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एमएफएन का दर्जा और पाकिस्तान

28 मई 2022

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पिछले दिनों उड़ी में अठारह भारतीय जवानों की आतंकवादियों द्वारा हत्या के बाद देश में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश चरम सीमा पर पहुँच गया। कहा यह भी जाने लगा कि यह आक्रोश 1965 के युद्ध जैसा था। फिर भारत की ओर से गुलाम कश्मीर में सर्जिकल हमले के द्वारा आतंकवादियों के सात अड्डों को नेस्तनाबूद कर दिया। इस घटना के बाद विश्व के सामने भारत का एक नया रूप सामने आया है। पर भारत जिस तरह अपने नए रूप को विकसित कर रहा है वह आश्चर्यजनक व अप्रत्याशित है। दरअसल भारत सिर्फ सैन्य कार्रवाई तक अपने को सीमित न रखकर हर वह उपक्रम करने को प्रतिबद्ध दिख रहा है जिससे पाकिस्तान का ज्यादा से ज्यादा और चहुँदिस नुकसान हो। इस अर्थ में भारत की सोच इस बार मौलिक तौर पर भिन्न है क्योंकि पहले जहाँ ऐसी परिस्थितियों में सिर्फ युद्ध की चर्चा होती थी। वहीँ इस बार युद्ध सहित तमाम अन्य विकल्पों पर भी उतनी ही गंभीरता से विचार हो रहा है।

इस दिशा में सैन्य कार्रवाई के आलावा जितने कदम उठाए जा रहे हैं उनमें पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग करना, अफगानिस्तान को पाकिस्तान से दूर करके अपनी तरफ करना, सिंधु जल संधि की समीक्षा करना, पाकिस्तान में आयोजित होने वाले दक्षेस शिखर सम्मेलन को स्थगित करवाना, पाकिस्तान को दिए गए एमएफएन दर्जे को वापस लेने पर विचार करना आदि शामिल हैं। पर इन तमाम कदमों में एमएफएन बिल्कुल अलग है। एमएफएन बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली यानी विश्व व्यापार संगठन का एक अहम प्रावधान है और इस अर्थ में एक अंतरराष्ट्रीय संधि का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए यदि भारत इस दर्जे को वापस लेता है तो हमें देखना चाहिए कि इसका भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों पर क्या असर होगा और साथ ही अंतरराष्ट्रीय जगत में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। चूंकि एमएफएन एक तकनीकी प्रावधान है इसलिए इसकी बारीकी को समझना हमारे लिए और भी जरुरी है।

एमएफएन का सिद्धांत विश्व व्यापार संगठन की आधारशिला है। विश्व व्यापार संगठन के पूर्ववर्ती संगठन गैट का पहला अनुच्छेद एमएफएन को समर्पित है जिससे इसके महत्व को समझ जा सकता है। जानकारों का मानना है कि बिना एमएफएन के विश्व व्यापार करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। एमएफएन किसी भी आयातक सदस्य देश को अनेक सदस्य देशों द्वारा किए गए एक जैसी वस्तुओं के निर्यात के बीच भेद-भाव करने की अनुमति नहीं देता है। इसका अर्थ यह है कि एक जैसी दो वस्तुएं यदि दो अलग-अलग देशों से भारत में आयात हो रही हैं तो भारत दोनों वस्तुओं पर समान आयात शुल्क लगाएगा और शुल्केतर मामलों में भी एक समान व्यवहार करेगा। इसके विपरीत बिना एमएफएन के भारत अपनी मनमानी से अलग-अलग देशों के निर्यात पर अलग-अलग आयात शुल्क लगाएगा। परिणामस्वरूप जिस देश की वस्तुओं पर ज्यादा आयात शुल्क लगाया जाएगा उसे नुकसान होगा क्योंकि उसका निर्यात महँगा हो जाएगा।

