श्वास अभी बाकी है,
जान अभी बाकी है।
कुछ ख्वाब हैं बचे हुये,
जिनकी उडा़न अभी बाकी है।
आधा अधूरा बटोरकर,
मत पूरा चरित्र तोल दे।
ये नसीब क्या पता,
कब कौन द्वार खोल दे।
सफर मिलने मिलाने का,
पहचान अभी बाकी है।
चल रहा विचार द्वंद ,
तो क्यों हार मान लूं?
किस हेतु जीवन मिला,
पूरा सत्य तो जान लूं।
कुछ सवालों के जवाब लिये,
इम्तेहान अभी बाकी है।
स्वयं के लिये रहे,
परिवार हेतु कहां जिया?
और जो मातृभूमि,
उसके लिये क्या किया?
फर्ज अभी बचे हुये,
अरमान अभी बाकी है।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'