चल उड़ चल रे मन पंक्षी ,
अब तेरा यहाँ कौन तलाशी !!!!
अब तेरा यहाँ कौन तलाशी ।
इतनी प्यारी तुझको काया !
जो तू इसको छोड़ न पाया !
छोड़ रहे तुझे अपने प्यारे,
तू किसके लिए रुका रे !
छाई हुई घनघोर उदासी !!!
अब तेरा यहाँ ..............
कोई ,जो तेरी गलियों में आया ,
बोल भला कब तक टिक पाया !
जब तक मतलब ,तब तक साथ ,
फिर कोई मथुरा,तो कोई काशी !
अब तेरा यहाँ ...........
हर सपना जो तूने देखा ,
घिरी न उस पे काली रेखा !
तेरे नैनों के दर पर आकर,
गया हर स्वप्न तुझे रुलाकर,
बची केवल रिक्तता और उबासी,
अब तेरा यहाँ ..........
कब किसी ने तुझे अपना समझा !
कब तेरा भला सम्मान किया !
तेरे प्रेम व समर्पण का,
कदम-कदम अपमान किया ।
तू इतना भोला तूने,
समझा सबको अपने जैसा ही !!
अब तेरा यहाँ..........
यह वर्तमान तो कैसा भविष्य तेरा !
कब तक करेगा तू मेरा मेरा !!
समझ कुछ रातें ऐसी होतीं,
जिनका कभी न होता सवेरा !
रिक्त व्योम में खोज रहा ,
कौन आशा की किरण राशि !!
अब तेरा यहाँ ..........
क्या किसी ने तेरे साथ किया रे !
भ्रम व छलावे में ही जिया रे !
तेरी निश्छलता का लाभ उठाकर,
तेरा दोहन,तुझको ही फाँसी !
अब तेरा यहाँ ..........
हर बंधन सुँदर सलोना कैसा !
केवल क्षणिक बुलबुले जैसा !
जब चाहा इनको पा लूँ,
हाथ में ले गले लगा लूँ,
तब काँटा बन चुभे ये ऐसे,
रह गई एक आह सी !!
अब तेरा यहाँ ........
चल चेत अब तो समय रहते,
या बना पाषाण,सुख- दुख सहते!
जब तक जीवन ,तब तक तड़पन,
लगी रहेगी प्रेम क्षुधा सी !!
अब तेरा यहाँ ..........
अब किससे है प्यार तुझे !
जिसका है इंतजा़र तुझे !
कितना भी जोडो़ पर गाँठ रहेगी,
टूटी ,संबंधों की मुक्तामाला सी !
अब तेरा यहाँ ..........
जानूँ मैं जो कह रहा तू !
जिनका लिए है ठहरा तू ,
तेरी चिंता में वे घुलते रहते,
अब तो दे इन्हें शाँति सुधा सी !
अब तेरा यहाँ ............
प्रभा मिश्रा 'नूतन'