एक सच्ची पुकार -
*ईश्वर की अनुकम्पा से अपने कर्मानुसार अनेकानेक योनियों में भ्रमण करते हुए जीव मानवयोनि को प्राप्त करता है | आठ - नौ महीने माँ के उदर में रहकर जीव भगवान के दर्शन करता रहता है और उनसे प्रार्थना किया करता है कि :-हे भगवन ! हमें यहाँ से निकालो मैं पृथ्वी पर पहुँचकर आपका भजन करूँगा | ईश्वर इतना दयालु है कि जीव को पृथ्वी पर भेजने के पहले ही उसके पोषण के लिए माँ के स्तनों में दूध का समुद्र पैदा कर देता है | परंतु जब जीव इस धराधाम पर आता है तो वह अपने वचन को भूल जाता है और माया में लिप्त हो जाता है | परमात्मप्राप्ति का उद्देश्य लेकर पैदा हुआ मनुष्य अपने लक्ष्य से भटककर सांसारिकता में खो जाता है | कुछ लोग कहते हैं कि भगवान की माया बड़ी प्रबल है वह भगवान का नाम ही नहीं लेने देती | यह सत्य तो हो सकता है परंतु असम्भव नहीं | इसी संसार में रहकर अनेकों महापुरुषों ने भगवान के दर्शन प्राप्त किये हैं | परमात्मा को पाने के लिए न तो उम्र विशेष की और न ही किसी ऐश्वर्य , सम्पत्ति आदि की विशेष आवश्यकता है | परमात्मा को प्राप्त करने के लिए मात्र एक सच्ची पुकार की आवश्यकता है | गजराज , ध्रुव , प्रहलाद , द्रौपदी आदि ने कोई विशेष साधन नहीं जुटाया था बल्कि उनकी एक सच्ची पुकार पर ही भगवान गरुड़ को भी छोड़कर नंगे पैरों दौड़े चले आये थे |
परमात्मा तो आने के लिए सदैव तैयार बैठे रहते हैं परंतु मनुष्य ही उनको नहीं बुला पा रहा है तो वे कैसे आ जायँ ?? उस ईश्वर को अपने हृदय में प्रकट किया जा सकता है परंतु उसके लिए माया के सैनिकों (काम क्रोध अहंकार आदि) को हृदय से भगाना पड़ेगा ! क्योंकि जहाँ माया है वहाँ ईश्वर नहीं और जहाँ ईश्वर एवं उनकी भक्ति है वहाँ माया आ ही नहीं सकती | सच्ची पुकार के बिना दिखावे से परमात्मा नहीं प्रकट होते हैं |* *आज के समाज में अनेकों लोग परमात्मा को प्राप्त करने का उद्योग करते हुए देखे जा सकते हैं परंतु विचारणीय है क्या यह प्रयास उनके द्वारा सफलतापूर्वक किया जा रहा है ? आज की आधुनिकता में फंसा हुआ मनुष्य अपने धर्म कर्म को भूलता चला जा रहा है | प्रायः लोग शिकायत करते हैं कि हमने बहुत पूजन किया , अनुष्ठान किया परंतु परमात्मा की कृपा नहीं हुई | ऐसे सभी लोगों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूं कि परमात्मा तो विकल है आपसे मिलने के लिए परंतु आपने परमात्मा के प्रवेश द्वार को ही अवरुद्ध कर दिया है |
जिस द्वार से प्रभु का प्रवेश हमारे अस्तित्व संभव है उस मार्ग में हमने ना जाने कितनी कामनाएं , वासनाएं , अहंकार डाल दिए हैं , और वहां अब तिल डालने भर की जगह नहीं है | यह अकाट्य है कि जहां अहंकार है वहां ईश्वर कभी नहीं आ सकते हैं , इसलिए भगवान को प्रकट करने के लिए सबसे पहले उनके लिए स्थान बनाना होगा | आज बड़े बड़े अनुष्ठान हो रहे हैं , आज के धार्मिक आयोजन या तो मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जा रहा है या फिर अपने अहंकार के पोषण के लिए | क्या जैसे एक मां अपने बच्चे को पुकारती है , एक प्रेमी अपनी प्रियतमा को पुकारता है उस प्रकार किसी ने भगवान को पुकारा ? यदि विकलता से भगवान को पुकारा जाएगा तो भगवान आज भी प्रकट हो जाते हैं , और हो जाएंगे ! इसमें किंचित भी संदेह नहीं करना चाहिए | आवश्यकता है अपने हृदय की मलिनता को समाप्त करके एक सच्ची पुकार की , क्योंकि एक सच्ची पुकार अनेक जन्मों की तपस्या पर भी भारी पड़ती हैं | हृदय से निकली हुई सच्ची पुकार सीधे परमात्मा से आप को जोड़ती है और परमात्मा प्रकट होने के लिए विवश हो जाता है | परंतु आज के आधुनिक युग में जहां मनुष्य ही सच्चा नहीं दिख रहा है तो सच्ची पुकार उसके हृदय से कैसे निकलेगी ? यह चिंतनीय है |* *आज हम भगवान को पुकारते हैं तो अपने कार्य सम्पन्न कराने के लिए | कहने का मतलब यह है कि आज के मनुष्य को भगवान की नहीं बल्कि अपना कार्य निपटाने के लिए भगवान के रूप में एक मजदूर की आवश्यकता है | यह आज के मनुष्य की मानसिकता बन गयी है |*