कल रात नींद मुझे देर तक नहीं आई
लेटी हुई बिस्तर पर और सोच रही थी
अपने आप से सवाल कुछ पूछ रही थी
जांत पांत ऊंच-नीच आख़िर क्यों बनाई
शक्ल एक है, रुप एक है, रंग भी एक है,
यहां तक की रगों में बह रहा रक्त एक है,
जन्म लेते हैं दुनिया में सभी एक तरहां से
यहां तक कि मरने की प्रक्रिया भी एक है
क्यों बहाते हैं ख़ून फिर धर्म के नाम पर
जो भी मरता है यहां वह मां का लाल है
तभी दिल से मेरे एक आवाज़ यह आई
अंतर्मन की सुनो और यह सोचो मेरे भाई
हम सब एक हैं हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई
भाईचारा धर्म हमार हिंदुस्तान वतन हो
प्रगति करे देश दिल में सबके प्यार हो
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून ✍️
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