एमएफएन का दर्जा विश्व व्यापार संगठन के प्रत्येक सदस्य देश को बिना शर्त और अपने आप मिल जाता है। इस दृष्टि से इस संगठन में शामिल होने से प्राप्त होनेवाले महत्वपूर्ण लाभों में एमएफएन की गिनती होती है। जब चीन इस संगठन का सदस्य नहीं था तो उसे अमरीका जैसे देशों के साथ एमएफएन का दर्जा प्राप्त करने के लिए प्रति वर्ष संघर्ष करना पड़ता था। कोई आश्चर्य नहीं कि जब से चीन ने संगठन का सदस्य बनकर एमएफएन का दर्जा हासिल कर लिया तब से उसके निर्यात में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।

एमएफएन को हम परम अनुग्रहीत राष्ट्र कह सकते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि जब गैट का रूपांतरण विश्व व्यापार संगठन के रूप में हुआ तब से एमएफएन का दायरा और भी व्यापक हो गया है। अब यह वस्तु व्यापार तक सीमित न रहकर सेवा व्यापार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से संबंधित व्यापार तक फैल गया है। इस तरह इसके बगैर व्यापार करने से होने वाले नुकसान का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है। भारत-पाकिस्तान के बीच एमएफएन पिछले दो दशकों से विवाद का विषय रहा है। जहाँ भारत ने यह दर्जा पकिस्तान को दो दशक पहले ही दे दिया वहीँ पाकिस्तान ने आज तक ऐसा नहीं किया है। कई बार इस विषय को भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली में भी उठाने की बात चली। परंतु यह मानकर कि भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार नगण्य है जिससे वस्तुतः भारत को ज्यादा नुकसान नहीं है और यह भी कि जब भी साफ्टा (दक्षेस मुक्त व्यापार समझौता) लागू होगा तब भारत को एमएफएन से भी बेहतर सहूलियत मिल जाएगी भारत ने अपने कदम खींच लिए। यह भी कहा जाता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर द्विपक्षीय विवादों को उठाने से भारत बचता रहा है जो कि कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण न होने देने की नीति से मेल खाता रहा है।

कहा जाता है कि बिना अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अब तक कोई भी देश समृद्ध नहीं हो पाया है। भारत में भी कहा जाता है कि ‘व्यापारे बसते लक्ष्मी’। अंग्रेजों के आने से पहले भारत की समृद्धि के पीछे भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार का हाथ माना गया है। इस दृष्टि से देखें तो दक्षिण एशिया की वर्तमान गरीबी के पीछे इस क्षेत्र का विश्व व्यापार में नगण्य हिस्सा भी है। पहले तो अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के उद्योग-धंधों को समाप्त कर दिया। फिर इस क्षेत्र ने ऐसी आर्थिक नीति अपनाई जिससे व्यापार को अपेक्षित बढ़ावा नहीं मिला। इसके बावजूद नब्बे के दशक से दक्षिण एशिया के सभी देश अपने-अपने तरीके से व्यापार करने में जुटे हुए हैं। लेकिन पाकिस्तान इसका अपवाद है जो कश्मीर मुद्दे को व्यापार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानता रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि बांग्लादेश आज इससे बड़ा निर्यातक बन गया है। कुल-मिलाकर नतीजा यह है कि दिनोंदिन इसकी माली हालात बद से बदतर होती जा रही है।

दुर्भाग्य से पाकिस्तान ने न तो आधुनिक उद्योग ही स्थापित किए और न ही सेवा क्षेत्र। इसके बरस्क भारत ने दोनों ही क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है और दोनों देशों के बीच बेरोकटोक द्विपक्षीय व्यापार की स्थिति में भारत के लाभ की संभावना कहीं अधिक है। फिर भी व्यापर के सिद्धांत के मुताबिक पाकिस्तान भी लाभान्वित होगा क्योंकि उसे सस्ता सामान मिलेगा। पर पाकिस्तान को अपने संभावित लाभ से अधिक चिंता इस बात की रही है कि भारत को इससे ज्यादा फायदा होगा। कहा जाता है कि पाकिस्तान में एमएफएन का अनुवाद सबसे फायदेमंद मुल्क के रूप में किया गया। जाहिर है कि ऐसा दर्जा पाकिस्तान अपने शत्रु देश को कैसे देता। इसलिए पाकिस्तान ने भारत को एमएफएन का दर्जा नहीं दिया और इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच कभी भी क्षमता के अनुरूप व्यापार नहीं हो पाया। जबकि सच्चाई यह है कि 1947 में आजादी के बाद से लेकर 1951 तक पाकिस्तान अपने 70 प्रतिशत आयात के लिए भारत पर निर्भर था। जिससे पता चलता है कि दो पड़ोसी देशों के बीच व्यापार की कितनी संभावनाएं हो सकती हैं।

