खोलकर पढ़ती हूं,
तुम्हारा खत,
तुम्हारे जाने के बाद,
जो,
रख गये थे तुम,
मेरे सोते में,
चुपके से तकिये के नीचे।
और ,
सफेद साडी़ में लिपटी मैं,
भर लेती हूं,
अपनी मांग फिर से,
क्योंकि,
लिखा था तुम्हारे खत में,
कि,
यदि मैं शहीद हो जाऊं,रण में
तो,
जिंदा रखना मुझे,
तुम अपने अहसासों में।
और,
अपने जिंदा रहते,
नहीं देख पाऊंगा तुम्हें,
उस सूनी मांग में,
जिसे कभी मैंने,
सजाया था,
अपने प्यार से।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'