*शारदीय नवरात्र का शुभारंभ आज से हो रहा है , जगह जगह पर देवी जी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी और उनका विधिवत पूजन होगा | पुराणों में मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने भगवती महामाया की आराधना करके ही फलस्वरूप रावण का वध किया | महामाया की आराधना कभी निष्फल नहीं जाती है बस आवश्यकता होती है विनय विश्वास और पूर्ण श्रद्धा की | शरणागत हो करके जो भी पत्र पुष्प अर्पित किया जाता है वह भगवती प्रेम से स्वीकार करती है | साधक विभिन्न प्रकार की साधनाएं करते हैं और प्रसाद स्वरूप महामाया की कृपा प्राप्त करते हैं | घरों में कलश स्थापन करके दुर्गा सप्तशती दुर्गा चालीसा आदि का पाठ करके अपनी श्रद्धा अर्पित की जाती है |नवरात्र हिन्दू
धर्म ग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है।
भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। नारी शक्ति को उद्दीपित करता हुआ यह पर्व यह बताता है कि नारी कभी भी अबला नहीं हो सकती है | यदि वह सौम्यस्वरूपा महालक्ष्मी है , अपने बच्चों को संस्कार व ज्ञानप्रदाता महासरस्वती है तो समय आने पर विकराल कालिका रूप भी धारण कर लेती है |जहां पर अनीति ज्यादा होती है वहां वह सिंह वाहिनी बनकरके दुर्गा स्वरूप धारण कर दुष्टों का संहार भी करती है |* *आज के वातावरण में यह पर्व मनाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि आज संपूर्ण समाज लज्जा हीन हो गया है , कन्या पूजन का महत्व इसलिए है क्योंकि आज कन्याओं का जिस प्रकार से घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है तो यह कन्या पूजन कहीं ना कहीं से उन कन्याओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है | आज जिस प्रकार से जगह-जगह गांव-गांव में समितियों का निर्माण कर के दुर्गा पूजा मनाने की व्यवस्था बनी है उन समितियों में अधिकतर नवयुवक होते हैं उन लोगों से यह कहना है यदि आप शक्तिस्वरूपा महामाया की आराधना का यह पर्व जिसे दुर्गा पूजा कहा जाता है मनाने के लिए एकत्र हुए हैं तो जिस शक्ति की पूजा कर रहे हैं उन शक्तियों के संरक्षण का भार भी आपके ऊपर है | यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जिस प्रकार से आप अपने घर में अपनी मां बहन बेटी आदि का सम्मान करते हैं उसी प्रकार अन्य नारी जाति का सम्मान करने से ही दुर्गा पूजा मनाने का उद्देश्य पूरा होगा | हमारे मनीषियों ने जो भी कार्य सनातन
धर्म के लिए प्रतिपादित किए हैं उनमें कहीं ना कहीं से लोककल्याण निहित था | जब हम नारी शक्ति की उपासना करते हैं तो हमारे भीतर नारी का सम्मान अपने आप जग जाता है , और हम संपूर्ण नारी जाति को श्रद्धा एवं सम्मान से देखते हैं | ऐसा हमारे मनीषियों का मानना था | इसीलिए इन पर्वों का प्रचलन हुआ जिससे कि अपने संस्कारों से विमुख होता यह समाज एक बार पुनः स्वयं को स्थापित करने का प्रयास करें |* *प्रेम से यह पर्व मनाते हुए हम यह संकल्प लें कि ना तो मेरे द्वारा और ना ही समाज में किसी के द्वारा नारी जाति पर कोई अत्याचार बर्दाश्त किया जाएगा और ना ही उनके सम्मान पर कोई आ जाने देंगे | यदि हम यह संकल्प ले लेते हैं तब तो पराअंबा जगदंबा जगत जननी भगवती दुर्गा हमारा पूजन स्वीकार करेंगी अन्यथा हम उनके पूजन का दिखावा मात्र करते रह जाएंगे और उसका परिणाम सुखद नहीं हो सकता |*