*इस सृष्टि में आदिकाल से सनातन धर्म विद्यमान है | सनातन धर्म से ही निकलकर अनेकों धर्म / सम्प्रदाय एवं पंथ बनते - बिगड़ते रहे परंतु सनातन धर्म आदिकाल से आज तक अडिग है | यदि सनातन धर्म आज तक अडिग है तो इसका मूल कारण है सनातन के सिद्धांत एवं संस्कार , जिसे सनातन की नींव कहा जाता है | इस संसार में नींव का बहुत महत्त्व है | किसी भी भवन की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है | जैसे किसी भी वृक्ष की जड़ जितने गहरे होती है वह वृक्ष उतना ही मजबूत एवं दृढ़ होता है उसी प्रकार यदि कई मंजिला इमारत बनानी है तो सर्वप्रथम उस इमारत की नींव मजबूत करनी पड़ती है | यह सिद्धांत मानव जीवन पर भी लागू होता है | यदि मनुष्य कोई ऊँचा लक्ष्य लेकर कोई कार्य प्रारम्भ करता है तो उसे अपने व्यक्तित्व रूपी नींव को उतना ही धीर - गम्भीर एवं मजबूत बनाना पड़ता है | क्षुद्र एवं संकीर्ण मानसिकता का त्याग करके जब मनुष्य अपने व्यक्तित्व को धीर - गम्भीर एवं मजबूत बना लेते हैं तो बड़ी से बड़ी घटनायें भी उनको विचलित नहीं कर पातीं और अन्तत: वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं | किसी भी महान व्यक्तित्व के पीछे संस्कार रूपी मजबूत नींव होती है | जिस व्यक्ति की नींव मजबूत संस्कारों से बनी होती है वे जीवन की उच्च अवस्था को प्राप्त करके "महापुरुष" बन जाते हैं | जिस प्रकार कमजोर नींव के मकान कुछ ही दिनों में भरभरा कर गिर जाते हैं उसी प्रकार संकीर्ण मानसिकता एवं संस्कार विहीन मनुष्य का भी पतन शीघ्र ही हो जाता है | अत: मनुष्य को जीवन यात्रा में आगे बढ़ने के पहले अपनी नींव अवश्य मजबूत कर लेनी चाहिए |*
*आज समाज में सनातन धर्म में दोष ही दोष देखने वालों की कमी नहीं है | यहाँ तक स्वयं को सनातन का ध्वजवाहक कहने वाले भी सनीतन के प्रति कभी कभी शंकालु होते दिख जाते हैं | इसका प्रमुख कारण है कि उनका सनातन के प्रति ज्ञान एवं चिंतन रूपी नींव कमजोर है | इसी कमजोरी के कारण सनातन विरोधियों के कटाक्ष रूपी तूफान के आगे वे उसी प्रकार धराशायी हो जाते हैं जैसे कमजोर नींव के मकान भूकम्प का हलका भी झटका नहीं सहन कर पाते और धराशायी हो जाते हैं | ऐसे लोगों में ज्ञान , मनन , चिंतन एवं स्वाध्याय की कमी होती है | जिनकी नींव मजबूत नहीं है वही लोग परेशान रहते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जिस प्रकार मकान बनाने के पहले गहरी नींव खोदनी पड़ती है उसी प्रकार व्यक्तित्व निर्माण करने के पहले ज्ञान , चिंतन एवं चरित्र को गहरा , सुगठित व सशक्त बनाने का कार्य पूर्ण करना चाहिए | जिस प्रकार गहरी नींव के मकान आँधी , तूफान एवं भूकम्प के झटकों को सहजता से सहन कर लेते हैं उसी प्रकार साधना , स्वाध्याय , संयम , सेवा आदि के सूत्रों को आत्मसात करके निर्मित हुआ व्यक्तित्व भी कठिन से कठिन समय को भी सरलता से पार कर जाते हैं |*
*जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए मनोबल का होना परमावश्यक है | शायद इसीलिए मजबूत मनोबल को सशक्त व्यक्तित्व की नींव कहा जाता है |*