि सारा हमारा किया कराया है । हमारे अन्दर जरुर फूलो का खज़ाना होना चाहिए न कि काँटो का। शुभ सोचेंगे ,शुभ करेंगे तो वही वापस होकर बर
प्रणाम सद्गुरू, Yes, हम रोजाना दैनिक क्रिया करते है। जिसमे पाचों इन्द्रियों का उपयोग होता है। जैसे हम खाना खाते है जीवन के लिए जो आवश्यक है पर जीभ से स्वाद लिया जाता है कभी
प्रणाम सद्गुरू, Yes, क्रोध बुरा है समाज व खुद के लिए यदि क्रोध करेंगे तो लोग हमसे नाराज होंगे और क्रोध को रोकेंगे तो वह ऊर्जा हमे अंदर रुग्ण करेगी। क्रोध को हम दबा भी नही सक
प्रणाम सद्गुरू, हाँ, योग हमारे भौतिक शरीर को निराकार रुप में ले जाता है। वह प्रकृति के साथ हमे उस ऊर्जा से जोड़ देता है जो सर्वशक्तिमान है। सामान्यतः लोग योग का अर्थ शारिरीक व
प्रणाम सद्गुरू हाँ, जागरुकता बहुत बड़ी कीमिया है । आमतौर पर हम जिसे जागरुक होना कहते हैं वो एक साधारण जीवन चर्या है जिसे रोजमर्रा की जिंदगी में जीते है । जागरुक एक अलग ही बात है
प्रणाम सद्गुरू, एकादशी के दिन हम जागरुक हो सकते है अन्य दिन की अपेक्षा प्रकृति इस दिन हमे हमारी ऊर्जा को ऊपर उठाने में मदद करता है । हम अपनी जागरुकता को बढ़ा सकते हैं जितनी हम ज
प्रणाम सिस्टर, Yes; हम प्रसन्न आत्मा है। हम शांत है ही शांत होना हमारा स्वभाव है। हमारे परिधि में कुछ भी होता रहे पर केन्द्र में कोई हलचल नही होता वह अछुता है सुख दुख उसके लिए
प्रणाम सद्गुरू; जब मन व शारीरिक शक्ति एक हो जाए तो निश्चित ही व्यक्ति सफलता को प्राप्त करता है । लेकिन कहते हैं हमारे पास एक और शक्ति का स्रोत है जो जितना उपयोग होता है उतनी सामर
प्रणाम सद्गुरू, हाँ सद्गुरू जिस प्रकार से एक पौधा पूरी तरह से खिल उठता है वातावरण में सुगंध बिखेर देता है उसी प्रकार से मनुष्य के जन्म का उद्देश्य अपनी पूरी संभावना के साथ खिल उठना है
प्रणाम सद्गुरू, मेडीटेशन (meditation) आज के युग की आवश्यकता है और प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान जरुर करना चाहिए । ध्यान से ही शरीर व मन में अंतर महसूस कर पाते है ।ये बड़ा गम्भीर मामला
प्रणाम सद्गुरू, हाँ ;यदि हम निरंतर ये याद रखे की इस पृथ्वी पर हम मेहमान है कुछ समय के लिए आए हैं तो हमारा कदम अच्छाइयों की ओर होगा। हम बेकार चीजो में उलझे रहते है जबकि हमे यहाँ अधिक समय तक रहना न
जीवन के रास्ते से गुजरते हुए मैं कईयों को देख द्रवीभूत हो जाता हूँ जिसके सपने सजते-सजते नील गगन के तारों की तरह बिखर गए जिसे संजोया जाना या पुनः एकत्रित करना असंभव सा महसूस होने लगा। जिसने जीवन के तमा
सच्चा मित्रएक गाँव में एक व्यापारी अपनी पत्नी और बारह साल के बेटे, अनीश के साथ बहुत खुशी - खुशी रहता था। व्यापारी के कारोबार में दिन - रात तरक्की होती थी। अनीश इकलौती सन्तान होने के कारण लाड - दुलार म
रंग बिखेरते फूलएक कस्बे में एक सामान्य परिवार निवास करता था। परिवार में पति हरि प्रसाद और पत्नी नारायणी और दो बेटे थे - बड़ा बेटा सुरेश और छोटा बेटा मनोज। दोनों की विद्यालय जाने की उम्र हो गयी थी। दोनो
मैं लेखक वही लिखने को पन्ने भी वही पर मैंने अपने कलम की स्याही का रंग बदल दिया पहले जो कलम कोरे पन्नों पर कल्पनाएं सजाती थीं अब उन्हीं पन्नों पर यथार
प्रणाम सिस्टर, मन मालिक हो जाता है जबकि मन को नौकर होना चाहिए। ये तादात्म्य टूटता ही नही जीवन भर आदमी मन की गुलामी करता रहता है। अधेड़ उम्र के होने पर भी जो बच्चे जैसा सरल स्वभाव वाला
प्रणाम सद्गुरू , Meditation अच्छे व बुरे में फर्क करा देता है।दुध का दुध व पानी का पानी कर देता है। "ध्यान" को हमको समझना होगा। इन्सान अपने शरीर व मन से जुड़ा रहता है वह अपने को अलग समझ
प्रणाम सद्गुरू, नई पीढ़ी ज्यादा चिंतित हो गई है बच्चो के परवरिश के लिए ।बच्चा अपने हाथ से खाना नही खा सकता तो माँ उसे खिलाती है पर वह थोड़ा बड़ा होने पर स्वय खा लेती है ।माँ फिर भी उसे
उत्कृष्ट प्रेमजब प्रेमी, प्रेमिकाएं प्रेम में पड़ते है तो बहुत अद्भुत अनुभूति होती है। किंतु जब प्रेम में बिछड़ते है तो अत्यंत पीड़ा झेलनी पड़ती है क्या असल में प्रेम इतना उत्कृष्ट होता