मेरे अधरों के सच लेकर,
इन्हें झूठ बोलना सिखला दो न।
इन आँखों की निश्छलता लेकर,
थोडा़ कपट इन्हें सिखा दो न।
ले लो ह्रदय की मासूमियत मेरी,
इसे पाषाण जरा बना दो ना।
नहीं जानती अंतर,
मोह और मोहब्बत में,
रीझ जाती मीठे बोलों पर,
सीखा भोलापन बस जीवन में।
छली गयी सदा इसी वजह से,
मिले घाव बहुत गहरे,
नहीं जानती कैसे लगते,
चेहरे के ऊपर चेहरे ।
बैठ करीब जरा मेरे तुम,
मतलबी पाठ सभी पढा़ दो ना ।
इस झूठी दुनिया में जीना,
जरा मुझे भी सिखला दो ना ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'