जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
*सनातन धर्म की व्यापकता का दर्शन हमारी मान्यताओं / पर्वों एवं त्यौहारों में किया जा सकता है | सनातन धर्म ने सदैव मानव मात्र को एक सूत्र में बाँधकर रखने के उद्देश्य से समय समय पर पर्व एवं त्यौहारों का विधान बनाया है | हमारे देश में होली , दीवाली, रक्षाबन्धन , जन्माष्टमी , श्रीरामनवमी आदि के पावन अवसर लोग आपसी वैमनस्य को भूलकर इन पर्वों का आनन्द उठाते हैं | इन्हीं पर्वों में एक पर्व है भगवान जगन्नाथ की "रथयात्रा" का पर्व | भगवान jagannath की रथयात्रा में आपसी भेद - विभेद मिटाकर भक्तजन एक साथ उनका दर्शन पूजन एवं रथ खींचकर स्वयं को धन्य मानते हैं | यह पर्व मुख्यरूप से उड़ीसा राज्य का मुख्य पर्व है|
उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी , शंख क्षेत्र , श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है | यह भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है | पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है | इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं | भगवान की इस रथयात्रा का वर्णन पुराणों में भी देखने को मिलता है स्कन्द पुराण में इसकी महत्ता का वर्णन करते हुए बताया गया है कि :-- इस यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है | जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं |
जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं | puri jagannath temple की यात्रा की मान्यता यह है कि इस बीच भगवान स्वयं आम जनमानस के मध्य आकर उनके सुख - दुख के सहभागी बनते हैं |* *आज भगवान जगन्नाथ की रथयात्र का महापर्व उड़ीसा ही नहीं बल्कि विशाल भारत के सभी प्रान्तों में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है | जो लोग इस रथयात्रा में भाग लेने के उद्देश्य से उड़ीसा के जगन्नाथपुरी नहीं पहुँच पाते हैं वे सभी लोग अपने नगरों में आयोजित रथयात्रा में भगवान के दर्शन करके एवं उनका रथ खींचकर स्वयं को धन्य बनाते हैं | आज के आधुनिक युग में लोग भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का सीधा प्रसारण टेलीविजन पर देखकर दर्शन लाभ के द्वारा जीवन को धन्य बनाते हैं |
नैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सनातन धर्म एवं उनकी मान्यताओं को हृदय से प्रणाम करते हुए अनुभव करता हूँ कि जिस प्रकार सभी पर्व मानवमात्र को एक करने का प्रयास करते हैं उसी प्रकार रथयात्रा का यह महोत्सव भी है | इस आयोजन में जो सांस्कृतिक और पौराणिक दृश्य उपस्थित होता है उसे प्राय: सभी देशवासी सौहार्द्र, भाई-चारे और एकता के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं | जिस श्रद्धा और भक्ति से पुरी के मन्दिर में सभी लोग बैठकर एक साथ श्री जगन्नाथ जी का महाप्रसाद प्राप्त करते हैं उससे वसुधैव कुटुंबकम का महत्व स्वत: परिलक्षित होता है | उत्साहपूर्वक श्री जगन्नाथ जी का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं | श्री जगन्नाथपुरी की यह रथयात्रा मात्र सनातन धर्म का एक धार्मिक त्यौहार नहीं वरन् सांस्कृतिक एकता तथा सहज सौहार्द्र की एक महत्वपूर्ण कड़ी है |* *रथयात्रा से आध्यात्मिक संदेश भी प्राप्त होता है कि जिस प्रकार शरीर में आत्मा होती है तो भी वह स्वयं संचालित नहीं होती, बल्कि उसे माया संचालित करती है | इसी प्रकार भगवान जगन्नाथ के विराजमान होने पर भी रथ स्वयं नहीं चलता बल्कि उसे खींचने के लिए लोक-शक्ति की आवश्यकता होती है |*