अब रही बात कि यदि भारत ने एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया तो क्या होगा। सबसे पहले तो यह विश्व व्यापार संगठन के एक अहम प्रावधान का उल्लंघन होगा। पर जब तक इस संगठन में इसको लेकर कोई शिकायत नहीं करेगा तब तक भारत पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होगी। चूंकि पाकिस्तान ने एमएफएन दिया ही नहीं है इसलिए वह ऐसी शिकायत करने की हैसियत में भी नहीं है। जहाँ तक द्विपक्षीय व्यापार पर पड़ने वाले असर का सवाल है तो निस्संदेह द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित होगा। भारत की ओर से प्रतिवर्ष दो से ढाई अरब डॉलर का निर्यात पाकिस्तान को होता है। इसकी तुलना में मात्र आधे अरब डॉलर से भी कम का निर्यात पाकिस्तान की ओर से होता है। बिना एमएफएन के पाकिस्तान द्वारा किया जा रहा निर्यात भारत में महंगा हो जाएगा और संभव है आगे निर्यात करना भी मुश्किल हो जाए क्योंकि पाकिस्तानी निर्यात के मुकाबले दूसरे देशों का निर्यात भारत में सस्ता हो जाएगा। यानी प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान पिछड़ जाएगा।

पाकिस्तान का कुल निर्यात ही 25 अरब डॉलर का है। इसलिए आधा अरब डॉलर का निर्यात भी मायने रखता है। इस नजरिए से पाकिस्तान को झटका अवश्य लगेगा। दूसरी ओर, यदि पाकिस्तान ने प्रतिक्रियावश भारत के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए तो भी उसका ही ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि भारत से होनेवाले निर्यात में अधिक हिस्सा कच्चे माल का होता है जिससे पाकिस्तान सस्ता सामान बना पाता है। अतः पाकिस्तान के उद्योग-धंधों पर अच्छा-खासा असर पड़ेगा। भारत द्वारा तीसरे देशों के माध्यम से होनेवाले निर्यात पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि इसे भारत का निर्यात नहीं माना जाता है। फिर भी ऐसा नहीं है कि इससे भारत बेअसर होगा। भारत का निर्यात भी प्रभावित होगा और चूंकि निर्यात का सीधा सम्बन्ध रोजगार से होता है इसलिए रोजगार भी प्रभावित होगा।

पर आतंकवाद से होनेवाले नुकसान के मुकाबले यह नुकसान मामूली ही होगा। व्यापार को शांति का पर्याय कहा गया है। इसलिए जहाँ शांति नहीं है वहां व्यापार नहीं हो सकता। लेकिन एमएफएन का दर्जा वापस लेने का सबसे बड़ा परिणाम सांकेतिक होगा। अब पूरी दुनिया जान जाएगी कि भारत ने किसलिए ऐसा कदम उठाया है और पाकिस्तान द्वारा एमएफएन न दिए जाने की चर्चा भी सारी दुनिया में होगी। अब तक यह बात उतनी मुखर नहीं थी। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान को अलग-थलग करने में एमएफएन भी एक अहम कदम होगा।

लेखक निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग , वित्त मंत्रालय ,भारत सरकार में संयुक्त सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं ।  

 4 दिसम्बर 2018  



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